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मंगलवार, 30 नवंबर 2021

3228 ...हम पहाड़ों पर भी नंगे पांव चलते हैं

सादर अभिवादन
आखिरी दिन नवम्बर का

कल पहला दिवस दिसम्बर का
एड्स दिवस है...

रचनाएँ कुछ यूँ है..




विष पीते हुए जीवन क्या यूँ ही बीत जाएगा।
या ऋतुराज भी अपना वचन कोई निभाएगा।
प्रस्तर हो चुकी धरती, कंटक- वन हैं मुस्काते।
क्या मेरे मन - आँगन में कुसुम कोई खिलाएगा।




झील की गहराइयों से क्या डराओगे
वक्त की परछाइयों से क्या डराओगे

हम पहाड़ों पर भी नंगे पांव चलते हैं
तुम हमें कठिनाइयों से क्या डराओगे




आओ
नदी के किनारों तक
टहल आते हैं
अरसा हो गया
सुने हुए
नदी और किनारों के बीच
बातचीत को।
आओ पूछ आते हैं
किनारों से नदी की तासीर
और
नदी से
किनारों का रिश्ता।




कभी कुछ भी नहीं बिगड़ता इतना
कि सुधारा ही न जा सके
एक किरण आने की
गुंजाइश तो सदा ही रहती है !




लाना भर-भर
अँजुरी में अपनी,
रात भर के
बिछे-पसरे,
महमहाते
हरसिंगार तुम .. बस यूँ ही ...
....
कल से इन्तजार और इन्तजार
2022 का
सादर


6 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात यशोदा जी, पहाड़ों पर नंगे पाँव चलने की हिम्मत भरते हुए, हरसिंगार के फूलों की ख़ुशबू से सराबोर, कविता जी की कविता और नदी की मूक व्यथा को बयान करता सुंदर अंक, आभार मुझे भी इसमें शामिल करने हेतु!

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  2. जी !नमन संग आभार आपका .. अपने मंच पर आज की बहुरंगी प्रस्तुति के साथ मेरी बतकही को शामिल करने के लिए ...
    वैसे कल से 2022 के इंतज़ार के साथ-साथ "ऑमिक्रोन" के भी आने का .. शायद ...

    जवाब देंहटाएं
  3. जी आभार आपका यशोदा जी। मेरी रचना को नेह प्रदान करने के लिए। सभी रचनाएं श्रेष्ठ हैं, अच्छा और गहन चयन। खूब बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. चुनिंदा प्रस्तुति ! आभार इस मंच का ।
    अपने सहयोग और सुझाव से मुझे भी अलंकृत करें।

    जवाब देंहटाएं

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