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रविवार, 13 नवंबर 2022

3576 ..विश्वासों की छाँवों में हो बसेरा अपना

 सादर अभिवादन

अभी समय है एक लम्बी कहानी पूरी हो जाएगी
रविवार ,सोमवार और मंगलवार तीनों दिन प्रस्तुति मुझे ही लगानी है
पहला भाग .....
अपनी बेटी की शादी की खुशी
मेरी बेटी की शादी थी और मैं कुछ दिनों की छुट्टी ले कर शादी के तमाम इंतजाम को देख रहा था. उस दिन सफर से लौट कर मैं घर आया तो पत्नी ने आ कर एक लिफाफा मुझे पकड़ा दिया. लिफाफा अनजाना था लेकिन प्रेषक का नाम देख कर मुझे एक आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा हुई.

‘अमर विश्वास’ एक ऐसा नाम जिसे मिले मुझे वर्षों बीत गए थे. मैं ने लिफाफा खोला तो उस में 1 लाख डालर का चेक और एक चिट्ठी थी. इतनी बड़ी राशि वह भी मेरे नाम पर. मैं ने जल्दी से चिट्ठी खोली और एक सांस में ही सारा पत्र पढ़ डाला. पत्र किसी परी कथा की तरह मुझे अचंभित कर गया. लिखा था :

आदरणीय सर, मैं एक छोटी सी भेंट आप को दे रहा हूं. मुझे नहीं लगता कि आप के एहसानों का कर्ज मैं कभी उतार पाऊंगा. ये उपहार मेरी अनदेखी बहन के लिए है
घर पर सभी को मेरा प्रणाम.
आप का, 
अमर.

मेरी आंखों में वर्षों पुराने दिन सहसा किसी चलचित्र की तरह तैर गए.
एक दिन मैं चंडीगढ़ में टहलते हुए एक किताबों की दुकान पर अपनी मनपसंद पत्रिकाएं उलटपलट रहा था कि मेरी नजर बाहर पुस्तकों के एक छोटे से ढेर के पास खड़े एक लड़के पर पड़ी. वह पुस्तक की दुकान में घुसते हर संभ्रांत व्यक्ति से कुछ अनुनयविनय करता और कोई प्रतिक्रिया न मिलने पर वापस अपनी जगह पर जा कर खड़ा हो जाता. मैं काफी देर तक मूकदर्शक की तरह यह नजारा देखता रहा. पहली नजर में यह फुटपाथ पर दुकान लगाने वालों द्वारा की जाने वाली सामान्य सी व्यवस्था लगी, लेकिन उस लड़के के चेहरे की निराशा सामान्य नहीं थी. वह हर बार नई आशा के साथ अपनी कोशिश करता, फिर वही निराशा.
क्रमशः ....

रचनाएँ ......


लफ़्ज़ों के तिलिस्म से बाहर निकल कर देखें,
मोम की तरह, रफ़्ता - रफ़्ता पिघल कर देखें,

यूँ तो हर कोई मसीहाई का मुतालबा करता है,
रूबरू अक्स कड़ुआ सच कभी निगल कर देखें,  




मेरे  गीतों  को सुन  हौले  से  मुस्का देना
मन  की  उलझी  गाँठों को  सुलझा  देना!

विश्वासों  की  छाँवों  में  हो बसेरा अपना
छलके जो कभी अश्क  पलकों से उठा लेना!




धर्म की प्रचलित मान्यता के अनुसार हम इसको विभिन्न अनुष्ठानों में बाँध कर मन्दिर, मस्जिद, चर्च या गुरुद्वारा तक सीमित कर देते हैं, जबकि धर्म तो अंतरात्मा से जुड़ा हुआ होना चाहिए। जब हम इस अवस्था में पहुँच जाते हैं तब सबको स्वयं सा मान कर सबके लिए भी संवेदनशील हो जाते हैं, न कि सिर्फ़ अपनी विचारधारा को वरीयता देकर अन्य की उपेक्षा करेंगे।



बहुत कुछ था जो अब नहीं है  
कुछ है पर ज़िन्दगी नहीं है।  
कश्मकश में उलझकर क्या कहें  
जो कुछ भी था अब नहीं है।  
हयात-ए-सफ़र पर चर्चा क्या  
कहने को बचा अब कुछ नहीं है।  




यदि बच्चा समय से और पूरा खाना खत्म करता है तो बच्चे की तारीफ़ अवश्य करें। इससे वो पूरा खाना खाने के लिए प्रेरित होगा। लेकिन पूरा खाना खाने के लिए उसे किसी तरह का कोई लालच न दे।

यदि इन उपायों के बावजूद आपका बच्चा कुछ नहीं खाता है तो किसी बालरोग विशेषज्ञ की सलाह लीजिए। हो सकता है कि बच्चे के शरीर में कुछ पोषक तत्वों की जैसे आयरन आदि की कमी हो सकती है जिसके कारण बच्चा खाना न खा रहा हो।
(ज्योति बहन की ये 700 वीं प्रस्तुति है)



आज बस
सादर

6 टिप्‍पणियां:

  1. उम्दा संकलन। मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, यशोदा दी। आपके द्वारा मेरी 700 वी प्रस्तुति का विशेष उल्लेख करना खुशी का एहसास करा गया।

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  2. अनदेखी बहन के लिए उपहार... हृदय स्पर्शी कहानी।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...हमारी रचना को शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं

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