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गुरुवार, 7 जुलाई 2022

3447...दर्द उठा तरुवर के मन में

शीर्षक पंक्ति:आदरणीया मीना भारद्वाज जी की रचना से। 

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक पाँच ताज़ातरीन रचनाओं के लिंक्स के साथ हाज़िर हूँ-

स्वप्न क्या करते

लगने लगता सारा जग एक

फरेवों की दुकान सा

अब सुविचारों पर से भी

दूर हटा  मन मेरा।    

 सूक्ष्म स्थूल

किसी दिन वह कहता कि वह अत्यधिक प्रेम से ऊब जाता है..

किसी दिन किस्सा सुनाता कि कैसे उसे अपनी करीबी मित्र से प्यार हो गया था लेकिन बस इकतरफा वह महिला तो अपने पति के प्रति वफादार थी।

पोर्ट्रेट

पवन झकोरों के संग देखो

टूटे शाख से पल्लव

दर्द उठा तरुवर के मन में

उठती नज़र हुई नम

तुम नहीं समझोगे

ऐसा लगने लगा है,मैं हूँ इक नदिया विकल सी ,

तुम सागर सरीखे,मैं तुमसे मिलने को अधीर सी,

अतृप सी दौड़ती,मचलती,छलकती हुई आती हूँ ,

तुम्हारे एहसास संग अपना सार सम्पूर्ण पाती हूँ।

अनकहे शब्द

फेसबुक पर ऐसा ही एक अदबी ग्रुप है "अनकहे शब्द" जिसकी संस्थापक आदरणीया रेखा नायक रानो जी,प्रबंधक श्री मनोज बेताब जी और संरक्षक सीनियर उस्ताद शायर श्री मुख़्तार तिलहरी साहब हैं।ग्रुप के एडमिन/संचालन समूह में अन्य विद्वान और समर्पित साहित्यकारों के साथ बहुत ही मुख़लिस शायर श्री सईद अहमद तरब साहब भी हैं।

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फिर मिलेंगे। 

रवीन्द्र सिंह यादव 

9 टिप्‍पणियां:

  1. शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहतरीन सूत्रों से सजी बहुत सुन्दर प्रस्तुति में मेरे सृजन को सम्मिलित करने के लिए सादर आभार आदरणीय रवीन्द्र सिंह जी ।

    जवाब देंहटाएं

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