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सोमवार, 8 नवंबर 2021

3206 ...आँखों में चश्मा मुँह में गुलाब, हाथ मोबाइल करके आदाब

सादर अभिवादन


आज नहाय खाय से छठ महोत्सव की शुरुआत
और 11 नवंबर तक चलेगा।




~1 ~
तरक्की की वो दौड़
हर मायने खो देती है जनाब
जिसमें माँ - बाप का हाथ
उनके बच्चों से छूटता जाए
 ~ 2 ~
वक़्त ने सीखा और समझा दिया
बहुत सी भीड़ रही अपनों की
पर सारी ज़िन्दगी
अकेले ही चलते रहे
~ 3 ~
शहर में बड़ी चहल पहल है
लग रहा है खूब बिक रही हैं मेरी यादें
तूने उसकी बोली
बड़े सस्ते दामों में जो लगा दी



आँखों में चश्मा मुँह में गुलाब,
हाथ मोबाइल करके आदाब
गले में मोती जड़ा था पट्टा,
चला जो शेरू बनके नबाब

कदम कदम पर यार मिले,
चापलूस दो -चार मिले
मचले मन औ बहके कदम के,
जी हुजूर सरकार मिले




अब वो अपनी बाँसुरी भी
किसी और से बजवाता है
सब कुछ समेटने के चक्कर में बहुत कुछ बिखर जाता है
जमीन पर बिखरी धूल थोड़ी सी उड़ाता है खुश हो जाता है

आईने पर चढ़ी धूल हटती है कुछ चेहरा साफ नजर आता है
खुशफहमियाँ बनी रहती हैं समय आता है और चला जाता है

दिये की लौ और पतंगे का प्रेम पराकाष्ठाओं में गिना जाता है
दीये जलते हैं पतंगा मरता है बस मातम नजर नहीं आता है




दर्ज़नों ग्रुप्स के हज़ारों मित्रों का जज़्बा जब,
आंखें बंद कर देखा तो पागल मन भर आया।

प्रदूषण और कोरोना ने ऐसा हाल किया "दराल",
कि क्या बताऊँ, हमने दीवाली पर्व कैसे मनाया।




झोपड़ी सहती व्यथा है
द्वार पर लक्ष्मी उदासी
उतरनों की जब दिवाली
फिर भरे कैसे उजासी
जो विवशता दूर भागे
फिर हँसी भी खिलखिलाए।।

 चलते-चलते .. सुनिए एक गीत

5 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन
    मेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. लाजवाब प्रस्तुतीकरण उम्दा लिंक संकलन..
    मेरी रचना को यहाँ स्थान देने हेतु तहेदिल से धन्यवाद एवं आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं
  3. शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुंदर संकलन मेरी रचना को स्थान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया आपका आदरणीया ।

    जवाब देंहटाएं

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