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बुधवार, 12 जनवरी 2022

3271..अलसाई सी सुबह..और हमारी पेशकश..

 ।। उषा स्वस्ति।।

ठण्ड की एक अलसाई सी सुबह में

मैं बैठा हूं गंगा घाट के किनारे पर!

इन सब के बीच 

नेमियों का झुण्ड हर-हर गंगे का 

नाद करते हुए डुबकी लगा रहा है

उस पतितपावनी 

गंगा की शान्त लेकिन 

चंचल सी धारा में..!!"

 अज्ञात

 आज की पेशकश में शामिल है.. ग़ज़ल,राजस्थानी गेयता,शब्दाजंली संग..मुस्कराती भोर और ज़िंदगी की जाम चलिए समय न गवाते हुए नजर डालिए..✍️

मुस्कुराती भोर



मुस्कुराती भोर आकर
जब धरा का मुख निहारे।
लौटती लेकर निशा 
तब साथ अपने चाँद तारे।

गूँजते आँगन हँसी से
बर्तनों की थाप सुनकर।
अरगनी पर सूखते

💮💮

तेरी सोहबत में दिल ये संभल जाएगा

तेरी सोहबत में दिल ये संभल जाएगायं,
कर यकीं अब नहीं तो ये जल जाएगा ।

देख लेना कभी इश्क़ इन आँखोँ में,
थोड़ी चाहत दिखाना मचल जाएगा..
💮💮



फूल बिछाया आँगण माही
माट्टी पोतयो बारणों।।
घणी बेग्या काज करया 
 तारिका ढळतो चानणों।।

दीवल रो काजळियो काड्यो 
काळी आटी जुड़ा जड़ी।
💮💮

 "मधुदीप गुप्ता नहीं रहे! लघुकथा जगत में शोक की लहर फैल गयी है। हाहाकार मच गया है। हालांकि लघुकथा विधा के लिए जुनून की हद तक जाकर किए अपने कार्य के लिए, मधुदीप सदैव याद रखे जाएंगे।"

"लगभग बीस लाख अपनी जमापूँजी लघुकथा की पुस्तकों को प्रकाशित करवाने, लघुकथाकारों को पुरुस्कार..

💮💮


चलो ना, इक जाम हो जाए!

छलकने लगी हैं, किरणें सुबह की, नदी पर,
हँसने लगी, कुछ सजने लगी, जिन्दगी,
बादलों की ओट से, कुछ कहने लगी रौशनी,
सो चुका, अब अंधेरा,..
💮💮
।।इति शम।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'..✍️



9 टिप्‍पणियां:

  1. फूल बिछाया आँगण माही
    माट्टी पोतयो बारणों।।
    सुन्दर अंक..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार
    श्रमसाध्य प्रस्तुति हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर लिंक चासोआ किये हैं आदरनीय पम्मी जी

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर संकलन। मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर। मधुदीप जी की स्मृतियों की लौ लघुकथा के पथ को चिरंतन आलोकित करती रहे! नमन!

    जवाब देंहटाएं
  6. आभारी हूँ आदरणीया पम्मी दी जी सराहनीय संकलन में स्थान देने हेतु।
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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