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मंगलवार, 11 अक्टूबर 2022

3543 जाओ अब आसमां छोड़ो , निरभ्र शरद आने दो !!

 सादर अभिवादन

मौसम अभी भी गुमसुम सा है
ऐसा लग नहीं न रहा है कि
वर्षा काल बीत गया
फिर भी लोग लगे हुए हैं
दीपावली के स्वागत के लिए

बस अब रचनाएँ पढ़िए



मन को शीतल करती आभा,
अद्भुत नेह जगाती।
खत्म विकारों को करती यह,
केवल प्रीत बढ़ाती।
हर मन में बस जाए आ कर
ऐसा न्यारा-न्यारा चाँद।।




‘चेला तुम्बी भर के लाना, तेरे गुरु ने मंगाई l एक गुरु चेले से भिक्षा मंगा रहा है और शर्त भी लगा रहा है l पहली भिक्षा-जल की लाना- कुआँ-बावड़ी छोड़ के लाना, नदी नालेके पास न जानाl दूजी भिक्षा-अन्न की लाना-गाँव-नगर के पास न जाना, खेत-खलिहान को छोड़ के लाना l तीजी भिक्षा-लकड़ी लाना-डांग(जंगल)-पहाड़ के पास न जाना, गीली-सूखी छोड़ के लाना, लाना गठरी बना के l चौथी भिक्षा-मांस की लाना- जीव-जंतु के पास न जाना, जिन्दा-मुर्दा छोड़ के लाना-लाना हंडी भर के l




टाँक दिया रूह को उस पीपल की शाखों पर l
दर्द कभी रिस्ता था जिसकी कोमल डालों से ll

सावन में भी पतझड़ बातों से मुरझा गया पीपल l
सूना हो गया चौराहा उजड़ गया पीपल राहों से ll





यह खेल बहुत ही विभत्स
होता जा रहा है
जहाँ हम केवल
अपना स्वार्थ चर रहे हैं

भीड़ चल रही है निरंतर
दीमकों की तरह एक दूसरे का
धीरे-धीरे भक्षण करती हुई




जाओ अब आसमां छोड़ो !
निरभ्र शरद आने दो!
शरदचंद्र की धवल ज्योत्सना
धरती को अब पाने दो !




सुनो इन्द्र देवता अब आपातकाल स्थिति आन पड़ी है भारी
रोक लो अब मेघों का कहर ,बिपदा आन पड़ी है अत्यंत भारी

गाँव ,देहात में छाया विकट कहर ,खेत ,खलिहान सब जलमग्न  
घर -छप्पर गिर रहे टूटकर ,मजबूर हुए सब  गरीब इंसान
.....
आभारी हूं आदरणीय भैय्या श्री गोविन्द सेन जी का
उन्होंनें एक मेल में अपनी कहानी भेज दी है
आज बस
सादर

8 टिप्‍पणियां:

  1. दीवाली की तैयारी पर पानी फेर जाए न

    उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  2. सभी लिंक्स बेहतरीन रहे । आभार इस मंच पर सब समेटने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. उम्दा लिंको से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति।
      मेरी रचना को स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका ।

      हटाएं
    2. प्रस्तुति के शीर्षक में अपनी रचना की पंक्तियाँ देखना बहुत सुखद रहा।
      सादर आभार🙏🙏

      हटाएं

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