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मंगलवार, 12 अक्टूबर 2021

3179....गाड़ी जिस और जा रही हो , मुंह उधर करके बैठना चाहिए


मातेश्वरी की जय


या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥



हर दिन नव रूप तुम्हारा नया सन्देसा देता
अष्टम रूप  तुम्हारा मां महा गौरी का होता
नवम रूप सिद्धिदात्री बन मोक्षदायिनी होती
तेरी महिमा से मां सकल जगत सुख पाता....।।




जीवन के संग्राम में,सेनापति खुद आप हैं।
मातु सिखाती सीख ये, बुरे कर्म से पाप हैं।।

ध्यान वृत्ति एकाग्र कर,शुद्ध चेतना रूप से।
पाएं पुष्कल पुण्य को,पार  लगे भवकूप से।।




नींद से आँख खुली है अभी देखा क्या है
देख लेना अभी कुछ देर में दुनिया क्या है

बाँध रक्खा है किसी सोच ने घर से हम को
वर्ना अपना दर-ओ-दीवार से रिश्ता क्या है





मंज़िल दूर है और राह लम्बी
थके हुए हौसले को झकझोर कर
कभी स्वप्न आगे खींचते हैं
तो कभी हताशा पीछे से डोर खींचती है
और मैं उड़ती ही जाती हूँ
डोर से कटी पतंग की तरह



रोचक तथ्य यह है कि पिछली बार जब गीता प्रेस के बंद होने के समाचार सोशल मीडिया पर छाए तो खैरख्वाह लोगों ने बिना मांगे ही प्रेस के बैंक खाते में रुपए ट्रांसफर करने शुरू कर दिए । चूंकि अनुदान लेने की पॉलिसी गीता प्रेस की नहीं है अतः उसने तंग आकर एलान किया कि कृपया हमें पैसे न भेंजे





जलते हुए दर्द के साथ
बर्तन का पानी
रोता है आखिरकार
चाय पीने वाले को देख  कर
जो कोशिश में है
अपनी प्यास बुझाने की।

इति शुभम


3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज की हलचल ! मेरी रचना को आज के अंक में सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार यशोदा जी ! सप्रेम वन्दे !

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  2. बेहद खूबसूरत प्रस्तुति। सभी रचनाएं सराहनीय

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  3. माता रानी की स्तुति करता सुंदर सार्थक अंक,बहुत शुभकामनाएँ।

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