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बुधवार, 20 जुलाई 2022

3459...कुछ मीठा कुछ खारापन है..

 ।।प्रातः वंदन ।।

"राह अलग है चाह अलग है

विषयों का निर्वाह अलग है

ठकुर सुहाती बोल नही हैं

शब्‍दों की सौगात अलग है।

किस किस के वचनामृत चीखें

दबा रहे भजनों में चीखें

उसकी चीख जुलाहे की है

इस कवि की तो जात अलग है..!!"

 यश मालवीय

सृष्टि के कण कण में विविधता  होती हैं ,जो सौन्दर्य का कारण भी है,इसी अनुभव को देखते हुए.. नजर डालिए आज की प्रस्तुतिकरण पर...✍️

तुम्हारी भैस मेरा खेत चर गई



    खेतों की सुरक्षा के लिए बाड़ और जल की सुरक्षा के लिए पाल की जाती है। बाड़ की उपयोगिता तभी है, जब खेती लहलहा रही हो और पाल की उपयोगिता तभी है जब बाँध में जल हिलोरें भर रहा हो। जिस खेत में खेती नहीं..

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रिश्तों की पहचान

सीखो सीखो कुछ जानों 

 कुछ  की असलियत  पहचानों 

सही गलत का भेद जानो 

सभी एक जैसे नहीं होते समझो |

एक ही कला निर्णायक  नहीं होती


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मालुम है ले गया था तुम्हारे होठों की खिलखिलाती हँसी
वो खनकते कंगननीले आसमानी रँगों वाली काँच की चूड़ियाँ
वो टूटी पाजेब ... धागे के सहारे जिसे पांवों में अटका रखा था तुमने..

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तुझे खोकर बहुत दिनों तक ढूंढता रहा मैंने तुझे
आ भी जाओ  के कई दिन हुए खुद से मिले हुए
कुछ   मीठा  कुछ  खारापन है,
क्या-क्या स्वाद लिए जीवन है।

कैसे   आँख   मिलाकर   बोले,
साफ़  नहीं जब उसका मन है।
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कभी न भूलने वाली आवाज़..सुनिए..
कभी किसी को मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता...
🙏ऊँ शाँति🙏
।। इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️

9 टिप्‍पणियां:

  1. भूपेंद्र जी को सादर श्रद्धांजलि 🙏🙏 ।
    सच है किसी को मुक्कमल जहाँ नहीं मिलता । पठनीय सूत्र मिले आभार ।

    जवाब देंहटाएं

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