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सोमवार, 22 अगस्त 2022

3493 / ऐतबार तो है .....

  


नमस्कार  !  यूँ तो मैंने सोचा था कि  ब्लॉग्स  की मैराथन रेस  के बजाये  मैं  केवल १०० मीटर की रेस ले कर  आऊँगी , बल्कि ५० मीटर की भी होती हो तो उतनी ही ....... लेकिन जब  ब्लॉग्स  पढने बैठती हूँ  तो कोई छोड़ा नहीं जाता .....आज कल पाठक कम और लेखक ज्यादा हो रहे हैं .......एक गुज़ारिश है  कि हम सभी चर्चाकर अपना समय दे कर  ब्लॉग्स  पढ़ कर लिंक्स  लगाते  हैं ,तो कृपया   पाँच लिंकों के आनंद पर जो लिंक्स दिए जाते हैं उन तक अवश्य पहुँचें ......... वैसे भी एक बात जो मुझे अनुभव हुई है  कि जिनके  ब्लॉग्स  की पोस्ट होती है वही बस  यहाँ आते हैं  और धन्यवाद ज्ञापन कर हौसला बढाने  का प्रयास करते हैं .......जबकि इस मंच की उपयोगिता है  कि ब्लॉगर साथी नयी  पोस्ट तक यहाँ से आसानी से पहुँच कर ब्लॉगर्स  की पोस्ट पढ़ कर उनका हौसला  बढ़ाएं ........  खैर .... ये तो आप लोगों पर छोड़ती हूँ  कि इस मंच को उपयोगी समझें  या महज़ खानापूर्ति ......... हम लोग तो  निष्ठा  से अपना काम करते रहेंगे ................... 

मेरे मन की  बात बहुत हुई ...... अब हमारी एक प्रतिष्ठित ब्लॉगर के मन में कुछ प्रश्न हैं ........ वो चाहती हैं  कि उस पर कुछ विचार विनिमय हो .... तो अपने पाठकों से निवेदन है  कि  वहाँ जा कर अपने विचार खुल कर लिखें ..... उन्होंने सबसे पूछा है ...

एक सवाल -


क्या कैलेणडरों निमंत्रण-पत्रों और प्रयोग में आने के बाद फेंक दी जानेवाली चीज़ों पर भगवान के फ़ोटो छपवाना सही है?

आप लोग इस प्रश्न पर मंथन करें और सही गलत का निर्णय कर कुछ समाधान भी देने का प्रयास करें ......
सच बात तो ये है कि मन में बहुत सारे प्रश्न उठते हैं  और उन पर काफी सोच विचार भी चलता रहता है ........ कभी कभी अपने आप से संवाद करते हुए क्या से क्या सोच लेते हैं उसका एक  उदहारण  है ये रचना .....


गोकुल की वह सुबह,

सोहर के बीच 
माँ यशोदा ने जब मुझे कसकर गले लगाया 
उनके बहते आँसुओं को 
अपनी नन्हीं हथेली पर महसूस करते हुए 
मेरा आँखें माँ देवकी को
वासुदेव बाबा को ढूंढ रही थीं ...


जन्मष्टमी  का त्यौहार तो मना लिया लेकिन  जैसे कृष्ण कुछ और कहना चाह  रहे हैं ..... इस रचना को पढ़ कर कुछ ऐसा ही एहसास हुआ ... रिश्तों को  जितनी अहमियत कृष्ण के किरदार ने  दी है  शायद ही कोई और ऐसा हो .....फिर भी लोग समझते तो हैं रिश्तों को ...... देखिये  कुछ बानगी इन रचनाओं में ......
अरे नहीं बेटा..कोई बात नहीं.. बस कुछ सिलन टूट गई हैउसी को सिलने में लगी हूँ..पर सिल ही नहीं पा रही ।

सावन लिखा

तो

मायका याद आया,

इस घर से वहाँ जाना,

नीम पर पड़ा झूला,

सारी सहेलियों की टोली,


और कभी कभी रिश्तों में बर्फ तो कभी लावा भी  महसूस होता है ...... 

लावा


एक सन्नाटा

एक ख़ामोशी

किस कदर

एक दूजे के साथ है

"सन्नाटा" जमे हुए लावे का

"ख़ामोशी "सर्द जमी हुई बर्फ की


और सबसे मजेदार बात ये कि जहाँ एक दूसरे से परिचित नहीं , कुछ जानते नहीं  .... बस बाँधे गए  बंधन में  तब क्या क्या महसूस होता है ....... पढ़िए एक बेहतरीन रचना .....


वे 

न प्यार था न परिचय

बस दो अजनबी…

न वो सूरज था न वो किरन 

न वो दिया था न वो बाती। 

न वो चाँद था और न वो चाँदनी

एकदम विपरीत थे वे दोनों…


अब बताईये भला इतना छोटा भी कोई शीर्षक रखता है ........ ऐसा लग रहा कि गलती से लिख दिया ----- वे .......... खैर ....... इससे निकल कर आ जाते हैं  आज के माहौल में , जहाँ लड़कियाँ पढना तो चाहती हैं लेकिन उनके पिता क्या अवधारणा रखे हुए हैं ....

ख़ामोश सिसकियाँ


”कैसे नहीं लगती दोनों जगह वाली दो-दो खेजड़ी की हैं, पूछो सुनीता, सुमन और सजना से, हम चारों ने मिलकर इकट्ठा की हैं।”

रघुवीर चोसँगी ज़मीन में गाड़ते हुए पसीना पोंछता है।

आज भी गाँव में ऐसी स्थिति देखने को मिलती है ... भई ही भाई का गला भी काट रहा .....  कहाँ कद्र है रिश्तों की ? और इन्हीं बातों से विचलित मन  क्या क्या सोचने पर मजबूर कर देता है .....

श्वास अंतिम दौर में



भूलता अस्तित्व अपना

खो रहा इस ठौर में 

राह से भटका हुआ हूँ

बन गया कुछ और मैं।

भटकते -भटकते भी  इंसान का इंसान से ऐतबार नहीं जाता ...... भले ही हर बार धोखा मिलता रहे ......  लीजिये पेश है  एक खूबसूरत ग़ज़ल ----

ऐतबार तो है .

समा गयी रूहें ,बिछोह कैसा अब

हिज्र टले न टले , क़रार तो है ....


फुर्सतें कब उलझनों में दुनिया की 

वक़्त मिले न मिले,इख़्तियार तो है....

 यूँ हमें फुर्सत मिले न मिले ....... लेकिन प्रकृति  जो  छटा  चारों ओर बिखेरे हुए है  , उसके लिए तो  अपने आप  ही वक़्त निकल आता है ....... एक खूबसूरत रचना .....

अनुरिमा 


है सुलक्षण रंग मधु  घट
स्वर्णिमा अभिधा समेटे
क्षण विलक्षण अनुरिमा
वसुधा बाग़ महका रही है .....!!

प्रकृति की बात तो हो गयी , लेकिन आपने ये भी पढ़ा होगा  कि आवश्यकता  आविष्कार की जननी  है ....... तो आज जानिए जिसे आप में से हर कोई प्रयोग करता है कब अचानक इसकी ज़रूरत पड़ जाती है ...... इसका आविष्कार क्यों और कैसे हुआ ...... 

सेफ्टी पिन ... 

सेफ्टी पिन एक ऐसी वस्तु है जिसे छोटा-मोटा ऑलराउंडर कहा जा सकता है। कपड़ों को सम्हालने के अलावा ये कभी बटन का काम करता है तो कभी औजार का। आम घरेलू जीवन में तो इससे इतने तरह के काम लिये जाते हैं, जिनके बारे में लिखते-लिखते लंबी सूची बन जाएगी। 

आज बस इसके साथ  ही  हलचल  को विराम देती हूँ ......... इस रिले रेस  में साथ साथ दौड़  लीजियेगा .....

धन्यवाद के साथ नमस्कार .....


संगीता स्वरुप . 




36 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार अंक
    एक सवाल
    जवाब की प्रतीक्षा में
    सादर नमन

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  2. कई बार कोशिश की अनुपमा जी के ब्लाग पर टिप्पणी प्रकाशित नहीं हो रही है .
    आपका आभार संगीता जी ,मेरी समस्या का समाधान ढूँढने में सहयोग हेतु - देखें कोई विचार करता है या चुप्पी ही खिंची रहेगी.

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बहुत शुक्रिया दीदी ,मेरी रचना को स्थान देने के लिए ...🙏🙏

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  4. आपके सार्थक चयन में खुद को पाकर एक उत्साह मिलता है अपने ही मन में तीव्र गति से तैरने का, कोई मोतीवाला सीप ढूंढ लाने का ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. रश्मि जी ,
      आप भी कुछ खास में नित नए मोती चुन कर देती हैं । उसी एहसास को ब्लॉग पर लाने का प्रयास मात्र है । हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  5. बेहतरीन रचना संकलन एवं प्रस्तुति सभी रचनाएं उत्तम रचनाकारों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं मेरी रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार आदरणीया सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. अपने सार्थक चयन में आपने मेरा सवाल सबके विचारार्थप्रस्तुत किया आभारी हूँ .

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    उत्तर
    1. आदरणीय प्रतिभा जी ,
      ये सवाल बहुत ज़रूरी है , एक बार तो जो इस सवाल से गुज़रेगा वो मंथन तो ज़रूर करेगा । आपकी उपस्थिति ही ऊर्जा का स्रोत है । आभार ।

      हटाएं
    2. प्रतिभा जी, आपका प्रश्न विचारणीय है। मैं कार्ड्स कभी नही़ फेंकती। ढेरों एकत्रित हैं।
      स्टैम्प्स पर भी जो महापुरुषों के चित्र होते हैं। पुराने लिफ़ाफे जब
      पैर से रौंदे जाते हैं, तो बहुत दु:ख
      होता है।- शकुन्तला बहादुर

      हटाएं
  7. एक लम्बे से आना जाना और बीमारी के चलते नियमित नह़ीं हो पा रही है। क्षमा चाहती हूँ । मोबाइल पर ब्लॉग ठीक से काम नहीं करता है, नहीं तो रोज एक दो लिंक पढ़ना भारी नहीं है।

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    उत्तर
    1. रेखा जी ,
      आप शीघ्र स्वस्थ हों , यही कामना है । एक दो लिंक्स पढ़ते रहें और अपनी पोस्ट नियमित डालते रहें । आप यहाँ आयीं इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

      हटाएं
  8. संगीता जी बहुत बहुत धन्यवाद आपका सुंदर लिंक पढ़ने को मिले।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुंदर संकलन।
    विचारणीय भूमिका।
    पढ़ती हूँ सभी रचनाएँ।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  10. सेफ्टी पिन पढ़कर आ रही हूँ. बढ़िया है.

    जवाब देंहटाएं
  11. आज के अंक में कविता, गीत, लघुकथा, आलेख को पढ़कर ज्ञान के साथ साथ सामयिक और यथार्थ का चिंतन भी पढ़ने को मिला.....
    आदरणीय प्रतिभा दीदी की ईश्वर और आस्था के दिखावे पर विचारणीय रचना ।
    रश्मि प्रभा दीदी की रचना में भगवान श्री कृष्ण के मन का बहुत ही मार्मिक भाव ।
    रेखा श्रीवास्तसा दीदी की सावन लिखा तो मायका याद आया.. मन को छूती रचना ।
    रंजू भाटिया जी की जीवन संदर्भ पर हृदयस्पर्शी रचना ।
    वे, उषा किरण जी की मन में उतरती सुंदर रचना ।
    अनीता जी की खामोश सिसकियां, लघुकथा..यथार्थ का चित्रण ।
    अभिलाषा जी का श्वांस अंतिम दौर में.. सुंदर गीत ।
    मुदिता जी को ऐतबार तो है.. सराहनीय गजल ।
    अनुपमा दीदी की अनुरिमा.. भाव भरी सुंदर रचना ।
    कुमार गौरव अजीतेंदु का रोचक आलेख सेफ्टी पिन के आविष्कार की पठनीय और ज्ञानवर्धक कहानी...
    ... आपके श्रमसाध्य संकलन की विविधता को देख और पढ़कर आनंद आ गया । इस सुंदर सामयिक और परिष्कृत अंक में मेरी लघुकथा को शामिल पाकर गदगद हूं आभार दीदी, बहुत शुभकामनाएं 🌹🌹👏👏

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    उत्तर
    1. प्रिय जिज्ञासा ,
      हर लिंक के लिए विशेष टिप्पणी मन को भाव विभोर कर रही है । हर ब्लॉग को पढ़ना और वहां अपनी प्रतिक्रिया देना उसके पश्चात यहाँ विस्तृत व्याख्या कर मुझे भी आश्वस्त करना .... इसके लिए तो आभार भी क्या कहूँ । फिर भी हार्दिक आभार ।

      हटाएं

  12. हमेशा की तरह सुन्दर संकलन , सभी लिंक पर जाकर पढ़ा । हमेशा की तरह कुछ पर कमेन्ट संभव हो सका, कुछ पर नहीं । मैं मोबाइल इस्तेमाल करती हूँ शायद इसी कारण ये परेशानी होती है हर बार।
    मेरी रचना को भी स्थान देने का शुक्रिया । आपकी बात ठीक है अब से कविता का शीर्षक `वे’ की जगह `वे दोनों ‘ कर दूँगी ।
    'एक सवाल’ -में बहुत अच्छा सुझाव दिया है। बल्कि कपूर, रोली वगैरह के पैकिट पर भी भगवान की तस्वीर नहीं होनी चाहिए ।
    `मैं अपना ही अर्थ ढूँढता हूँ ‘ -में कृष्ण की पीड़ा खूब लिखी है।…तुम भले ही मुझे द्वारिकाधीश कहो पर अपने एकान्त में…वाह , बहुत खूब !
    'टाँके’-बहुत गहरी सम्वेदनशील लघुकथा ।
    `सावन’-सच है बिना मायके के कैसा सावन ?😔
    `लावा’- सच है, दो विरोधाभास का समीकरण ही जीवन है।
    `ख़ामोश सिसकियाँ ‘- पिता की आकुलता ने मन बींध कर रख दिया।
    `श्वास अंतिम दौर में’-जीवन में बदलते मौसम में झुलसता, ठिठुरता, बहता, रुकता प्राणी जान भी नहीं पाता कि कब काल पासा फेंक देगा…अद्भुत रचना!
    `एतबार तो है’- ….एतबार तो है ! वाह बहुत सुन्दर रचना।
    `अनुरिमा’- उषा बेला का कितना सुन्दर, मोहक वर्णन…वाह !
    `सेफ्टीपिन’- हर उपयोगी वस्तु का पहली बार किसी ने आविष्कार किया होगा ये ध्यान ही नहीं देते…महत्वपूर्ण जानकारी ।
    हर बार की तरह ज्ञानवर्धक, मनोरंजक व आकर्षक लिंक चुन कर लाई हैं । सभी रचनाकारों को और आपको बहुत बधाई 💐

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    उत्तर
    1. उषा जी ,
      बहुत प्रयास किया कि आपको न दौड़ाऊँ ..... लेकिन दिल है कि मानता नहीं । आप इतनी लगन से मेरे दिए लिंक्स पढ़ती हैं कि कुछ भी अच्छा लिखा छोड़ने का मन नहीं करता है । आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए किसी पुरस्कार से कम नहीं । हार्दिक आभार ।

      हटाएं
    2. प्रिय दीदी,हर अंक पर आई पर लिखना काफी दिनों से ना हो सका।आपकी प्रस्तुति हमेशा विशेष रही।बहुत सुन्दर लेख,लघुकथा और कविताओं को पढ़कर बहुत आनन्द आया।और सुधि पाठकों की प्रतिक्रियाएँ बहुत ही रोचक और प्यारी लगी।यही विचार रचनाकारों के लिए संजीवनी हैं।सभी ने बहुत अच्छा और सार्थक लिखा।सहज अभिव्यक्ति सहज रूप में ही आत्मा को छूती है।आज के सम्मिलित सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई।आपको आभार और प्रणाम।यूँ ही डटी रहें आप सद्भावना के इस अप्रितम मंच पर 🙏🙏🌹🌹🌺🌺

      हटाएं
    3. प्रिय रेणु ,
      मेरी प्रस्तुति पर पाठक मिलते रहें यही चाहती हूँ । वैसे विशेष पाठकों का हमेशा इंतज़ार रहता है ।। हृदयतल से आभार ।

      हटाएं
  13. प्रिय अनीता की लघुकथा खामोश सिसकियाँ बहुत मार्मिक लगी।कितना दर्द छिपा है पिता की व्यथा में !!--------
    कलियुग में कौवों का बोलबाला है। कैसे बचेंगीं चिड़ियाँ ?
    इसी भय ने ना जाने कितनी चिडियों के पर कुतर दिये।हार्दिक बधाई प्रिय अनीता।

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  14. प्रिय दी,
    आप कहाँ इ भाग-दौड़ प्रतियोगिता के चक्कर में पड़ रही।
    आप बस टूरिस्ट गाइड की तरह हम पाठकों का परिचय करवाती रहिये सुरम्य,मनोरम कुछ प्रसिद्ध, कुछ गुमनाम पर्यटन स्थलों का।
    दी हम आपसे सहमत है कि प्रत्येक चर्चा कार अपनी तरफ से ईमानदार कोशिश करता है कि वो पाठकों को अच्छी रचनाएँ पढ़वाएँ पर जब जिनकी रचनाएँ हैं सिर्फ़ वही आते हैं और कभी कभी तो वो भी नहीं तो निराशा और नकारात्मकता महसूस होती है फिर सूत्र संयोजन करने में कोई उत्साह नहीं लगता।
    हम चर्चाकार जब प्रकाशित रचनाओं में कुछ नहीं
    लगा पाते हैं तो इसका मतलब ये नहीं किसी रचना या रचनाकार से कोई व्यक्तिगत परेशानी है बल्कि उस चर्चा कार को जो रचनाएँ ज्यादा जरूरी लगी उसने वही लगाया।
    खैर ,यह विषय मेरे कुछ कहने से अधिक समझने का है।
    सभी अपना दायित्व समझे तो शायद कोई हल.निकले।
    आज की सभी रचनाएँ हमेशा की तरह विशेष लगी।
    आपके द्वारा प्रस्तुत अंक में अपनेपन का एक आकर्षण महसूस होता जिसे पढे बिना और.जिसपर अपने विचार लिखे बिना रहा नहीं जाता।
    आज प्रतिक्रिया में ज्यादा लिख गये इसलिए शीर्षक कविता स्थगित।
    अगले अंक की उत्सुकता में
    सप्रेम प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता ,
      ई भाग दौड़ में इस चक्कर में पड़े कि जोश में हम होश खो बैठते हैं तो जो हमारे विशेष पाठक हैं वो पढ़ते पढ़ते कहीं थक न जाएँ , तो थोड़ा आराम ज़रूरी है न ।
      फिर भी कहाँ चैन लेने दिया । तुम हमेशा ही सभी रचनाएँ पढ़ कर प्रतिक्रिया देती हो । अच्छा लगता है । सराहना हेतु हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  15. दी सादर धन्यवाद आपने मेरी रचना को यहाँ स्थान दिया, और भी रचनाएं ज़रूर पढूंगी 🙏🙏❤️

    जवाब देंहटाएं

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