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बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

3299...शब्द मरीचिका..

 ।। उषा स्वस्ति।।

शब्द के छल छद्म की मारीचिक़ा

शब्द के व्यामोह ने जग को ठगा है

शब्द अब आकार लिपि आबद्ध हैं

संचरण अनुभूतियों का खो गया है

शब्द के गुरु भार को अब कौन ढोए ?

 डॉ मृदुल कीर्ति

शब्द की मारीचिका और कहे, अनकहे को ढूंढने की कोशिशें...जारी है बुधवारिया अंक जिससे आप सभी को इधर उधर न जाना पड़े..✍️

वागीश्वरी की नंदिनी



वे गीत थीं संगीत थीं, 
माँ शारदे की प्रीत थीं
बसती रहीं हर हृदय में, 
बन भोर की उद्गीत थीं ।

शिशुकाल में लोरी सुना
वो माँ सी मन पे छा गईं..
🏵️

ख़ुशी नहीं है मंज़िल..

नहीं है ख़ुशी 

कोई मंज़िल 

यह तो राह है 

चलते चलते जिस पर 

जीना है 

अपनी मस्ती में हर पल..

🏵️

मुझे बड़ा नहीं होना


A child and his grandfather
चित्र साभार shutterstock  से...
"दादू ! अब से न मैं आपको प्रणाम नहीं करूंगा"।हाथ से हाथ बाँधते हुए दादू के बराबर बैठकर मुँह बनाते हुए विक्की बोला।

"अच्छा जी ! तो हाय हैलो करोगे या गुड मॉर्निंग, गुड नाइट वगैरह वगैरह ? सब चलेगा..

🏵️

सुरों की देवी लता

नायाब --

कहाँ ढूंढें तुम्हें सुरों की देवी बता
नहीं देकर गई अपना कोई पता

साज़ सहमे हुए नग्में खामोश है
मौशिकी की है इसमें कैसी खत

🏵️

                    ग़ज़ल

रूठी है ज़िन्दगी तो मुक़द्दर बदल गए ,
दुनियाँ के भी हों जैसे ये तेवर बदल गए ।

दीवार-ओ-दर में खुश था जहाँ तुम थे साथ पर,
कब नींव के न जाने ये पत्थर बदल गए ।

।।इति शम।।

धन्यवाद

पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️





11 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    सराहनीय भूमिका से सज्जित सराहनीय अंक ।
    सारगर्भित रचनाओं का चयन ।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार एवम अभिनंदन पम्मी जी,
    आपको और सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार रचनाओं से सुसज्जित
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  3. संचरण अनुभूतियों का खो गया है

    शब्द के गुरु भार को अब कौन ढोए ?
    भूमिका में बहुत ही सारगर्भित एवं सार्थक पंक्तियां एवं उत्कृष्ट रचनाओं से सजी लाजवाब हलचल प्रस्तुति... मेरी रचना को स्थान दजने हेतु हृदयतल से आभार एवं धन्यवाद पम्मी जी!

    जवाब देंहटाएं
  4. सुरों की देवी लता
    नायाब --
    ये लिंक खुल नहीं रहा ...एक बार देख लीजियेगा पम्मी जी!
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. नायाब --
      कहाँ ढूंढें तुम्हें सुरों की देवी बता
      नहीं देकर गई अपना कोई पता

      साज़ सहमे हुए नग्में खामोश है
      मौशिकी की है इसमें कैसी खता

      कूक कोयल की क्यों चुरा ले गई
      मौत पहले तूँ अपना इरादा जता

      अनाथ ग़ज़लें हुई गीत गूंगे हुए
      बसी हो भजनों में तुम दीदी लता

      गीत पे ग़ज़लों पे बोल भजनों पे
      सब पे एहसान है सुरों की देवी लता

      मनोज नायाब
      कवि-लेखक
      9859913535









      हटाएं
  5. बहुत ही शानदार रचनाओं से सुसज्जित
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी रचना सुरों की देवी लता को शामिल करने के लिए आपका आभार

    जवाब देंहटाएं

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