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मंगलवार, 24 मई 2022

3403 ...वक़्त के संग कुछ तज़ुर्बे ज़िन्दगी में आये

सादर अभिवादन.....
आज मई माह का आखिरी सप्ताह
कभी धूप दे, कभी बदलियाँ, 
दिलो-जाँ से दोनों क़ुबूल हैं
मगर उस नगर में न क़ैद कर, 
जहाँ ज़िन्दगी का हवा न हो
रचनाएं देखिए




इसके लिए भी
क्या निकालना कोई मुहूर्त है
की माँ को मेरी ज़रूरत है
अब मुझे चलना चाहिए।




बड़े प्रेम से ब्याह के लाया   
साड़ी औ कपड़े, गहने दिलाया ।   
सज के पड़ोसी के ठाढ़ हो, रोजय ताना मारे  
ई बीवी....




अपनी दादी से पूछा,''दादी माँ आप टें कब बोलोगी? (टें बोलने का मतलब मर जाना होता है)
टें बोलो न! दादी माँ प्लीज टें बोलो न!''
दादी बेचारी सन्न रह गई कि आज मेरे पोते को क्या हो गया है...वो ऐसा क्यों बोल रहा है? 
''क्यों बेटा, तु मुझे टें बोलने क्यों बोल रहा है?''




वक़्त के संग कुछ तज़ुर्बे ज़िन्दगी में आये
वक़्त ज़ाया न करो इन में ये समझ आये

जिसका होना है वो हर हाल में हो जाये
दोस्त इन चोचलों के झांसे में क्यों आये?

ज़िन्दगी कई मौके दे -दे कर यूँ समझाये
खुद की ख़ुशी की खुदखुशी न हो जाये

.....
आज बस

सादर 

7 टिप्‍पणियां:

  1. विविधतापूर्ण रचनाओं से परिपूर्ण उत्कृष्ट अंक।
    मेरे लोकगीत को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय ।

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा संकलन। मेरी रचना को पांच लिंको का आनंद में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, दिग्विजय भाई।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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