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रविवार, 13 फ़रवरी 2022

3303 ...हां आओ बारिश का पानी बांट लें

सादर अभिवादन
भाई रवीन्द्र जी आज दिल्ली से बाहर हैं
कोई जरूरी काम ही होगा
वे सफल हों ..
सादर



हां आओ बारिश का पानी बांट लें
आसमां से जो बरसे तुम रखना
आंखों से तुम्हारी जो ढुलके
मैं रख लेती हूं
आओ बारिश का पानी बांट लें




आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरे ज़ुल्फ़ के सर होने तक

आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर होने तक




तारकों के भूषणों से
रात ने आँचल सँवारा
रौम्य तारों की कढ़ाई
रूप दिखता है कँवारा
कौन बैठा ओढ़नी में
रत्न अनुपम पो रहा है।




विलाप की विवेचना
शव होती संवेदना
अस्थिपंजर से चिपकी
अस्थियों का मौन
साँसों पर प्रश्न चिह्न है।




आंखे
ईश्वर का दिया
मनुष्य को बहुमूल्य तोहफ़ा,
जो
करती हैं मार्मिक बातें
प्यार हो या अंतर्द्वंद
वो भली-भांति
समझती हैं सब


आज बस

सादर 

10 टिप्‍पणियां:

  1. रश्मि पुंज निस्तेज है
    मुखौटों का तेज है
    सुन सको तो सुनो
    चेहरा पढ़ने में असमर्थ
    आँखों का मूक आर्तनाद।
    शानदार अंक..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति
    सादर...
    आभार🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. चर्चा में शामिल करने के लिए आभार। 🙏

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर प्रस्तुति ,सभी लिंक आकर्षक पठनीय सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    अष्टमी का आधा चांद भी सम्मान पा गया, हृदय से आभार।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी रचनाएँ बेहतरीन हैं।
    बहुत सुंदर अंक सर
    मेरी रचना शामिल करने के लिए अत्यंत आभार आपका।

    प्रणाम सर
    सादर।

    जवाब देंहटाएं

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