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रविवार, 12 फ़रवरी 2023

3667...." ढोर गंवार शुद्र पशु नारी सकल ताडना के अधिकारी "

 जय मां हाटेशवरी......
सादर नमन.....
हमारे पौराणिक ग्रंथों को लक्ष्य कर.....
कुछ लोग केवल राजनिती करना चाहते हैं.....
ये ग्रंथ हमारी पहचान है....
और  राष्ट्र की नीव है......
 इन्हे समझने और पढ़ने  के लिये.....
सूर, तुलसी, गुरुगोविंद,  रहीम, रसखान व मीरा.......
की दृष्टि चाहिये......


ढोर गंवार शुद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी
मित्रोँ तुलसी दास जी द्वारा रचित इस पंक्ति का भावार्थ क्या है ?
कभी इस पर गौर किया है किसी ने ?
अक्सर अच्छे अच्छे विद्वानोँ को हमने इस पंक्ति की व्याख्या करते हुए सुना है और तुलसीदास जी का हवाला देकर नारी को ताड़ना देने का पक्ष लेते हुए ।  वो नारी को भी सिर्फ एक विषय भोग कि वस्तु प्रमाणित करते है ।
किन्तु क्या आप सोचते होँगे कि तुलसीदास जी इतने गिरे हुए विचारो के कैसे हो सकते हैं ?
जिन्होने रामायण मे सीता माँ, सुलोचना , मंदोदरी, तारा इत्यादि नारियो को महान बताया । इन्हे प्रातः स्मरणीय बताया । वो तुलसीदास जी नारी का ऐसा अपमान कैसे कर सकते है ?
यहा गलती तुलसीदास जी कि नहीं है, गलती है गलत अर्थ लगाने वालों की, स्वयं कि संकीर्ण विचारधारा को विद्वानो के मत्थे मढ़ने वालों की।
"ढोर गवार शुद्र पशु नारी सकल ताडना के अधिकारी।"
1) इसमे ढ़ोर का अर्थ है ढ़ोल,बजने वाला ढ़ोल । ढ़ोल को बजाने से पहले उसको कसना पड़ता है तभी उसमे ध्वनि मधुर बजेगी । यहा ताड़ना शब्द का अर्थ कठोरता से है ना कि
मारना या पीटना आदि से ।
2) इसके बाद है "गँवार शूद्र" ।
यहा गंवार और शूद्र अलग अलग नहीं है, ये एक साथ है। अर्थात ऐसा शूद्र जो गंवार हो जो सभ्य नहीं हो ।भले ही वो ब्राह्मण कुल का हो । ऐसे गंवार शुद्र माने सेवक,को कठोरता से काम मे लेना चाहिए वरना वो अपनी दुर्बुद्दि से किसी भी सुकार्य को बिगाड़ सकता है । यहा भी ताड़ना शब्द का अर्थ कठोर व्यवहार से ही है ना कि मारना
या पीटना से है।
3) पशु नारी:
अर्थात वो नारी जो पशुवत व्यवहार करती है, पशुवत व्यवहार मे व्याभिचार भी आता है क्यो कि पशुओ मे एक रिश्ते कि कोई मर्यादा नहीं होती है । सो ऐसी नारी जो पशुओ के समान कई लोगो से संबंध रखती है । ऐसी नारी से भी कठोर व्यवहार करना चाहिए एवं उसे समाज से दूर रखना चाहिए ताकि वो समाज को गंदा न कर सके।
तो मित्रो यहा 3 ही चीजे है 5 नहीं । अगर इन्हे 5 मानते है तो एक बात सोचिए जो धर्म हर प्राणी के प्रति दया की भावना रखने कि शिक्षा देता है ,वो पशुओ को मारने या ताड़ना देने की बात कैसे कर सकता है ?
किसी गंवार को सिर्फ इसलिए कि उसमे ज्ञान नहीं है उसे ताड़ना कैसे दे सकता है ?
शूद्र का अर्थ यहाँ सेवक से है ना कि शूद्र जाती से ।और सेवक किसी भी कुल या जाति का हो सकता है । शूद्र सेवा करने वालों को ही कहा जाता है । और सेवक मे भी वो सेवक जो गंवार हो उस से कठोर व्यवहार करना ।
पशु का यहाँ नारी के साथ प्रयोग किया गया है । सो इन्हेँ अलग अलग करने पर अर्थ गलत हो जाता है ।
न तो पशु और न ही नारी किसी ताड़ना कि अधिकारी है । पशुवत व्यवहार करने वाली नारी ताड़ना की अधिकारी है 
कुछ यूँ
"ढोर, गंवारशुद्र ,पशुनारी ,
सकल ताड़न के अधिकारी ॥"
इसी  तरह से इस चौपाई का एक अर्थ इस तरह से भी समझा जा सकता है --.
ढोल ,गंवार , शुद्र , पसु और नारी ...ये सब ताड़न के अधिकारी ...
जितना इस दोहे के अर्थ का ...लोगो ने अनर्थ किया है ..शायद ही किसी दूसरे दोहे का हुआ हो ...
 


ढोल, गंवार शूद्र, पशु, नारी. सकल ताड़ना के अधिकारी.
छठा दृष्टिकोण : चौपाई का सन्दर्भ : रामचरित मानस के सुंदरकांड के ५८ वें दोहे के बाद यह छठी चौपाई समुद्र द्वारा श्री राम से कही गई है. जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए श्री राम समुद्र तट पर पहुंचे तो उन्होंने समुद्र से उस पार जाने के लिए मार्ग माँगा. तीन दिन तक उससे अनुनय-विनय करते रहे कि वह जाने के लिए मार्ग दे
दे. परन्तु उन्हें मार्ग नहीं मिला. तब क्रोधित होकर उन्होंने धनुष पर बाण चढ़ाकर कहा कि वे समुद्र को तीर से सुखा देंगे ताकि उनकी सेना समुद्र के उस पार, लंका तट पर उतर जाय. उनके क्रोध से भयभीत हुआ समुद्र ब्राह्मण रूप धरकर उनके सम्मुख उपस्थित हुआ और हाथ जोड़ कर विनम्रता पूर्वक कहने लगा,
 दोहा (५८) :(काकभुशुण्ड जी कहते हैं – हे गरुड़ जी सुनिए ), चाहे कोई करोड़ों उपाय करके सींचे, पर केला तो काटने पर ही फलता है. नीच विनय से नहीं मानता, वह डांटने पर ही झुकता है (अर्थात सही रास्ते पर आता है).   
 चौपाइयां : हे नाथ ! मेरे सब अवगुण (दोष) क्षमा कीजिए. हे नाथ ! आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी – स्वभाव से ही इनके कार्य जड़(निर्जीव) प्रकृति के हैं.१-२.

  आपकी प्रेरणा से माया ने इन्हें सृष्टि(चर-अचर जगत) के लिए उत्पन्न किया है, सब ग्रन्थों में यही कहा गया है. जिसके लिए स्वामी की जैसी आज्ञा (निर्धारित कार्य) है, वह उसी प्रकार के कार्य में सुख का अनुभव करता है अर्थात वैसा ही कार्य करता रहता है.३-४.
  प्रभु ने अच्छा किया जो मुझे सीख दी है. परन्तु यह (हमारे काम की) मर्यादा भी तो आपकी ही दी हुई है. ढोल, गंवार, शूद्र, पशु और नारी – ये सब ताड़ना ( समझने-समझाने-ज्ञान प्राप्त करने) के अधिकारी हैं.५-६.
(यदि आप मेरे ऊपर बाण चलाते हैं तो) प्रभु के प्रताप से मैं सूख जाऊंगा. सेना उस पार उतर जायेगी, इसमें मेरी बड़ाई नहीं है ( परन्तु इससे अनेक जीवों को संरक्षण देने की मेरी मर्यादा जो आपके द्वारा निर्धारित की गई है, टूट जायेगी). प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता, ऐसा वेद गाते हैं. अब आपको जो अच्छा लगे मैं
तुरंत उसे करूं.७-८. दोहा (५९) : समुद्र के अति विनीत वचन सुनकर कृपालु श्री राम ने मुस्काते हुए उससे कहा, हे तात ! जिस प्रकार वानरों की सेना उस पार उतर जाए, वह उपाय बताओ ( मुझे तो मात्र इतना ही चाहिए).  
   इस वार्तालाप से स्पष्ट है कि,
१.     कथा सुनाने वाले कागभुशुंड जी भी नीच के विनय न मानने पर डांटने के लिए कहते हैं, मारने-कूटने के लिए नहीं, दंडित करने के लिए नहीं. आज अपराधियों की सजा के सन्दर्भ में जिन मानवाधिकारों और सभ्य सुधारों की बात की जाती है, वह इस दोहे में निहित है. यह भारतीय संस्कृति का आदिकाल से अंग रही है क्योंकि तुलसीदास
ने भी प्रचलित नीतिशास्त्र के अनुसार ही यह कहा है. 

 
२.     उक्त चर्चित पंक्तियाँ राम या तुलसीदास नहीं कह रहे हैं, स्वयं समुद्र राम से कह रहा है. क्या वह स्वयं राम से कहेगा कि मुझे दंडित करो, मुझे मारो ?

३.     चौपाई (७-८) में वह राम से कहता है कि आपकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं हो सकता. यदि आप तीर चलाकर मुझे सुखाएंगे तो मैं सूख जाऊंगा.( आप चाहें तो ऐसा कर सकते हैं परन्तु मर्यादा टूटने से सृष्टिक्रम बाधित होगा). आप तो यह बतलाइए कि आप क्या चाहते हैं.

 
४.     उसकी बात पर राम क्रोधित न होकर मुस्कुराते हैं और अपनी समस्या बताते हैं, उस पार जाने का उपाय पूछते हैं.
   आगे की कथा में समुद्र राम को उस पार जाने का उपाय बताता है जिसके आधार पर वे सेना सहित लंका तट पर पहुँच जाते हैं. राम कथा के इस प्रसंग से यह स्पष्ट हो जाता है कि व्यक्ति को जिससे सेवाएं लेनी हैं, वह पहले उसे अच्छी प्रकार समझे(ताड़े), तभी वह उसकी सेवाओं का लाभ उठा सकता है.


हाईकू
आज के राज
छिपे राजनीति में
मन मैं नहीं
अब देखिये आज के लिये मेरी पसंद.....


भगवान सिंह / बात स्वर्गों की और जमीं की भी, बात औरों की हम सभी की भी.

हम यहां अत्यंत क्षीण आधार पर एक  एक ऐसी संभावना की बात करने जा रहे हैं जिसकी सत्यता का दावा नहीं करते और गलत मान नहीं पाते। उत्तर की दिशा में स्वर्ग की कल्पना क्या भारतीय समाज के किसी समुदाय में बचे रह गए इस विश्वास  पर आधारित है, कि उसके पूर्वज उत्तर की दिशा में स्थित किसी सुदूर क्षेत्र से भारतीय भूभाग में आए थे? तिलक ने वैदिक जनों  के आदि देश के रूप में उत्तरी ध्रुव  का प्रस्ताव रखा था। इसमें कई तरह की गलतियां हैं जिनमें कुछ औपनिवेशिक दबाव में और कुछ उस समय तक की जानकारी के स्रोतों की सीमा के कारण हैं। हम इसमें कुछ सुधार करके आर्यों की जगह मानव समुदायों की बात कर सकते हैं क्योंकि आर्य का प्रयोग कृषि के बाद ही किया जा सकता है। इसके लिए हमें आर्कटिक से प्रस्थान के मामले में  तिलक  द्वारा सुझाई गई काल रेखा को भी बहुत पीछे ले जाना होगा।  उस दशा में  हमें उनकी अपेक्षा अधिक ठोस प्रमाण मिल जाएंगे।  उस क्षेत्र में रहने वाले मानव समुदायों की यह यात्रा विगत हिमयुग की तीव्रता के दौर में आर्कटिक क्षेत्र से, प्राणरक्षा के लिए,  दक्षिण की दिशा में पलायन करने वाले लोगों के साथ शुरू होती है। परंतु आहार की उपलब्धता और आबादी के दबाव और आपसी टकराव के कारण वे हजारों वर्ष बाद अपनी जगह बदलते रहे।

 
न डाक्यूमेंट्री बनी हम पे

हम आप ही अपने
कॉफ़िन के नेल हो गए
हम कहाँ पात्र हैं
'दीवार' से शाहकार के
कि शर्ट में गाँठ बाँध
रिबेल हो गए


बिजली की कार
आकाश वास्तव में शून्य है पर नीला प्रतीत होता है. ध्यान की गहराई में जब ज्ञाता, ज्ञान और ज्ञेय तीनों एक हो जाते हैं. तब जो अनुभूति होती है, वह ब्रह्म है. जब जानने वाला तो हो पर जानने को कुछ न हो, तब जो जानना होगा, वह ब्रह्म है. जो कुछ जाना जा सकता है और जो कुछ जाना नहीं जा सकता, उन दोनों के पार है वह ! आज
सुबह टाटा मोटर्स का आदमी आकर चेक ले गया ई वी के लिए. पिताजी को बताया तो उन्होंने कहा भविष्य में बिजली की गाड़ियाँ ही चलेंगी, उन्होंने भविष्य को देखकर कार का चुनाव करने के लिए नन्हे व जून को  बधाई दी.


दूरस्थ प्रणय - -
 मैं उन मुग्ध पलों में
अपने अंदर के
एक अदृश्य
दहन को,
वस्तुतः, कल्पनाओं के अंत से ही होता
है सत्य का पुनरोदय, धुंध रेखा
बिखरी रहती है यथावत मेरे
अस्तित्व के आसपास
में, दूरस्थ प्रेम,
नज़दीक
आना
चाहता है पुनः मधुमास में ।

 
धन्यवाद।



 







 



6 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात🙏
    बहुत उम्दा प्रस्तुति
    तुलसीदास जी के चौपाई के सही अर्थ के वर्णन लिए आपका तहेदिल से बहुत बहुत धन्यवाद🙏💕
    सादर आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन अंक
    आभार आपका
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात! महाकवि संत तुलसीदासजी की चौपाई का सही-सही अर्थ बताने के लिए हृदय से शुभकामनाएँ ! सराहनीय रचनाओं से सुसज्जित अंक, 'एक जीवन एक कहानी' को स्थान देने हेतु बहुत बहुत आभार कुलदीप जी!

    जवाब देंहटाएं
  4. तुलसीदास जी की एक,एक चौपाईमेंगहन अर्थ छुपा हुआ है।
    आपने बहुत सही व्यख्या किया है।

    जवाब देंहटाएं

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