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रविवार, 5 जून 2022

3415 ..पर्यावरण पर आधारित कुछ नयी-जूनी रचनाएँ

सादर अभिवादन.....


विश्व पर्यावरण दिवस
विश्व पर्यावरण दिवस ( WED ) प्रतिवर्ष 5 जून को मनाया जाता है और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए जागरूकता और कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख माध्यम है । पहली बार 1973 में आयोजित किया गया, यह समुद्री प्रदूषण , मानव अधिक जनसंख्या, ग्लोबल वार्मिंग , स्थायी खपत और वन्यजीव अपराध जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए एक मंच रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस सार्वजनिक पहुंच के लिए एक वैश्विक मंच है , जिसमें सालाना 143 से अधिक देशों की भागीदारी होती है। प्रत्येक वर्ष, कार्यक्रम ने व्यवसायों के लिए एक थीम और मंच प्रदान किया है,गैर सरकारी संगठनों , समुदायों, सरकारों और मशहूर हस्तियों को पर्यावरणीय कारणों की वकालत करने के लिए।


पर्यावरण पर आधारित कुछ नयी-जूनी रचनाएँ
एक ही ब्लॉग से



आहट पाकर गर्मी की
एक पेड़ हौले-से शरमाता है
गरम हवा संग अंगड़ाई ले
पत्तियों का दुपट्टा गिराता है

पत्रविहीन शाखों ने पहने
दिव्य वस्त्र अलंकरण खास
किस करघे से काता गया
कुरता पीला,मखमली लिबास




आवारा ये पवन झकोरे
अलक उलझ डाले है डोरे
धानी चुनरी चुभ रही तन को
मन संन्यासी आज सखी

 बैरागी का चोला ओढ़े
गंध प्रीत न एक पल छोड़े
अंतस उमड़े भाव तरल
फुहार व्यथा अनुराग सखी




थिरके पात शाख पर किलके
मेघ मल्हार झूमे खिलके
पवन झकोरे उड़-उड़ लिपटे
कली पुष्प संग-संग मुस्काये
बूँदें कपोल पर ठिठक गयी
जलते तन पर फिर बरस गयी

कण-कण महकी सोंधी खुशबू
ऋतु अंगड़ाई मन को भायी
अवनि अधर को चूम-चूम के
लिपट माटी की प्यास बुझायी
गंध नशीली महक गयी
मदिर रसधारा बरस गयी




जी-भर मनमानी कर पानी
लौटा अपनी सीमाओं में
संड़ाध,गंदगी,महामारी की
सौगात भर गयी राहों में

हाय! अजीर्णता नदियों की
प्रकृति का निर्मम अट्टहास
मानव पर मानव की क्रूरता
नियति का विचित्र परिहास




सोचती हूँ,
बदलाव तो प्रकृति का
शाश्वत नियम है,
अगर वृत्तियों और प्रवृत्तियों
की मात्राओं के माप में
अच्छाई का प्रतिशत
बुराई से ज्यादा हो जाये
तो इस बदले असंतुलन से
सृष्टि का क्या बिगड़ जायेगा?





सृष्टि ने
मुझको भी दी है
धरती की नागरिकता
अपने अधिकारों के
भावनात्मक पिंजरे में
फड़फड़ाती
जो न पा सकी उस
दुःख की गणना में
अपने मनुष्य जीवन के
कर्तव्यों को
पूरी निष्ठा से निभाने का शायद
ढोंग भर ही कर सकी।
........
लेखिका ने पर्यावरण की विस्तृत व्याख्या की है
साल या कहें तो हर साल  वदलाव आता ही रहता है
पर्यावरण का स्तर हमारे भारत में अब तक ठीक है
आने वाले समय में ऐसे ही ठीक रहे कह नहीं सकती
गर हम सुधर गए तो बेहतर भी हो सकता है
आमीन.....
आज बस

सादर 

15 टिप्‍पणियां:

  1. एक साथ इतनी सारी अपनी पुरानी रचनाएँ फिर से एक बार इस मंच पर पढ़ना अच्छा लग रहा।
    आपके इस स्नेह के लिए हृदय से अयि आभारी हूँ दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  2. आज की रचनाओं का चयन निश्चय ही बेहतरीन होगा । पढ़ते हैं एक एक करके ।
    नई - जूनी का अर्थ समझ न आया । स्पष्ट करें ,कृपया ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. लिंक संख्या पूरी होने पर नयी रचना रुक गई
      सादर नमन

      हटाएं
  3. वाह!!बहुत खूबसूरत प्रस्तुति 👌

    जवाब देंहटाएं
  4. श्वेता की रचनाओं को पढना हमारे लिए एक बहुत बडा लाभ है

    जवाब देंहटाएं
  5. रचनाएं भले बसिया हों, संदर्भ अभी भी टटका है।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी सामयिक हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूब,आशा करता हु आप हमारी साइट Hindi Talks में भी थोड़ा योगदान देंगे

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह ! श्वेता जी की पर्यावरण से समृद्ध रचनाओं का संकलन। बहुत सुंदर।
    आप दोनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🌳🌳

    जवाब देंहटाएं
  9. पर्यावरण आधारित सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. आप सभी के स्नेह और सराहना के लिए हृदय से बहुत -बहुत आभारी हूँ।
    आप सभी कभी प्रतिक्रिया लेखनी की प्रेरणा है।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  11. पता नहीं क्यों कल की ये नायाब प्रस्तुति मेरी आँखों से ओझल रही?। आज देखी तो देर से आने का
    खेद हुआ! प्रकृति प्रेमी श्वेता का विभिन्न रचनाओं के माध्यम से प्रकृति पर चिंतन लाजवाब है ।आपने सृजन के अनमोल मुक्तक चुने हैं श्वेता के ब्लॉग से।आप दोनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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