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बुधवार, 18 जनवरी 2023

3642.. कटघरे में शमा है..

 ।।उषा स्वस्ति।।

"रवि-मोर सुनहरा निकला,

पर खोल सबेरा नाचा,

भू-भार कनक-गिरी पिघला,
भूगोल मही का बदला ।
नवजात उजेला दौड़ा,
कन-कन बन गया रूपहला !"
केदारनाथ अग्रवाल
बदलते मौसमों के मिज़ाज चमकीली धूप, बर्फीली हवाओं संग संवाद की अलग अंदाज से रूबरू होइए..✍️
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ये बूढ़ा मन काँपने सा लगता है......। 

खुशियों के चमन के फूलों की पाँखेँ 
काँटों से सजी सेज हो जाती है......
🔶

गंगा को सागर होना है।

 काल चक्र के महा नृत्य में,

नहीं चला है किसी का जोर।

जितना नाचें उतना जाने,

जहां ओर थी, वहीं है छोर।

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                   कुछ शेर 


मेरे सुकून भरे लमहों में क्यों आते हैं ख़याल तेरे 
मेरी सोई हुई तड़प को क्यों जगा जाते हैं याद तेरे
जैसे सारी रात परेशाँ रहती मैं,रहतीं पलकें बोझल 
वैसे तेरे भी ख़्वाबों में शब भर करें तफ़रीह याद मेरे ।
🔶
आज चिरागों पे मुकदमा है ।

फैसला सुनने की खातिर
उजालों की भीड़ जमा है ।

परवानों के कत्ल का इल्जाम 
और कटघरे में शमा है ।
🔶

बहुत ही कठिन है प्रणयी हृदय होना, - -
लोग आकाश की तरह अपने
वक्षस्थल में समेटना
चाहते हैं सितारों
का समारोह,
चाहते हैं
अदृश्य
मालिकाना हक़, कौन समझाए उन्हें - -
रूह होती है आजन्म उन्मुक्त,
चाँदनी रात की तरह ढल
जाता है चार दिन में..
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह'तृप्ति'..✍️

7 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर मनभावन रचनाओं से सजी प्रस्तुति!

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुंदर हलचल। बधाई और आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी संकलन शुभ , सुन्दर , अद्वितीय !
    अभिनन्दन ! शुभेच्छाएँ !!
    जय श्री कृष्ण जी ! जय जय राधा माधव !

    जवाब देंहटाएं

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