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गुरुवार, 2 दिसंबर 2021

3230 ...एक तो करेला कड़वा ऊपर से नीम चढ़ा

सादर अभिवादन
आज पुनः रवीन्द्र जी नही हैं
कल दिल्ली को मौसम गरम था
रचनाए..
मात्र तीन है


एक तो करेला कड़वा ऊपर से नीम चढ़ा ! एक तो वैसे ही आजकल के बच्चे अकेले ही रहना पसंद करने लगे हैं उस पर कोरोना की इस आपदा ने बच्चों को बिलकुल अकेला कर दिया ! घर से बाहर निकलने पर बिलकुल पाबंदी हो गयी ! पार्क, बाग़ बगीचे, खेलों के मैदान और गलियाँ सब सूने हो गए और ऑनलाइन क्लासेस के बहाने सभी बच्चों के हाथों में मोबाइल फोन आ गए और खुल गया उनके सामने ऐसी तिलस्मी दुनिया का दरवाज़ा जिसमें घुसने से किसी समय में बड़ों को भी डर लगता था ! जब इतनी छोटी सी उम्र में बच्चे बाल सुलभ कहानियों और खेल कूद की जगह ऐसी वर्जित बातों की तरफ आकृष्ट होने लगेंगे तो उनमें बचपना, मासूमियत और भोलापन कहाँ रह जाएगा !




साहिब! अपनी बहुमंजिली इमारतों पर यूँ भी इतराया नहीं करते,
बननी है जो राख एक दिन या फिर खुद सोनी हो जमीन में गहरे।

यूँ तो पता बदल जाता है अक़्सर,  घर बदलते ही किराएदारों के,
पर बदलते हैं मकान मालिकों के भी, जब सोते श्मशान में पसरे।

"लादे फिरते हैं हम बंजारे की तरह सामान अपने कांधे पर लिए"-
-कहते वे हमें, जिन्हें जाना है एक दिन खुद चार कांधों पे अकड़े।




शिकवा-गिला अब जिंदगी में, करना नहीं मंजूर है,
जवानी की देखो यहां पर,आ रही अब शाम है।

मत फफोले को कुरेदो, जख्म हरे हो जाएंगे,
भूल को अब भी सुधारों, बुजुर्गों का पैगाम है।

दुखती रग को मत टटोलो,नब्ज़ अपने देख लो,
तुमने भी खाये थे ठोकर, होता यही अंजाम है।
आज बस
कल सखी श्वेता
सादर


4 टिप्‍पणियां:

  1. वाह क्या प्रस्तुति है बहुत ही शानदार
    आभार🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. जी ! नमन संग आभार आपका .. मेरी बतकही को अपने मंच पर जगह देने के लिए ...
    (वैसे तो मौसम विभाग के अनुसार, दिल्ली का मौसम गर्म ना तो कल था और ना ही आज है .. बेशक़ प्रदूषण बेहिसाब है .. मालूम नहीं .. आप .. किस "मौसम" के "गरम" होने का बात कर रही हैं ...🤔🤔🤔)

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह ! क्या बात है यशोदा जी ! इतने सुन्दर और अनमोल सूत्रों के बीच अपने सृजन को पटल पर देख कर देख कर हैरान भी हूँ और हर्षित भी ! आपका बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार प्रिय सखी ! सप्रेम वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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