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मंगलवार, 28 जून 2022

3438 ....चलते रहने का सुख सबसे बढ़कर है

सादर अभिवादन
मंगल की सीधी-सादी प्रस्तुति

जो कह दिया वह शब्द थे;
जो नहीं कह सके
वो अनुभूति थी ।।
और,
जो कहना है मगर ;
कह नहीं सकते,
वो मर्यादा है ।।

...अब रचनाएँ



अम्मा औ बाबा की याद सतावे
रहि रहि करेजवा में पीर मचावे
बीरन आजु बुलैहौं,चुनरिया धानी...

आयो सावन मास चुनरिया धानी लैहौं...



झारखंड की पूर्व राज्यपाल और
अब राष्ट्रपति भवन की राह पर अग्रसर
एक आदिवासी महिला
आइए जानते हैं उनकी कहानी





ओढ़ ओढ़णी चाले टेडी
रंग बुरकावै नुआँ-नुआँ।
दिण दोपहरी सूरज ढळता
धूणी सिळगे धुआँ-धुआँ।
काळी-पीळी सज सतरंगी
फिरती-घिरती हिया छळे।।




कार्य -क्षमता कम और ज़िंदगी ऊलजलूल हरकतों में ही कटती है
बच्चे -बूढ़े सब हो रहे अभ्यस्त सबकी इसके साथ छनती है
जो रहते इससे दूर कामयाबी उनके साथ चलती ही है




कोई तो कहता है तेरी आस रहे ,
पथ के पथ पर शीर्ष दिगन्तर बना रहे  ,
चलते रहने का सुख सबसे बढ़कर है ,
लिख पाऊं कुछ ऐसा जग में मान रहे !!




उस पर पत्नी कहती है काम करोगे तो व्यस्त रहोगे,
हाथ पैरों के जोड़ सलामत रहेंगे और स्वस्थ रहोगे।  

जाने सरकार को क्या जल्दी थी हमें घर बिठाने की,
अभी तो हम बहुत सेवा कर सकते थे ज़माने की।  


आज बस

सादर 

8 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. आज कल कहाँ हो ? बहुत दिनों ( वर्षों ) में दिखी हो .. ब्लॉग पर कुछ नया डालो ...

      हटाएं
  2. जो कह दिया वह शब्द थे;
    जो नहीं कह सके
    वो अनुभूति थी ।।
    और,
    जो कहना है मगर ;
    कह नहीं सकते,
    वो मर्यादा है ।।

    बहुत सुन्दर बात कही है ......
    वैसे ये तो सीधी - सादी है तो टेढ़ी मेढ़ी कौन सी प्रस्तुति होती है ? कृपया बताएं ....

    सभी लिंक्स बेहतरीन .....

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी कविता को साझा किया ,बहुत बहुत धन्यवाद | अन्य लिंक्स भी बढ़िया हैं |

    जवाब देंहटाएं
  4. इतनी सुंदर सराहनीय प्रस्तुति में मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार दीदी । सभी रचनाएँ उम्दा और पठनीय हैं । सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुंदर संकलन।
    'जीवण जेवड़ी' को स्थान देने हेतु हृदय से आभार।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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