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सोमवार, 17 अक्टूबर 2022

3549 / आस हैं और भी.....राह हैं और भी....

 


 नमस्कार  !  जहाँ त्योहार   उल्लास   लाते हैं वहीँ अचानक से किसी का आना भी उत्सव की तरह होता है ......  और ऐसे आने वालों को अतिथि की श्रेणी में रखा जा सकता है .......वैसे आज कल अचानक दुःख  के सिवाय  और कोई नहीं आता ....... और ये दुःख ऐसे अतिथि होते हैं जिनको जल्दी से जल्दी ही भगाने के   प्रयास किये जाते हैं ........या फिर ऐसे समय स्वयं से ही संवाद कर खुद में ख़ुशी ढूँढने का  प्रयास किया जाता है .......  शायद कुछ ऐसे ....

कुछ अधूरे किस्से ..

बात कुछ खुश्बूदार पत्तों की भी है,
केवल फूलों से ही वसंत नहीं .....

इन अधूरे किस्सों को पढ़ कर लगा कि जीवन में बहुत कुछ अनचाहा भी मिलता रहता है .... इसी को इंगित किया है इस रचना में .....


जाने कैसे रूप बदल कर

पाल वधिक हो जाता है

स्वार्थ जहाँ पर शीश उठाता

हाथ-हाथ को खाता है

ज्यों  - ज्यों   हम बड़े होते जाते हैं वैसे वैसे  ही हम जीवन को अलग दृष्टिकोण से देखने लगते हैं ....... लेकिन बचपन में न तो ऐसे अनुभव होते हैं और न ही  अगर और मगर की बात ..... ऐसे ही पढ़िए एक सोच ..... 

बचपन 

मगर ये सब बातें ,अहसास 70के दशक से 21वीं सदी की शुरुआत की बातें हैं.आज के दौर में ये बातें बेमानी हैं .पैसे की कीमत दिनोंदिन महत्वहीन हुई है. जो चीजें होश संभालने के बाद की बातें थी ;क़क्षा में अव्वल आने की खुशी की थी वे सब आज स्टेटस सिम्बल बन गई हैं घड़ी पहनने के लिये कक्षा मे अव्वल आना अनिवार्य नही रह गया है.

बचपन की बातों से निकल  आगे की ज़िन्दगी के बारे में सोचें तो लगता है  कि वक़्त कितना बदल जाता है ..........

और जब अंधेरों से मन घिरने लगता है तो सोच को एक रौशनी की तलाश होती है ....... शायद इसी लिए इस ब्लॉग का नाम भी नयी सोच रखा गया है ........

आस हैं और भी.....राह हैं और भी....



है राहें औऱ भी नजरे तो उठा !
उम्मीदें बढा फिर चलें तो जरा !
वजह मुस्कुराने की हैं और भी,
जो नहीं उस पर रोना तो छोड़े जरा...
यही सीख जब  अपनाने लगी
एक नयी सोच तब मन में आने लगी

सभी  अपने अनुभवों से बहुत कुछ सीखते हैं ......... सब लोगों के मन की बातें पढ़ते हुए लगा  कि  ज्यादातर हम स्वयं से संवाद करते हैं और हर तरह से खुद को ही समझाते चलते हैं ....... एक दृष्टि  इस पर भी ......


कहा ...दिल ने कुछ तड़प कर

जो चाहा था ,वही तो पाया..!!

वक्त ने कहा मुस्करा कर...

कहाँ परिणाम तुम्हे समझ में आया?

अब ये परिणाम समझ आये या न आये ...... लेकिन कुछ अनुभव नए पाठ भी पढ़ाते हैं .......हमेशा ही जो सोचा होता है वो नहीं होता ....... एक ही नज़र से देखना ठीक नहीं ........ सबके अपने ईमान होते हैं ........ ऐसा ही एक संस्मरण जो सच्ची घटना पर आधारित है ..... 


कुली  झल्लाया 
 आपका सामान आपके पास है .
और आप भी ट्रेन के अन्दर .
मेरा पैसा दीजिये 
फुर्सत में 
सबको  ढूँढ लीजिये  .

चलिए यहाँ तो ईमान भी  बच  गया और सोचने पर मजबूर भी कर दिया ....  लेकिन  सोचने पर मजबूर कर रही है ये लघु कथा भी कि  क्या हमेशा बड़े लोग सही होते हैं .........


अब आप ही बताइए भला ऐसे में कोई इनके साथ ज़्यादा देर तक तो नहीं बैठ सकता न.. मैं बाबा के काम कर दूँगा पर उनके साथ बैठना मुझसे न होगा न ।”

“हाँ दादी के तो मैं सारे काम भी कर दूँगा, बैठूँगा उनके पास, बात भी करूँगा, पैर तो मैं उनके दबाता ही हूँ जब वो कहती हैं ।”

जहाँ एक ओर व्यवहार दूसरों को आकर्षित करता है वहीँ अनुशासन  ज़िन्दगी को नए आयाम देता है .......  अब इसे  सज्जनता  कहें या  कर्तव्य .... आप ही निर्णय करें ..... 

सज्जनता का दंड ..

वीरानी के सन्नाटे को चीरती हुई झींगुरों की आवाज़ वातावरण में दहशत पैदा कर रही थी, किन्तु इस सब से अभ्यस्त रामपाल चौकन्नी निगाहों से दायें, बायें देखता हुआ आगे बढ़ रहा था। सहसा वह कदम रोक कर अपनी जगह रुक गया। उसे दूर वृक्षों के झुरमुट के मध्य से आती  हल्की-सी कुछ आहट सुनाई दी। सधे कदमों से वह आहट की दिशा में कुछ आगे बढ़ा। रौशनी मद्धम हो चुकी थी, किन्तु उसकी गिद्ध-दृष्टि ने एक साये को लगभग पचास मीटर की दूरी पर रेंग कर चौकी की तरफ बढ़ते पाया। वृक्षों की आड़ ले कर वह तेज़ी से, लेकिन सतर्कतापूर्वक साये की दिशा से हट कर कुछ आगे तक गया। कुछ ही मिनट में वह साये के दस फीट पीछे  पहुँच चुका था।

इस कहानी के साथ ही आज की हलचल यहीं समाप्त करती हूँ ........ यूँ हलचल तो आप लोगों के आने से और अपने विचार प्रगट करने से होगी ..... अब देखना है की आप सब पाठक कितनी हलचल प्रस्तुत करते हैं ....... सन्नाटा तो न होगा न ?

प्रतीक्षा रहेगी आपके सुझावों की ......

नमस्कार .

संगीता स्वरुप


30 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार अंक
    सज्जनता का दंड में लिंक नही है
    तलशती हूँ
    सादर नमन

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    उत्तर
    1. मैं फेल हो गई
      नहीं ढूंढ पाई
      सज्जनता का दण्ड का लिंक
      अब तो दीदी ही बताएगी
      सादर

      हटाएं
    2. आभार यशोदा ...... अब अंतिम लिंक पर पहुँच पाओगी .

      हटाएं
    3. आदरणीय दीदी
      भाई गजेंद्र भट्ट फालोव्हर का लिस्ट नहीं लगाते , शब्द इन पर लिखते हैं
      आभार
      सादर नमन

      हटाएं
    4. गजेंद्र भट्ट जी फॉलोवर का गैजेट लगाए हैं और तुम वहाँ अभी फॉलोवर दिख रही हो ।

      हटाएं
    5. शुभ संध्या दीदी
      आज ही किए हैं फालो
      सादर नमन

      हटाएं
    6. शायद मेरे द्वारा चुना गया थीम ही ऐसा है कि प्रयास करने पर ही फॉलोवर की सूची दिखाई देती है। आपको कष्ट हुआ यशोदा जी, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ।

      हटाएं
  2. वंदन
    वाह:
    और सिर्फ वाह से भी संतोष नहीं हो पाता है

    जवाब देंहटाएं

  3. हमेशा की तरह नायाब प्रस्तुति । एक से बढ़ कर एक बेहतरीन सूत्र । सुन्दर और पुष्प गुच्छ सी प्रस्तुति में मुझे सम्मिलित करने के लिए हार्दिक आभार आ.दीदी ! सादर सस्नेह वन्दे !

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    उत्तर
    1. सराहना हेतु आभार मीना । यूँ ही खूबसूरत कथ्य लिखती रहें ।

      हटाएं
  4. आज के संकलन में, संगीता दीदी के श्रमसाध्य खोज से सजी पठनीय रचनाएँ...
    निवेदिता दिनकर जी की.. कुछ अधूरे किस्से.. यादों को सुंदर सांचे में ढालती मनहर रचना ।
    कुसुम कोठारी जी की.. जीवन विरोधाभास.. इंसान के व्यवहार को परिभाषित करती बेहतरीन रचना ।
    मीना भारद्वाज जी का संस्मरण आलेख.. बचपन.. यादों का सुंदर सरमाया.. सुंदर अभिव्यक्ति।
    सुधा देवरानी सखी की रचना.. आस भी हैं और भी.. राहें भी हैं और भी.. जिंदगी मुस्कराती रहे .. सकारात्मक भाव से सजी सुंदर रचना।
    रंजू भाटिया जी की रचना.. प्रीत की छाया.. .. प्रीत की सार्थकता को परभाषित करती बेहतरीन रचना ।
    देवेन्द्र पाण्डेय जी की अभिव्यक्ति.. विश्वास.. ईमान की भट्ठी में तपा प्रेरक संस्मरण सृजन।
    गजेंद्र भट्ट जी की कहानी . सज्जनता का दंड.. सैनिकों के सौहार्द और त्याग का सुंदर सामंजस्य दर्शाती रोचक कहानी ।
    सुंदर वैविध्यपूर्ण संकलन में मेरी लघुकथा "व्यवहार" को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार और अभिनंदन आदरणीय दीदी। अगले अंक के इंतजार में.. जिज्ञासा सिंह

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    उत्तर
    1. प्रिय जिज्ञासा ,
      त्वरित प्रतिक्रिया पा कर मन प्रफुल्लित हुआ । थोड़ी मेहनत तो लगती है सूत्र ढूँढने में लेकिन पाठकों की गहन प्रक्रिया पा कर सार्थक हो जाती है । व्यस्त समय से इतना समय निकाल कर पढ़ती हो , मेरा मन भी प्रसन्न हो जाता है । आभार ।

      हटाएं
  5. बहुत सुंदर हलचल प्रस्तुति, संगीता दी।

    जवाब देंहटाएं
  6. प्रिय दी,
    आपकी लिखी भूमिका पढ़कर
    अपने लेखन के शुरुआत में लिखी कुछ पंक्तियाँ याद आ गयी -
    -----/----
    विसंगतियों से भरे इस जीवन का
    हर पल नया रंग लाये,
    अगले पल क्या घटित होने वाला
    कोई भी जान नहीं पाये,
    जो संग है हमारे वर्तमान को छोड़
    अतीत की यादों मे फिरे
    भविष्य की फ्रिक्र में आज की खुशी
    पल-पल इंसां गँवाये।
    कुछ भी कहाँ एक-सा रहता निरन्तर
    वक़्त ये चलकर बतलाये।
    खूबसूरत ज़िदगी का उपहार मिला है
    क्यों न हरपल को जीभर जी जायें।
    ------
    रचनाओं के विषय में क्या कहें दी हर रचना बेहद खास है। नयी-पुरानी रचनाओं के संयोजन और उसपर भावों को जोड़ती आपकी लिखी
    सुंदर पंक्तियाँ आज के इस अंक को सुंदर और सार्थक बना रही।
    अगले विशेषांक की प्रतीक्षा में
    सप्रेम प्रणाम दी
    सादर।

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    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता ,
      तुम्हारा लिखा गहन भाव लिए होता है । भूमिका पढ़ते हुए अपने लिखे को याद किया तो मेरा लिखना तो सार्थक हो गया । प्रस्तुति की सराहना हेतु हार्दिक आभार ।।

      हटाएं
  7. नई पुरानी रचनाओं को एक सुत्र में पिरोकर एक नायाब तोहफा देती है आप हम सभी को। आपके इस श्रमसाध्य कार्य को नमन दी 🙏

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    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी ,
      मेरे छोटे से प्रयास को मन से सराहते हो । ऊर्जा का संचार हो जाता है । सराहना हेतु हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  8. बहुत बहुत शानदार!
    आ0 संगीता जी का श्रमसाध्य प्रयास हमेशा एक लाजवाब संकलन बन कर उभरता है।
    नई पुरानी रचनाओं का सुंदरतम गुलदस्ता आपकी विशिष्ट टिप्पणियों से ताजा महका महका सा लग रहा है।
    बहुत प्यारा अंक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    मेरी रचना को हलचल में सजाने के लिए हृदय से आभार आपका।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं
  9. हमेशा की तरह बहुत ही नायाब प्रस्तुति । एक से बढ़कर एक लिंक्स पर आपकी सार्थक एवं आकर्षक प्रतिक्रिया को तो क्या ही कहने....अपनी पुरानी रचना को भी यहाँ शीर्षक में देख अत्यंत खुशी हुई ।तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका
    सभी रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाएं ।🙏🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा ,
      सराहना के लिए बहुत शुक्रिया । आपकी नई रचनाओं का इंतज़ार है ।।

      हटाएं
  10. आपका सन्देश आज देख पाया हूँ आदरणीया संगीता जी! अत्यधिक विलम्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ। नोटिफिकेशन्स में आज देखा और उसे स्वीकृत करने पर ही आपका सन्देश ब्लॉग पर आ सका है। मेरी रचना को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत आभारी हूँ महोदया! यशोदा जी को रचना तक पहुंचाने के लिए किये गए आपके भागीरथी प्रयास के लिए भी आभार प्रकट करता हूँ

    जवाब देंहटाएं

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