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सोमवार, 24 जनवरी 2022

3283 हार - जीत कैसा..!

सादर नमन..
आज मैं दिव्या..मुम्बई से
अगले सप्ताह से रायपुर ही रहूँगी....
स्थायित्व ..अब कहीं नहीं हिलने का.
बस एक अंक छोड़कर आऊँगी

रचनाएँ.....




देहातों में औरतें
गूंगी रक्खी जाती हैं
देर रात तक काम करने के लिए





अब, कम ही खिल पाते हैं, बरगद
कहां दिख पाते हैं अब बरगद




कर जाएगा यह भी
वक़्त बुरा ही सही
एक दिन बदलेगा ही




हार - जीत कैसा..! 
कौन पहले जाएगा यह अपने हाथ में कहां..! 
पहले तो पुरुष चला जाए यह उसके लिए अच्छा..! 
स्त्रियों को समझौता कर जीने में ज्यादा परेशानी नहीं होती..


महक रही पुरवाई बयार तेरी सांसों जैसी.
सुगंध तेरी मिल गई इन धड़कनों से जैसे..




क्या पीते हो भाई?
“जो एक दलित पीता है साब!
नहीं मतलब क्या-क्या पीते हो?
छुआ-छूत का गम
टूटे अरमानों का दम
और नंगी आँखों से देखा गया सारा भरम साब!
मुझे लगा शराब पीते हो!
पीता हूँ न साब! पर आपके चुनाव में।
....
आज बस इतना ही
सादर

11 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहहहहह दिबू..
    स्वागतम..
    अपने आगमन का रेड कारपेट
    स्वयं ही बिछा ली..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. आज बेहतरीन लिंक्स मिले । शुक्रिया दिव्या।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर सूत्रों का का संकलन संयोजन । बहुत शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  4. दिव्या जी, इस गुलदस्ते का हर फूल अलग रंग का है और ख़ास है.
    शामिल करने के लिए धन्यवाद.
    सभी लेखकों को बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी को शुभकामनाएं ! सुरक्षित, स्वस्थ व प्रसन्न रहें

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति
    आभार...🙏
    सादर....
    शुभ रात्रि✨ 🌚⏰

    जवाब देंहटाएं
  7. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  8. अभिनन्दन और स्वागत प्रिय दिव्या, अपने घर सा आनंद निष्ठुर मुंबई में कहां! अब आनंद से रही। रंग बिरंगी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं 🙏🌷🌷❤️❤️

    जवाब देंहटाएं

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