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शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2021

3168....प्रेम की स्मृतियाँ

शुक्रवारीय अंक में
मैं श्वेता आप सभी का 
स्नेहिल अभिवादन करती हूँ।

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अज़ब-गज़ब पैंतरे विचित्र से जोग
गढ़े जा रहे विस्मयकारी संजोग
समझ पाये न हकीम लुकमान भी-
ऐसा असाध्य यह प्रसिद्धि का रोग।
लाज़ कुतरती चुहिया ,शेष अस्तित्व भग्न 
भय का दीमक,अस्वीकृतियों का दुःस्वप्न 
फिसलनभरी भूमि पर असमंजस में प्राण
सँभाले पगड़ी कि बचाये पदत्राण
बगुलों का भगतवाला हास्यास्पद ढ़ोंग
ऐसा असाध्य यह प्रसिद्धि का रोग।
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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं
सर्वप्रथम एक गंभीर चिंतन की ओर ध्यान आकृष्ट कराता लेख पढ़िये और.समझिए भी-



यूं तो भारत के सीमावर्ती राज्‍य क‍िसी ना क‍िसी तरह ड्रग्‍स तस्‍करी के जाल में पहले से ही जकड़े हुए हैं, ज‍िसमें क‍ि नॉर्थ-ईस्‍ट, पंजाब, कश्‍मीर तो पहले से ही था, अब गुजरात का कच्‍छ क्षेत्र भी शाम‍िल हो गया है। पंजाब में आज भी 860,000 केस ड्रग्स सेवन के होते हैं ज‍िनमें से 53 फ़ीसदी को हेरोइन की लती हैं तो कश्‍मीर में नौजवानों को इसका लती बनाकर आतंकवाद में धकेला जा रहा है। एजेंस‍ियां इस पर लगातार काम भी कर रही हैं, बावजूद इसके ड्रग स‍िंडीकेट का दायरा लगातार बढ़ रहा है। अकेले स‍ितम्‍बर का ही आंकड़ा है क‍ि पंजाब की दो जेलों में ड्रग रैकेट, कर्नाटक में 2.5 करोड़ की ड्रग व आंध्र में ड्रग्‍स ले जा रहा ट्रक ज़ब्‍त, महाराष्‍ट्र में 25 करोड़ और असम में 7 करोड़ की ड्रग पकड़ने के बाद अब गुजरात की ये खेप ज‍िसकी कीमत करीब 21,000 करोड़ रुपये आंकी गई

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प्रेम स्मृतियों में सबसे खूबसूरत होता है-

प्रेमिका को याद करते हुए

प्रेमिका को याद करते हुए
याद आती है वो नदी
जो दरअसल तैर कर करनी थी पार
मगर हम तलाशते रहें
एक मल्लाह जो ले जा सके उस पर

प्रेम की स्मृतियाँ उतनी धूमिल नहीं होती कभी
प्रेमिका के नाम के अक्षर को हम पहचान लेते हैं

सबसे खराब लिखावट में भी


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वर्तमान को जीना जिसे आ गया समझो वो जीवन का रहस्य पा गया-


अक्सर देखता हूं
हमारे बीच 
थकी-मांदी सी
हांफती हुई
पसीने से लथपथ
ही जिंदगी बैठती है 
पास हमारे। 
देखा होगा तुमने भी
कभी भी मुस्कुराती नहीं
केवल
हमें देखती रहती है।

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कुछ सबक परिस्थितियाँ सिखाती हैं
कुछ बातें समय के साथ समझ आती है।


मर्यादा में बहे तो नदिया अच्छी है
तोड़े जो तटबंध ,प्रलय फिर ढाती है

ख्वाहिश का संसार अगर छोटा रख लो
सच मानों फिर दुनिया बहुत सुहाती है



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और चलते-चलते पढ़िए
पर्यावरण पर भाषण देकर अपने दायित्वों से मुक्त नहीं हो सकते हम,जीवन और प्रकृति के मध्य सही संतुलन बनाने का सार्थक संदेश-


प्रकृतिक संसाधनों का अनियमित उपभोग और स्वहित में पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने के कारण आज जलवायु का पूर्ण चक्र प्रभावित हो चूका है। बढ़े हुए प्रदूषण के कारण कई नई जानलेवा बिमारियों का जन्म हो चूका है जिसका ईलाज दुनिया के किसी डॉक्टर के पास नहीं है। नदियाँ बेकाबू हुई पड़ी है, पहाड़ दरक रहे हैं, ग्लेशियर पिघल रहे हैं और हम अपने सुख-साधनों में लिप्त सो रहे हैं। 

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कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।

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10 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात श्वेता जी...। आभार आपका...।

    जवाब देंहटाएं
  2. अक्सर देखता हूं
    हमारे बीच
    थकी-मांदी सी
    हांफती हुई
    पसीने से लथपथ
    ही जिंदगी बैठती है
    पास हमारे।
    शानदार अंक
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर सार्थक और सराहनीय रचनाओं की सराहनीय प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्‍यवाद श्‍वेता जी, मेरी पोस्‍ट को शाम‍िल करने का बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. एक ह्रदयस्पर्शी प्रस्तुति प्रिय श्वेता। और भूमिका में लिखी सार्थक पंक्तियों का कोई जवाब नहीं। दिखावे और प्रसिद्धि की दौड़ में आकंठ निमग्न लोगों पर क्या खूब लिखा तुमने। वाह!!😀😀 बगुले भगतों का हास्यास्पद ढोंग 👌👌
    कहां नब्ज़ पकड़ ली इस असाध्य बीमारी की एक सुद्क्ष वैद्य की मानिंद। ये रोग यत्र-यत्र और सर्वत्र व्याप्त हो चुका है। घर-आंगन तक पैठ बना चुका है। लोगबाग दिखावे के इस रोग की भयावहता को नकारते हुए इसे खुशी से अपना रहे हैं। इस सटीक व्यंग्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं और प्यार। शेष, आज की रचनाएँ पाँच हैं और पांचों आनंद प्रदान करने वाली हैं। तीनों काव्य रचनाएँ और दोनों लेख बहुत बढ़िया हैं। सभी रचनाकारों को बधाई। सस्नेह 🌷🌷🌷❤️

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  6. सबसे पहले तो देरी से उपस्थित होने के लिए हृदयतल से क्षमा चाहती हूं 🙏
    मेरे लेख को साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद श्वेता जी, दिल से शुक्रिया एवं सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं

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