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गुरुवार, 25 नवंबर 2021

3223...नवंबर की धूप मनभावन लगे...

सादर अभिवादन।

गुरुवारीय अंक लेकर हाज़िर हूँ।

नवंबर की धूप मनभावन लगे, 

खिले-चहके घर-आँगन लगे। 

 आइए पढ़ते हैं आज की पसंदीदा रचनाएँ-

नानुकुर किस लिए

कौन हमसे ज्यादा 

  मन को प्यारा होता 

 क्या है उसमें       

लाडला किस लिए   

ख्याल तुम्हारे  

सबसे अलग हैं    

 प्रिय हैं मुझे

तब यह दूरी क्यों

किसके लिए |

नया दिन

जिन तालाबों का पानी पीते थे बेधड़क

वे तालाब  सूख जाएंगे

और उदास हो जाएंगे नदियों के तट

जिनपर पर "मासकरने नहीं आया करेंगे आस्थावान श्रद्धालु 

हरि बस चक्र थाम लो।

बहुत दिनों तक रास रचाए

ग्वाल बाल सँग चोरी

और घनेरा माखन खाया

फोडी गगरी बरजोरी

सब कुछ भोगा इसी धरा से

विश्व नाचता दरणी पर।।

सियासत का लहू | शायरी | डॉ (सुश्री) शरद सिंह

उसकी    रग  -  रग     में

सियासत का लहू बहता है एक दिन

गमों का सिर्फ एक ही रंग...

क्‍यों सन्‍नाटें को छोड़ जब

गुजरता हूँ भीड़ से कई टुकड़े हो जाते है

मेरे तन-मन के अब

****

आज बस यहीं तक

फिर मिलेंगे अगली प्रस्तुति में आगामी गुरुवार।

रवीन्द्र सिंह यादव


6 टिप्‍पणियां:

  1. पठनीय और बेहतरीन रचनाओं की खबर देते सूत्रों से सजा अंक, आभार!

    जवाब देंहटाएं
  2. सबको सादर प्रणाम!
    बहुत दिनों बाद आने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ।

    आज की आपकी प्रस्तुति में वाक़ई सभी रचनाएँ बेहतरीन एवं प्रशंसनीय है। इस प्रस्तुति की अंतिम रचना "गमों का सिर्फ एक ही रंग..." अद्भूत रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर लिंक्स से सुशोभित सुंदर अंक।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।
    सभी रचनाएं बहुत आकर्षक सुंदर।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।।
    सादर सस्नेह।

    जवाब देंहटाएं

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