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रविवार, 27 नवंबर 2022

3590 ..विचार करो और फिर अपने दिल की सुनो

सादर अभिवादन
अपने से बड़ों को
हमेशा सुनो,
ये जरूरी नहीं।
लेकिन जो
वो कहते है
उसको कुछ पल
जरूर दो,
विचार करो
और फिर
अपने दिल की सुनो।

रचनाएँ ...


इस धोखे से आहत सोमेश की आँखों के आगे अन्धेरा छा गया। वह हकबकाया-सा अपनी जगह पर खड़ा रह गया। धर्मिष्ठा उसे वहीं छोड़ अपने स्कूटी की ओर चल दी और उस पर सवार हो कर चली गई। सोमेश अधिक समय तक स्वयं पर संतुलन नहीं रख सका और लहरा कर जमीन पर गिर पड़ा। कुछ लड़कों ने उसे यूँ गिरते देखा तो दौड़ कर उसके पास आये और उसे सहारा दे कर बैठाया।



गर रखी है खुद में ,
काबिलियत और हुनर ,
धधकने दो ज्वाला ,
जिद और जुनून की अंदर ,
वादा करें खुद से की,
बाकी न रहेगी कोई कसर ,
कभी ऐसे भी जाल जीत का,
जरा बिछाया तो करो ।




याद नहीं कब अंजुरी भर वृष्टि - बूंद की थी चाह,
शैशव पलों में दौड़ गया था, उन्मुक्त हो बेपरवाह,

अंकुरित भावनाओं में थे चिपके हुए मासूम खोल -
नव पल्लवों को न मिल सकी कच्ची धूप की थाह,




जंगल से गुजरना
जंगल के क़रीब होना नहीं है
ठीक वैसे ही जैसे
किसी व्यक्ति के पास होना
उसके क़रीब होना नहीं है.
अपनी सुबहों में
कुछ खुद को खो रही हूँ,
कुछ खुद से मिल रही हूँ.



किसी ने क्या कहा
किस किस को दे सफाई
यही बात उसके मन को रास न आई
आधी जिन्दगी बीती कोई उसे समझ न  पाया |
ना उसके  प्यार  को समझा
ना ही तुम्हारे इकरार  को  जाना
कटु भाषण ही पहचाना |


आज इतना ही

सादर 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आदरणीय यशोदा मेम,
    मेरी लिखी रचना ब्लॉग "यूं तकदीर की चादर ओढ़ाया न करो " इस मंच में साझा करने के लिए बहुत धन्यवाद एवम आभार ।
    सभी संकलित रचनाएं बहुत ही उम्दा है , सभी आदरणीय को बहुत बधाइयां ।
    सादर ।

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी रचना 'छलावा' को इस सुन्दर पटल का हिस्सा बनाने के लिए आ. यशोदा जी का सादर हार्दिक आभार! सभी रचनाकारों को भी नमस्कार।

    जवाब देंहटाएं
  3. मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार, सभी रचनाएँ अप्रतिम हैं नमन सह ।

    जवाब देंहटाएं

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