---

मंगलवार, 10 जनवरी 2023

3634 .. वैश्विक हिंदी दिवस को हर्ष के साथ मनाना चाहिए

 सादर अभिवादन

मुसलमान ऐसा भी होता है
अकबर ने अपनी मां से शादी की थी। अकबर जब गद्दी पर बैठा था तो वह बहुत कम उम्र का था और शासन चलाने के लिए अयोग्य था। उस वक्त बैरम खां ने अकबर का संरक्षक बनकर पूरा राज्य चलाया। हिंदू धर्म में संरक्षक को पिता समान माना गया है। अकबर की नीयत बैरम खां की बीबी सलीमा बेगम पर खराब थी और इसी वजह से अकबर और बैरम खां के बीच विवाद भी हुआ करता था। अकबर ने चालाकी से बैरम खां को हज के लिए भेज दिया और बाद में अकबर ने बैरम खां की हत्या करवाकर बैरम खां की बीबी से निकाह कर लिया था। इस तरह अकबर ने अपनी ही मां समान औरत से शादी कर लिया था।

अब रचनाएँ....


10 जनवरी 2023 को विश्व हिंदी दिवस है
हमें वैश्विक हिंदी दिवस को हर्ष के साथ मनाना चाहिए, यह आशा करते हुए कि भारत के लोग हिंदी और अन्य भाषाओं को अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी के अलावा शिक्षा, शोध, मीडिया, आईटी तथा व्यावसायिक आयामों से भी जोड़ेंगे. बहुभाषी होना हमारे देश की संस्कृति है, लेकिन हिंदी जो भारत की 70% से ज्यादा जनता बोलती है उसको भी बराबरी का सम्मान मिलना चाहिए.

आज के इस अंक में आपको पूरी रचना पढ़ने को मिलेगी,
जिसके लेखक अज्ञात हैं ,अपने आप में एक अनूठा अंक है
आपको कहीं किसा ब्लॉग मे जाकर नहीं पढ़ना है यहीं पढ़ना है और मनन करना है
एक सप्ताह से इस अंक पर काम जारी था इन रचनाओं को किसी ने तो लिखा ही होगा
पढ़ने-पढ़वाने का काम मेरा था, लेखक का नाम आप तलाशें
......
क्या है भारत की मजबूती ?

एक स्कूल की बालिका और नरेंद्र मोदी मे बातचीत का एक अंश
मोदी जी ने पूछा क्या आप मुझे जानती हैं....
बच्ची ने कहा कि मैं जानती हूँ आप नरेंन्द्र मोदी हो
नरेंन्द्र मोदी ने पूछा-मैं क्या करता हूँ ?
उस 8 वर्ष की बच्ची ने ने जवाब दिया -आप लोकसभा में नौकरी करते हो
बच्ची का यह जवाब नए भारत में एक सच्चे जन- प्रतिनिधि की भूमिका को दर्शाता है
........
असली शिक्षक
क्या यह सच है की जब समय जवाब देता है तब किसी गवाह की ज़रूरत नहीं होती?
एक बार एक साधु ऊँची पहाड़ी पर अपने शिष्यों के साथ रहता है। काफी समय से वह साधु अपने शिष्यों के साथ ऊंची पहाड़ी पर रह रहा था। शिष्य उस साधु से शिक्षा ग्रहण कर रहे थे।
एक बार उस पहाड़ी पर एक घायल शेर आ पहुंचा ।
घायल शेर को देखकर सारे शिष्य इधर-उधर छुप गए। वह घायल शेर साधु के कमरे में पहुंचा ।उस साधु को उस घायल शेर पर दया आ गई। साधु ने अपने शिष्य को बुलाया और कहा कि इसकी मरम पट्टी करो ।सभी शिष्य डरते डरते आए और कहने लगे आप गलत कर रहे हैं ।शेर का तो काम इंसान को खाना है आप इसकी मरम पट्टी करेंगे लेकिन यह ठीक होने पर आपको धोखा दे देगा । साधु ने अपने शिष्यों की बात नहीं सुनी और घायल शेर की मरहम पट्टी की। वह घायल शेर कृतज्ञता पूर्वक उस मोन्क के चरणों में धन्यवाद करने बैठ गया ।अब वह शेर वही रूक गया। उसकी इच्छा उस जगह को छोड़कर जाने की नहीं थी। साधु ने अपने शिष्यों से कहा कि शेर को अब यही रहने दो। शिष्य जो है वह घबरा गए क्योंकि उन्हें डर था कि शेर जो है वह उन्हें कभी भी मार कर खा जाएगा।
कुछ दिन बाद साधु ने कहा कि अपना जो गधा है उसके साथ शेर को भेज दिया करो । शेर उस गधे की देखरेख करेगा । अब जब भी गधा घास चरने जाता उसके साथ उसकी रक्षा के लिए शेर जाता । 6 महीने तक ऐसा चला । 6 महीने बाद एक दिन शेर अचानक खाली वापस आ गया उसके साथ गधा वापस नहीं आया । शिष्य जो है वह अलग अलग तरह की बातें करने लगे ।सबने यही सोचा कि 6 महीने तक इसने दिखावा किया और अंत में गधे को मारकर खाकर आ गया । लेकिन शेर चुप था और वह उस साधु के चरणों में जाकर बैठ गया। शिष्यों ने उस शेर पर इल्जाम लगाया कि यह अकेला वापस आया है यह गधे को खाकर आ गया । साधु ने अपने शिष्यों से कुछ नहीं कहा ना उस शेर से कुछ कहा । शेर गुमसुम उदास चुपचाप 1 महीना 2 महीना 3 महीना बैठा रहा और सभी शिष्य उसे देखकर तरह तरह की बातें करते ।शेर को कोई भी पसंद नहीं करता था सब उस पर इल्जाम लगाते कि यह गधे को मारकर खा गया है ।शेर ने धोखा दिया है लेकिन शेर क्या करता? शेर चुप बैठा रहा ।

एक दिन एक कारवां निकला । शेर ने पहाड़ी पर से उस कारवां को गुजरते देखा। कारवां चोरों का था। शेर को कुछ अजीब सा दिखाई दिया। शेर उस कारवां की तरफ दौड़ा ।शेर को देखकर कारवां के चोर पहाड़ी प्रमुख के पास भाग कर आए और साधु के आगे गिड़गिड़ाना लगे कि हमें शेर से बचाइए। 
शेर अपने पुराने साथी गधे के साथ लौट के आया ।

चोरों ने यह बात मानी कि उस दिन शेर सो रहा था और धीरे से वे गधे को चुरा कर ले गए थे ।सभी शिष्यों को अपनी गलती का एहसास हुआ । चोरों ने साधु से कहा हम से जितने पैसे लेने हैं ले लीजिए 
लेकिन हमें इस शेर से बचाइए ।
शेर गलत नहीं था लेकिन उसका समय अनुकूल नहीं था। उसे गलत समझा जाता रहा पर जब समय आया तो शेर ने अपना पक्ष सामने रख दिया कि उसकी कोई गलती नहीं थी। शेर पर झूठा इल्जाम लगाकर उससे दूरी बनाए रखी उसकी बुराई करते रहे ।

ठीक इसी शेर की तरह कभी कभी हम गलत नहीं होते पर समय अनुकूल नहीं होता तो हमें गलत समझा जाता है ! पर जब जब समय जवाब देता है.. गवाहो की जरूरत नहीं होती है..।। 
जैसे शेर को किसी गवाह की जरूरत नही थी
.........................

कर्तव्य



अख़बार बेचने वाला 10 वर्षीय बालक एक मकान का गेट बजा रहा है।
मालकिन - बाहर आकर पूछी क्या है ?
बालक - आंटी जी क्या मैं आपका गार्डेन साफ कर दूं ?

मालकिन - नहीं, हमें नहीं करवाना है, और आज अखबार नही लाया ।

बालक - हाथ जोड़ते हुए दयनीय स्वर में.. "प्लीज आंटी जी करा लीजिये न, अच्छे से 
साफ करूंगा,आज अखबार नही छपा,कल छुट्टी थी दशहरे की ।"

मालकिन - द्रवित होते हुए "अच्छा ठीक है, कितने पैसा लेगा ?"

बालक - पैसा नहीं आंटी जी, खाना दे देना।"

मालकिन- ओह !! आ जाओ अच्छे से काम करना ।

(लगता है बेचारा भूखा है पहले खाना दे देती हूँ..मालकिन बुदबुदायी।)

मालकिन- ऐ लड़के..पहले खाना खा ले, फिर काम करना ।

बालक -नहीं आंटी जी, पहले काम कर लूँ फिर आप खाना दे देना।

मालकिन - ठीक है, कहकर अपने काम में लग गयी।
बालक - एक घंटे बाद "आंटी जी देख लीजिए, सफाई अच्छे से हुई कि नहीं।

मालकिन -अरे वाह! तूने तो बहुत बढ़िया सफाई की है, गमले भी करीने से जमा दिए। 
यहां बैठ, मैं खाना लाती हूँ।

जैसे ही मालकिन ने उसे खाना दिया, बालक जेब से पन्नी निकाल कर उसमें खाना रखने लगा।

मालकिन - भूखे काम किया है, अब खाना तो यहीं बैठकर खा ले। जरूरत होगी तो और दे दूंगी।

बालक - नहीं आंटी, मेरी बीमार माँ घर पर है,सरकारी अस्पताल से दवा तो मिल गयी है,
पर डॉ साहब ने कहा है दवा खाली पेट नहीं खाना है।

मालकिन की पलके गीली हो गई..और अपने हाथों से मासूम को उसकी दूसरी माँ बनकर खाना खिलाया फिर उसकी माँ के लिए रोटियां बनाई और साथ उसके घर जाकर उसकी माँ को रोटियां दे आयी । और आते आते कह कर आयी "बहन आप बहुत अमीर हो जो दौलत आपने अपने बेटे को दी है 
वो हम अपने बच्चों को नहीं दे पाते हैं" ।

माँ बेटे की तरफ डबडबाई आंखों से देखे जा रही थी...बेटा बीमार मां से लिपट गया..
........

अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है ???…



सर्दी के मौसम में कई बार खांसी हो जाती है। जब डॉक्टर से खांसी ठीक नही हुई तो 
किसी ने बताया कि डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती तब गंगाजल पिलाना चाहिए।
गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है ; 
तो डॉक्टर साहिब बोले- नहीं! कई रोगों का इलाज भी है। दिन में 
तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिया 
और तीन दिन में खांसी ठीक हो गई। यह अनुभव है, 
हम इसे गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, 
उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं।

कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करता ही था, 
मेहमानों को भी गंगा जल पिलाता था। इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। 
इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे वह रास्ते में ही सड़ जाता था।

करीब सवा सौ साल पहले आगरा में तैनात ब्रिटिश डॉक्टर एम.ई. हॉकिन ने वैज्ञानिक 
परीक्षण से सिद्ध किया था कि हैजे का बैक्टीरिया गंगा के पानी में डालने पर कुछ ही देर में मर गया। दिलचस्प ये है कि इस समय वैज्ञानिक भी पाते हैं कि गंगा में बैक्टीरिया को मारने की गजब की क्षमता है। लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट एनबीआरआई के निदेशक डॉक्टर चंद्रशेखर नौटियाल ने 
एक अनुसंधान में प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में बीमारी पैदा करने वाले ई-कोलाई बैक्टीरिया को मारने की क्षमता बरकरार है। डॉ नौटियाल का इस विषय में कहना है कि 
गंगा जल में यह शक्ति गंगोत्री और हिमालय से आती है।
गंगा जब हिमालय से आती है तो कई तरह की मिट्टी, कई तरह के खनिज, कई तरह की जड़ी बूटियों से मिलती मिलाती है। कुल मिलाकर कुछ ऐसा मिश्रण बनता है- जिसे हम अभी तक नहीं समझ पाए हैं। 
डॉक्टर नौटियाल ने परीक्षण के लिए तीन तरह का गंगा जल लिया था। उन्होंने तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया डाला। नौटियाल ने पाया कि ताजे गंगा पानी में बैक्टीरिया तीन दिन जीवित रहा, 
आठ दिन पुराने पानी में एक हफ्ते और सोलह साल पुराने पानी में 15 दिन। 
यानी तीनों तरह के गंगा जल में ई-कोलाई बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाया।

वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफाज वायरस होते हैं। 
ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और बैक्टीरिया को मारने के 
बाद फिर छिप जाते हैं। मगर सबसे महत्वपूर्ण सवाल इस बात की पहचान करना है 
कि गंगा के पानी में रोगाणुओं को मारने की यह अद्भुत क्षमता कहाँ से आती है?
दूसरी ओर एक लंबे अरसे से गंगा पर शोध करने वाले आईआईटी रुड़की में पर्यावरण विज्ञान के 
रिटायर्ड प्रोफेसर देवेंद्र स्वरुप भार्गव का कहना है कि गंगा को साफ रखने वाला यह 
तत्व गंगा की तलहटी में ही सब जगह मौजूद है। डाक्टर भार्गव कहते हैं कि 
गंगा के पानी में वातावरण से आक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है। भार्गव का कहना है कि 
दूसरी नदियों के मुकाबले गंगा में सड़ने वाली गंदगी को हजम करने की 
क्षमता 15 से 20 गुना ज्यादा है।

गंगा माता इसलिए है कि गंगाजल अमृत है, जब तक अंग्रेज किसी बात को 
प्रमाणित नहीं करते तब तक भारतीय लोग सत्य नहीं मानते। भारतीय लोग 
हमारे सनातन ग्रन्थों में लिखी किसी भी बात को तब तक सत्य नहीं मानेंगे जब तक कि कोई विदेशी वैज्ञानिक या विदेशी संस्था उस बात की सत्यता की पुष्टि नहीं कर दे। 
इसलिए इस आलेख के वैज्ञानिकों के वक्तव्य बी बी सी हिन्दी सेवा से साभार लिये गये हैं... 
अंग्रेज यदि गंगा का पेंटेट करा लेते तब भारतीय को गंगा का महत्व पता लगता
हर हर गंगे
..........................
वादा ....


एक ठंडी रात में, एक अरबपति बाहर एक बूढ़े गरीब आदमी से मिला।
उसने उससे पूछा, "क्या तुम्हें बाहर ठंड महसूस नहीं हो रही है, और तुमने कोई कोट भी नहीं पहना है?"
बूढ़े ने जवाब दिया, "मेरे पास कोट नहीं है लेकिन मुझे इसकी आदत है।" अरबपति ने जवाब दिया, "मेरे लिए रुको। मैं अभी अपने घर जाता हूँ और तुम्हारे लिए एक कोट ले लाऊंगा।"

वह बेचारा बहुत खुश हुआ और कहा कि वह उसका इंतजार करेगा। अरबपति अपने घर में घुस गया और वहां व्यस्त हो गया और गरीब आदमी को भूल गया।

सुबह उसे उस गरीब बूढ़े व्यक्ति की याद आई और वह उसे खोजने निकला लेकिन ठंड के कारण उसे मृत पाया, लेकिन उसने एक चिट्ठी छोड़ी थी, जिसमे लिखा था कि, "जब मेरे पास कोई गर्म कपड़े नहीं थे, तो मेरे पास ठंड से लड़ने की मानसिक शक्ति थी।

लेकिन जब आपने मुझे मेरी मदद करने का वादा किया, तो मैं आपके वादे से जुड़ गया और इसने मेरी मानसिक शक्ति को खत्म कर दिया। "

-संदेश - 
अगर आप अपना वचन नहीं निभा सकते तो कुछ भी वचन न करें। 
यह आप के लिये जरूरी नहीं भी हो सकता है, 
लेकिन यह किसी और के लिए सब कुछ हो सकता है। ..
.......................
और अंत में
हमें किताबें क्यों पढ़नी चाहिए?


चलिये हम कुछ लाख दो लाख साल पहले चलते हैं
एक गाँव में एक कुत्ते का जन्म हुआ
जब वो बड़ा हुआ तो खाने की तलाश में भटकता रहा।
एक दिन उसने जंगल की तरफ़ रुख किया वहाँ उसे जंगली सब्जियाँ इत्यादि खाने को मिलीं।
कुछ दिन बाद जंगल में आग लग गई कुत्ता वहाँ से भाग गया।
आग ठंडी होने के बाद कुत्ते ने देखा कि आग में सब्जियाँ पक कर और भी ज़्यादा स्वादिष्ट और पौष्टिक हो गईं हैं। कुत्ते ने उन्हें बड़े चाव से खाया।
2–3 दिनों में सब्जियाँ सड़ने लगीं लेकिन इस बात से अनजान कुत्ता उन्हें खाता रहा और बीमार पड़कर उसकी मौत हो गई।
कुछ महीने बाद एक और कुत्ते का जन्म हुआ
उसने भी खाना ढूंढा, फिर आग लगी, सब्जियाँ पकीं, सब्जियाँ सड़ी, 
कुत्ता बीमार होके मर गया।
फिर से एक कुत्ते का जन्म हुआ
और वही चक्र चलता रहा।

लेकिन इस बार एक मानव का जन्म होता है
वो खाने की तलाश में लग जाता है।
एक दिन उसने जंगल की तरफ़ रुख किया वहाँ उसे जंगली सब्जियाँ इत्यादि खाने को मिलीं।
कुछ दिन बाद जंगल में आग लग गई और वो वहाँ से भाग गया।
आग ठंडी होने के बाद उसने देखा कि आग में सब्जियाँ पक कर और भी ज़्यादा 
स्वादिष्ट और पौष्टिक हो गईं हैं। उसने उन्हें बड़े चाव से खाया।
2–3 दिनों में सब्जियाँ सड़ने लगीं लेकिन इस बात से अनजान वो उन्हें खाता रहा 
और बीमार पड़कर उसकी मौत हो गई।
लेकिन उसने मरने से पहले अपने साथ हुई पूरी कहानी एक किताब में लिख डाली।

तो जब अगले मानव का जन्म हुआ
उसे इन चीजों के बारे में पहले से ही पता चल गया कि जंगल में सब्जियाँ होती हैं, आग लगने पर क्या करना चाहिये, सब्जियाँ कैसे पकती हैं और कितने दिन बाद खराब हो जाती हैं।
इस तरह से वो ज्यादा दिनों तक जिया और उसे जो भी अतिरिक्त समय मिलता उसमें सूखी पत्तियाँ, हरे तने, पत्थर, जानवरों का गोबर और पानी इकट्ठा करता।
अब उसे आग भड़कने का इंतज़ार था और जैसे ही आग लगी उसने 
इन सब चीजों को आग में फेंक दिया।

और मरने से पहले उसने अपनी किताब में लिखा: सूखी पत्तियों से आग भड़कती है, 
गोबर से लम्बे समय तक जलती है और पानी से बुझ जाती है।
जो इंसान इस बार पैदा हुआ उसने इन दोनों किताबों को पढ़ा और जैसे ही 
उसने जंगल में तेज हवायें चलते देखीं दो लकड़ियों को उन पेड़ों में फंसा दिया, 
देखते ही देखते आग पैदा हो गई।
उसके बाद आये इंसान ने लाइटर बनाया।
उसके अगले ने गैस स्टोव बनाया।
इस तरीके से ये क्रम चलता रहा और इंसान प्रगति करता गया।

इंसान की ये सबसे अच्छी खूबी रही है कि उसने अपनी अगली पीढ़ियों 
तक ज्ञान का संचार किया।

और इस तरह मानव अपनी पुरानी पीढ़ियों द्वारा की गईं गलतियों से बचा रहा और 
अपने समय का सदुपयोग करने में सफल रहा। इसी क्रम को बढ़ाते हुए हर पीढ़ी के 
साथ इस ज्ञान में तेजी से वृद्धि होती गई।

और इस ज्ञान का भंडार रही हैं किताबें।

किताबें या यूँ कहें कि कोई भी लेखन किसी भी चीज़ का लेखा-जोखा रखने में एक 
शक्तिशाली साधन के रूप में सामने आई हैं।

एक बायोलजी की किताब हमें बताती है हमारा दिल कैसे धड़कता है, हमारे हाथ पैर 
कैसे काम करते हैं, पेड़-पौधे कैसे साँस लेते हैं जिसे जानने में 
मानवजाति को सदियाँ लग गईं।
होमर, शेक्सपियर, चाणक्य, अल-बरुनी, मार्क ट्वेन द्वारा लिखी गईं प्राचीन किताबें 
हमें बताती हैं पुराना ज़माना कैसा था, तब इंसान कैसे जीता था।
‘द वॉल‘ जैसे लेखन संग्रह हमें बताते हैं कि फाँसी पर झूलने से पहले आपकी रात कैसे 
गुजरती है एक ऐसा अनुभव जिसके बारे में हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
किताबों से हम कई ज़िंदगियाँ जी लेते हैं, कई पहलुओं का अनुभव कर लेते हैं 
और कई संसार देख लेते हैं।  आसान शब्दों में कहें तो
यदि आप 20 वर्ष की उम्र में एक 40 वर्षीय द्वारा लिखित पुस्तक पढ़ते हैं तो 
आप उसके 40 वर्षों के अनुभवों में झाँक लेते हैं।

यह अंक पढ़िए और अनुभव यहां अपनी प्रतिक्रया में लिखिए
आज बस
सादर

4 टिप्‍पणियां:

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।