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शुक्रवार, 21 जनवरी 2022

3280..... मौसम की बातें करते हुए

शुक्रवारीय अंक में 
आप सभी को 
श्वेता का स्नेहिल अभिवादन।
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बदलते मौसम का मिज़ाज आपने महसूस किया क्या
फूलों की खुशबू से भीगी हवाओं का संदेश लेकर उड़ती तितलियों की अठखेलियाँ ,गुनगुनाती धूप की छुअन से पर इतराता मन कहता है-
नभ के गेसुओं पर विरह का इतिहास लिखना,
'पी'तुम्हें महसूस कर अनछुए एहसास लिखना।
शरद के झरते बदन से शीत की चुनरी उतारूँ,
कोहरे पर रंग छिड़कूँ अब मुझे मधुमास लिखना।

मौसम से बातें करते हुए यह कविता अंतस तक भीगा गयी इसे पढ़ते कबीर की लिखी  पंक्तियाँ स्मरण हो आई..

आठ पहर चौसंठ घड़ी, लगी रहे अनुराग।
हिरदै पलक न बीसरें, तब सांचा बैराग।।


यूँ निष्प्राण हो कर भला
जो सर्वस्व देना है तुम्हें
कहो कैसे दे पाती ?
मेरे तेजस्व !
हाँ ! निज देवस्व
देना है तुम्हें
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कविता मात्र शब्दों का ढेर नहीं किसी संवेदनशील हृदय की भावनाओं का निचोड़ होती है तभी तो कालरिज ने कहा-
कविता तमाम मानवीय ज्ञान, विचारों, भावों, अनुभूतियों और भाषा की खुशबूदार कली है।


ज़रूरी है कि मेरी कविताओं में 
खोजी जाय वह गृहिणी,
जो दिन-रात तिरस्कृत होकर भी 
लगी रहती है काम में,
खोजी जाय वह युवती 
जिसका दिन-दहाड़े 
बलात्कार हो गया था. 

★●★●★

बच्चे अनमोल धरोहर हैं भविष्य के, उनके क्रियाकलाप,संस्कार, आदतें, स्वस्थ रहे समय रहते यह सुनिश्चित करना हम अभिवावकों का दायित्व है।

परवरिश


कई अभिभावको का कहना होता है कि वे बच्चे से बहुत प्यार करते है इसलिए बच्चे को ना नहीं कह सकते। वे बच्चों को रोते हुए नहीं देख सकते। इसलिए बच्चे जब भी मोबाइल मांगते है, वे दे देते है! यदि आप सही मायने में अपने बच्चे से प्यार करते है तो बच्चों पर मोबाइल से होने वाले नुकसान को देखते हुए उसे कम से कम समय के लिए मोबाइल देंगे। 

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लेखक राकेश मोहन यात्राओं के सम्बन्ध में कहते हैं कि यात्रा व्यक्ति को तटस्थ नजरियाँ देती हैं. जो हमें दैनिक जीवन में देखने को नहीं मिलती हैं. एक नयें वातावरण में जाकर व्यक्ति कुंठा मुक्त हो जाता हैं अपने निकट वातावरण के दवाब से मुक्त होकर, नयें स्थानों, नयें लोगों से सम्बन्ध स्थापित करता हैं.

अंडमान का नील द्वीप

इस पार आने पर स्थानीय गाइड की सलाह के अनुसार लगेज होटल भिजवा कर सभी जने लक्ष्मणपुर तट की पुल रूपी संरचना देखने के लिए अग्रसर हो लिए ! यह संरचना जिसे स्थानीय लोग हावड़ा पुल  भी कहते हैं, तट से चट्टानों और वृक्षों की ओट के कारण सीधे दिखाई नहीं पड़ती ! इसके लिए किनारे से और आगे सागर की ओर जाना पड़ता है ! दोपहर बाद सागर में ज्वार आ जाने पर फिर जाया नहीं जा सकता इसीलिए पहले यहां आना तय किया गया था ! तट पूरी तरह कोरल के अवशेषों से पटा पड़ा है ! यह मृत कोरल अवशेष बहुत कठोर और नुकीले होते हैं जिससे बहुत संभल कर चलना पड़ रहा था ! आगे जाने पर समुद्र की लहरें आ-आ कर पैरों से टकराने और स्वनिर्मित गढ्ढों को पानी से भरने लगीं ! उनके साथ ही कई छोटे-छोटे जीव और मछलियां भी किनारे पर आ अठखेलियां करते नजर आए !  

★●★●★
परिस्थितियों के अनुसार शायद भावनाओं का प्रवाह सुनिश्चित होता है परंतु अपूर्ण अपेक्षाओं से खिन्न मन को अक्सर बायरन की लिखी पंक्तियाँ याद आती है-
पुरुष का प्यार उसके जीवन की एक भिन्न वस्तु है, परंतु नारी के लिए प्यार उसका सारा जीवन है।  
आदिति पहेली के सहारे शब्दों के पुल को बाँधने के प्रयास के साथ पति के कंधे पर सर रखते हुए कहती है।
" नज़रिया है अपना-अपना। मुझे लगता है ज़िंदगी उस चिड़िया की तरह है जो मेरी तरह भरी बरसात में  अपने पँख झाड़ रही है।"
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आज के लिए इतना ही 
कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी

20 टिप्‍पणियां:

  1. आठ पहर चौसंठ घड़ी, लगी रहे अनुराग।
    हिरदै पलक न बीसरें, तब सांचा बैराग।।
    शानदार अंक..
    आभार इस सुंदर अंक के लिए
    सादर..

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  2. बहुत ही सुंदर संकलन। समय मिलते ही सभी रचनाएँ पढूंगी।

    परिस्थितियों के अनुसार शायद भावनाओं का प्रवाह सुनिश्चित होता है परंतु अपूर्ण अपेक्षाओं से खिन्न मन को अक्सर बायरन की लिखी पंक्तियों से मैं सहमत नहीं हूँ।
    परुष के अथा प्रेम समर्पण को जो स्त्री समझ गई वो भी पुरुष से प्रश्न नहीं करेंगी।
    प्रेम का जो पल मैंने गुंथने का प्रयास किया है सायद आप वहाँ तक पहुँच नहीं पाए या मैं आप तक पहुंचाने मैं असमर्थ रही।
    स्थान देने हेतु प्रिय श्वेता दी जी अनेकानेक आभार।
    सादर स्नेह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय अनु,
      सूत्र पर लिखी प्रतिक्रिया पर तुमने अपना मतंव्य स्पष्ट किया बहुत आभारी हूँ।

      दरअसल किसी भी रचना को समझने का हर पाठक का अपना दृष्टिकोण होता है। एक ही पंक्ति को अलग-अलग भाव से पढ़ा जाता है हर बार लेखक के मनोभावों को पाठक स्पर्श कर पाये ये संभव नहीं।
      तुम्हारी लघुकथा पर पर मेरे द्वारा लिखी प्रतिक्रिया मेरा मतंव्य है न कि रचना का सार।
      उपर्युक्त सभी रचनाओं पर लिखी मेरी प्रतिक्रिया किसी भी रचना का सार नहीं न ही प्रतिक्रिया किसी रचना का अर्थ स्पष्ट करती है उन रचनाओं पर मेरा दृष्टिकोण मैंने लिखा है। अतः मेरे दृष्टिकोण से तुम्हारी उपर्युक्त किसी भी लेखक की असहमति स्वाभाविक है।
      वायरन की लिखी पंक्तियों का उल्लेख करने का अर्थ एक पुरूष द्वारा ही प्रेम के भाव स्पष्ट करना ही है न कि लेखक के मनोभावों का स्पष्टीकरण।

      सस्नेह।

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    2. प्रिय श्वेता दी यह आपका दृष्टि कोण है यह सही है।

      परंतु मैं स्त्री और परुष के प्रेम की भिन्नता को भिन्न नहीं कर पाई। समय परिस्थितियों का अवरण
      दोनों बहुत गहरे में डूबते है।

      पुरुष का प्यार उसके जीवन की एक भिन्न वस्तु है, परंतु नारी के लिए प्यार उसका सारा जीवन है। - आपकी की यह लाइनें आप का दृष्टि कोण लघुकथा के मर्म के विपरीत था या महज मेरी समझ मात्र हो सकती है।

      सादर स्नेह

      हटाएं
    3. स्वस्थ एवं सुन्दर संवाद । प्रभावी प्रश्नोचित स्पष्टीकरण ।

      हटाएं
    4. हार्दिक आभार आदरणीय दी।

      हटाएं
    5. मुझे लगता है हर रचनाकार को पाठकों और समीक्षक की प्रतिक्रिया का सम्मान करना चाहिए। हर किसी का अपना दृष्टिकोण होता है। जरूरी नहीं कि रचनाकार ने जिस भाव से लिखा हो दूसरे भी उसी भाव से रचना का अवलोकन करें।

      हटाएं
  3. प्रिय श्वेता ,
    मौसम के मिज़ाज़ की तरफ़ ध्यान दिलाने का शुक्रिया । अब शिशिर तो जाने वाला ही है , हाँलांकि अभी सर्दी काफी है फिर भी बसंत का इंतज़ार शुरू हो गया है ।सुंदर भूमिका के साथ सभी लिंक्स गहन भाव रखे हैं ।।
    दत्तचित्त हो कर पढ़ा तो पाया कि हम तो अंडमान की सैर पर निकल लिए ।अब सोच रही हूँ कि घर परिवार से कैसे भेंट करूँ और बता सकूँ की बच्चों की परवरिश में खुद को खपाना पड़ता है । पूरी ज़िंदगी की ही समीक्षा हो जाती है बच्चों को पालने में ।
    खैर प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी और उसके साथ तुम्हारे विचार भी ।
    सस्नेह ....

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    उत्तर
    1. प्रस्तुति गत उपजी सौंदर्य दृष्टि की अभिव्यंजना आपसे सीखी जा सकती है पर आपसे बहती हुई रसधार तो नहीं बहायी जा सकती है । बस वही मुस्कान फैल गई है ...

      हटाएं
    2. अमृता जी ,
      आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही मुस्कान का वायस बन जाती है ।।वैसे कुछ ज्यादा नहीं कह दिया आपने ?

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  4. सुंदर अंक.स्थान देने हेतु आभार।

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  5. उत्कृष्ट रचनाओं का सुंदर संकलन। मेरी रचना को पांच लिंको का आनन्द में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, श्वेता दी।

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  6. मनभावन वासंतिक अंक
    सब जगह नहीं जा सकती
    पैकिंग चल रही है...
    आने वाले सप्ताह में
    रायपुर रहूंगी
    सादर नमन..

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  7. प्रकृति-संसार के लय को अति सुन्दरता से भावों में पिरोया है । अन्तर्निहित धुन मंद-मंद मुखरित हो रहा है । मनभावन प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ।

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  8. सुंदर संकलन और वैदुष्यपूर्ण गवेषणाओं को नमन!

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  9. सुंदर भूमिका के साथ भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय श्वेता। सभी रचनाकारों को बधाई और शुभकामनाएं।

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  10. बदलते मौसम के लिए शब्दों की नजाकत क्या कहिए!!

    नभ के गेसुओं पर विरह का इतिहास लिखना,
    'पी'तुम्हें महसूस कर अनछुए एहसास लिखना।
    शरद के झरते बदन से शीत की चुनरी उतारूँ,
    कोहरे पर रंग छिड़कूँ अब मुझे मधुमास लिखना।
    👌👌👌👌👌🌹🌹💐💐

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  11. बहुत सुंदर सारगर्भित भूमिका के साथ शानदार प्रस्तुति । प्रिय श्वेता जी और सभी रचनाकारों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐

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  12. बहुत बहुत सुंदर प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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