---

रविवार, 27 मार्च 2022

3345...“  मै किसी कर्मकाण्ड में विश्वास नही करती… मै मुक्ति को नही , इस धूल को अधिक चाहती हूँ । ”



जय मां हाटेशवरी......
“  मै किसी कर्मकाण्ड में विश्वास नही करती…
मै मुक्ति को नही ,
इस धूल को अधिक चाहती हूँ । ” ~महादेवी वर्मा

कल मेरी प्रिय कवियत्री व लेखिका.....
महादेवी वर्मा जी का जन्म दिवस था.....
.....शत-शत नमन.....

“ मैंने हँसी में कहा – ‘ तुम स्वर्ग मे कैसे रह सकोगे बाबा ! वहाँ तो न कोई तुम्हारे कूट पद और उलटवासियाँ समझेगा और न आल्हा-ऊदल की कथा सुनेगा । 
स्वर्ग के गन्धर्व और अप्सराओ मे तुम कुछ न जँचोगे । ’
ठकुरी बाबा का मन प्रसन्न हो गया । कहने लगे – ‘ सो तो हम जानित है बिटिया ! 
हम उहां अस सोर मचाउब कि भगवानजी पुन धरती पै ढनकाय देहै! हम फिर धान रोपब , 
कियारी बनाउब , चिकारा बजाउब और तुम पचै का आल्हा-ऊदल की कथा सुनाउब । 
सरग हमका ना चही , मुदा हम दूसर नवा शरीर मांगै बरे जाब जरूर । ई ससुर तौ बनाय कै जरजर हुइग ’– और वे गा उठे : चलत प्रान काया काहे रोई राम । ” ~महादेवी वर्मा
            

एक दिन सब ऐश्वर्य, सम्पदा, तेरा-मेरा
यहीं तो छूट जाएंगे, निशानियाँ रह जाएंगी
और...हाथ छूट जाएंगे
बस एक ही आशा,एक ही प्रार्थना
अपनों को काँपते कलेजे से भींच
हाथ बाँध,आसमान पर टिकी हैं आँखें
बेसुध से होंठ बुदबुदाते हैं-
सर्वे भवन्तु सुखिन:,सर्वे सन्तु निरामया ...


असली कंगन पहन के ,महिला करती सैर ।
वहाँ लुटेरे मिल गये ....कंगन की नहि खैर ।।
कंगन की नहि खैर ,सभी देखते तमाशा ।
छीना झपटी मार,नहीं स्त्री छोड़ी आशा ।।


धरती पर सुख को जीने  के लिए आये हैं,  यह आनंद किसी नौकरी, व्यापार या अन्य तरीके से नही मिलने वाला बल्कि यह तो जग व्याप्त है, सहज मिलने वाला है निर्भर आपकी
पात्रता करती है आप कितने सुख के हिस्से को छू पाते हैं।


माँ बन जाऊँगी
पत्नी कहलाऊँगी
बेटी,  बहन
तो बन बन
 
के थक गई थी बहुत पहले
बहू, भाभी,चाची, मासी कोई कुछ भी कह ले
पर मैं हूँ, कहीं क्या ?
ढूँढती रही सदा
करती रही अपनी तलाश
खो दिया होशोहवास
बहुत कुछ बन के
बन ठन के

 

 
‘उलूक’ का तो
रोज का यही काम रह जाता है
रोज शुरु करता है अपनी यात्रा
रोज जाता है मछलियां देखता है
और वापिस भी आ जाता है
रेल के कुछ डब्बों को आगे पीछे करता हुआ
दूसरे दिन के लिये एक रेल बनाता है
ऐसे में कोई कैसे उम्मीद करता है
कुछ नया खुद का बनाया हुआ
रेल का एक डब्बा ही सही
कोई क्यों नहीं किसी को दिखाता है ।
 सवाल सिस्टम और व्यवस्था का जब बेमानी हो जाता है


आज बस इतना ही.....
अब मुलाकात होती रहेगी....
धन्यवाद।

 

4 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर अंक..
    आभार आपका
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय कुलदीप जी
    साहित्य की मीरा महादेवीवर्मा जी को समर्पित आपकी आत्मीयता भरी भावनाएँ अत्यंत सराहनीय है।साहित्य प्रेमी के रूप में महादेवी वर्मा जी सभी की आराध्या और प्रेरणा रही हैं।उनकी कीर्ति साहित्य में अमर है।उनकी पुण्य स्मृति को सादर नमन।

    आज के अंक में लिंक की गई प्राय सभी पुरानी रचनाओं को आपने जिस मेहनत से खोजा है वह काबिलेतारिफ है।बहुत बहुत आभार आपका।आज के सभी रचनाकारों को सादर शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!बहुत खूबसूरत प्रस्तुति । महादेवी जी को समर्पित अंक बहुत ही सुंदर लगा । उनकी पुण्य स्मृति को नमन 🙏।

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।