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सोमवार, 20 सितंबर 2021

3157 ---------हम सच देखेंगे, सच ही कहेंगे

 नमस्कार !  स्वागत है आज के पाँच लिंक्स के आनन्द में । 

यूँ तो आपने एक उक्ति सुनी या पढ़ी ही होगी कि जहाँ न पहुँचे रवि , वहाँ पहुँचे कवि । यानि कि जहाँ सूर्य का प्रकाश भी न पहुँचे वहाँ की बातें कवि अपनी कल्पना में ले आता है । मैं तो कहती हूँ कवि ही क्यों हर लेखक की कल्पना शक्ति विस्तृत होती है । कोई भी लेखक अपनी कल्पना शक्ति द्वारा ही कहानी , कविता , लेख , उपन्यास लिख कर कुबेर का खज़ाना पा लेते हैं ( वैसे ये कवियों के लिए थोड़ी गलत बयानबाज़ी है )  । अमृता तन्मय जी का बड़ा मासूम सा सवाल कि यदि आपके सामने कुबेर का खज़ाना और कल्पना का खज़ाना हो तो आप कौन सा चुनेंगे ?  बाकियों का तो पता नहीं लेकिन  जब केवल  मान लेना है कि ये दो ख़ज़ाने सामने हैं तो कल्पना का ही चुनेंगे और कल्पना में ही सोच लेंगे की कुबेर का खज़ाना हमारे हाथ लग गया है ..... खैर  आप इनके द्वारा दिये तथ्यों पर गौर फरमाएँ  और इनकी कल्पना का आनंद उठाएँ ---– 


 कल्पना करें यदि आपके सामने एक तरफ कुबेर का खजाना हो और दूसरी तरफ कल्पना का खजाना हो तो आप किसे चुनेंगे ? गोया व्यावहारिक तो यही है कि कुबेर का खजाना ही चुना जाए और बुद्धिमत्ता भी यही है ।  तिसपर महापुरुषों की मोह-माया-मिथ्या वाले जन्मघुट्टी से इतर बच्चा-बच्चा जानता है कि इस अर्थयुग में परमात्मा को पाने से ज्यादा कठिन है अर्थ को पाना ।


कल्पना से निकल अब  कदम बढ़ाते है सत्य की ओर .......उस ओर बढ़ने से पहले एक बात अपनी कहना चाहूँगी , कुछ लोगों की पोस्ट का कथानक बहुत अच्छा होता है , उसे लोगों को पढ़ना भी चाहिए , लोगों तक पहुँचाने का मेरा मन भी करता है लेकिन वर्तनी की त्रुटियाँ होने के कारण अक्सर मैं छोड़ देती हूँ । विशेषकर अभी हिन्दी दिवस के उपलक्ष में आई बहुत सी कविताओं में त्रुटियाँ देख मन थोड़ा क्षुब्ध हुआ । खैर ...... हिन्दी भाषा को हम उसका स्थान दिलाने में जो असमर्थ हो रहे हैं उसकी जो टीस मन की गहराई में उभरती है उसकी एक सटीक बानगी संदीप कुमार  शर्मा जी की यह कविता कह रही है -----

हम सच देखेंगे, सच ही कहेंगे

हिंदी पर

लिखता हूं तो 

अपने आप को अपराधी पाता हूं। 

बच्चे जिन्हें 

जीने के लिए

अंग्रेजी का मुखौटा चाहिए था

मैंने दे दिया।


सच कहने पर आएँ तो बहुतों को कष्ट हो जाता है । क्योंकि सच तो होता ही कड़वा है , लेकिन बहुत बार एक लेखक सच को हास्य व्यंग्य में लपेट कर परोस देता है .... ऐसे ही आनंद पाठक जी ले आये हैं अल्लम गल्लम पर एक व्यंग्य रचना  .. पढ़ें और आनंदित हों ---


चाय का एक घूँट जैसे ही मिश्रा जी के हलक के अन्दर गया कि एक शे’र बाहर निकला।

चाय की प्याली नहीं है , ज़िन्दगी का स्वाद है, 

मेरे जैसे शायरों को आब-ओ-गिल है, खाद है ।

[आब-ओ-गिल है खाद है = यानी खाद-पानी है ]

मिश्रा जी ने अपनी समझ से शे’र ही पढ़ा था कि पास खड़े एक आदमी ने कहा--

-जी ! आप कौन ?



सच ही है कि जब से ज़ूम पर प्रबुद्ध  रचनाकार आने लगे हैं और विभिन्न प्रतियोगिता में उनकी हिस्सेदारी हुई है तो प्रतियोगिता जीतने  की होड़ भी लगी हुई है .  वैसे तो सभी कुछ न कुछ कमाने में लगे रहते हैं । कोई नाम कमा रहे है तो कोई पैसा । पैसा कमाने के लोगों ने बड़े शातिर तरीके अपनाये हुए हैं।  अब जब उन शातिरों पर सरकार की गाज गिरती है तो तिलमिला जाते हैं । आँख खोल कर जानिए कि आखिर देश में हो क्या रहा है ?  कैसी विचारधारा को विकसित किया जा रहा है ? अब छोडो भी ..... अरे मतलब इस  ब्लॉग पर  अलक नंदा जी  प्रस्तुत कर रही हैं एक सार्थक लेख .......... 

ठीक इसी तर्ज़ पर हमारे देश की सुरक्षा व समृद्ध‍ि पर घात कर रहे ब्‍यूरोक्रेट और कथ‍ित सामाज‍िक कार्यकर्ता हर्ष मंदर सरीखे भेड़‍ियों की अब पोल खुल रही है मगर कठघरे में अकेले हर्ष मंदर ही नहीं, उनकी पूरी लॉबी आती जा रही है क्‍योंक‍ि इसमें शाम‍िल 25 से ज्यादा “बुद्ध‍िजीव‍ियों” ने मंदर को “शांति और सौहार्द्र” के लिए काम करने वाला बताकर सरकार (ईडी) के ख‍िलाफ एक संयुक्‍त बयान जारी क‍िया है। 


और इस आँख खोलू ( Eye opener )  लेख के बाद बहुत खूबसूरत सीख देती एक रचना लायी हूँ  जिसे पढ़ आप सभी का मन ऊर्जा से भर जाएगा । कवि ने निरंतर जीवन में उत्साह बनाये रखने की सलाह दी है भले ही जो बनना चाहते थे न बन पाए हों लेकिन उत्साह नहीं खोना चाहिए ..... प्रवीण पाण्डे  जी की कविता पेश है ---

दुख सहना पर पीर पिरोना


बाहर तीखे तीर चल रहे,
सीना ताने वीर चल रहे,
प्यादे हो, हद में ही रहना,
दोनों ओर वजीर चल रहे।

मन अतरंगी ख्वाब न पालो,
पहले अपने होश सम्हालो,
क्यों समझो शतरंजी चौखट,
बचपन है, आनन्द मना लो।

ज़िन्दगी में  एक तरफ उत्साह बनाये रखने का आग्रह और दूसरी तरफ बहुत बार कुछ ऐसा घटित होता है कि जीवन ही कोई दाँव पर लगाने को प्रस्तुत हो जाता है । लेकिन फिर कहीं से अचानक कोई प्रेरणा पा अपने मन को  दृढ़ करता है । सच ज़िन्दगी भी कैसा ताना - बाना है !!!!!  और  ताना बाना पर पढ़िए उषा किरण जी की एक लघुकथा --  

स्थगित


रेल की पटरियों पर बदहवास रोती चली जा रही दीप्ति के पीछे एक भिखारिन लग गई।

- ए सिठानी तेरे कूँ मरनाईच न तो अपुन को ये शॉल, स्वेटर और चप्पल दे न…ए सिठानी …!

दीप्ति ने शॉल, स्वेटर और चप्पल उसकी तरफ उछाल दिए।  भिखारिन और तेजी से पीछा करने लगी।

- ऐ सिठानी ये चेन और कंगन भी दे न…भगवान भला करेंगे…!



इस कथा को पढ़ मुझे लगता है कि हमारे बुद्धिजीवी वर्ग का  नेतृत्व करने वाली कुछ  महिलाएँ क्या सच ही स्त्री सशक्तिकरण पर कुछ सार्थक कर पाएँगी ....... या बस गोष्ठी और नारे ही रह जायेंगे ----    मन में   ऐसी ही कुछ  शंका लिए श्वेता सिन्हा एक सशक्त रचना ले कर आई हैं और जानना चाह रही हैं कि क्या सच ही कुछ बदलाव होगा ? पढ़िए उनकी रचना और थोड़ा विचारिये .....क्या सच ही स्त्रियों के लिए कहीं कुछ हो रहा है ?????   


नामचीन औरतों की
लुभावनी कहानियाँ
क्या सचमुच
बदल सकती हैं
हाशिये में पड़ी
स्त्री का भविष्य...?

उंगलियों पर
गिनी जा सकने वाली
प्रसिद्ध स्त्रियों को
नहीं जानती
पड़ोस की भाभी,चाची,ताई,

इस विचारणीय कविता के साथ ही आज की हलचल का समापन कर रही हूँ ।  फिर मुलाकात होगी ..... इसी जगह ........ इसी दिन ..... इसी समय .......एक ब्रेक के बाद । 


धन्यवाद 
संगीता स्वरूप ।

36 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी पर
    लिखता हूं तो
    अपने आप को अपराधी पाता हूं।
    सादर नमन.

    जवाब देंहटाएं
  2. आभार आपका संगीता जी...। साधुवाद मेरी रचना को सम्मान देने के लिए...।

    जवाब देंहटाएं
  3. यहाँ आते ही आपके साथ हम भी आपके कल्पना वाले कुबेर के खजाने में घुसपैठ कर गए । सच्चिदानन्द की काल्पनिक ही सही परम अनुभूति हो रही है । पृथ्वी पर अवतरित होने के बाद यहाँ की बातें होंगी । आभार !

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    उत्तर
    1. अमृता जी ,
      परम अनुभूति पश्चात पृथ्वी पर आगमन हो ही गया होगा । गूढ़ टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद।

      हटाएं
    2. आपका यही चुटिला संवाद सबों को एक सूत्र में बांधने के लिए काफी है । वैसे हाथ कंगन को आरसी क्या ....

      हटाएं
  4. बहुत आभार आपका मेरी रचना सम्मिलित करने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  5. कुबेर के ख़जाने पर बैठकर हम कल्पनाओं के घूँट भरेंगे
    ज़िंदगी से चुराकर चंद सुरूरी पल खुशियों को बूँद-बूँद भरेंगे।
    अनूठी भूमिका के साथ विविधापूर्ण सूत्रों में टँकें आपके स्नेहिल शब्दों के मोती ने चार चाँद लगा रखे हैं पठनीय और सराहनीय सूत्रों सजा सोमवारीय विशेषांक सदैव बहुत अच्छा लगता है।
    मेरी रचना को शामिल करने के लिए अत्यंत आभार।
    आपके ब्रेक से वापस आने की प्रतीक्षा रहेगी दी।

    प्रणाम
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता ,
      कल्पना के घूँट भर कर बूँद बूँद ख़ुशियाँ भी चुरा ही ली होंगी ।प्रस्तुति की सराहना से नई ऊर्जा संचय कर रही हूँ ।
      सस्नेह आभार ।

      हटाएं
  6. हार्द‍िक धन्‍यवाद संगीता जी, मेरी पोस्‍ट को शाम‍िल करने के ल‍िए आपका बहुत बहुत आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. फिलहाल यह अनोखी प्रस्तुति तो हमारे लिए कुबेर का ही खज़ाना है। त्रुटियों को यदि आप प्रकाश में लाएं तो मेरी कल्पनाओं के खजाने में वह एक सुखद अहसास ही होगा। इससे सुधरने में सहूलियत होगी। इस सुंदर प्रस्तुति की बधाई और आभार।

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    उत्तर
    1. विश्वमोहन जी ,
      प्रस्तुति को ही खज़ाना कह कर मेरा प्रयास सफल कर दिया ।अक्सर त्रुटियाँ बताती रहती हूँ लेकिन ये भी लगता है कि कहीं कोई नाराज़ न हो जाय । तो झिझक भी जाती हूँ । सराहना के लिए हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  8. सभी लिंक्स मज़ेदार, रोचक व विचारणीय । मेरी रचना को भी चयन कर सम्मान देने का शुक्रिया!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय उषा जी
      आपकी प्रतिक्रिया से मेहनत सफल हुई । आभार ।

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  9. चुंबकीय संपादकीय के साथ बेहद आकर्षक एवं पठनीय सूत्रों की प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ ।

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    उत्तर
    1. अमृता जी ,
      चुम्बक से प्रभावित होने वाले पाठक बने रहें तो यूँ ही प्रस्तुतियाँ मिलती रहेगी।
      सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. मुकेश जी ,
      वैसे यहाँ जी लगाना अटपटा लग रहा है । 😄😄😄
      उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया ।

      हटाएं
  11. जी प्रिय दीदी , बहुत प्यारी प्रस्तुति और इस पर आज लिखने का लोभ संवरण ना कर पाई|प्रस्तुत रचनाओं ने निहाल कर दिया तो रचनाओं की समीक्षा ने प्रस्तुति में चार चाँद लगा दिए | ब्लॉग पर त्रुटियाँ आम बात हैं | खेद का विषय है आम तौर पर रचनाकार अपनी त्रुटियाँ स्वीकारने के स्थान पर बताने वाले को धृष्ट की संज्ञा देने में गुरेज नहीं करते , वहीँ मेरे जैसे रचनाकारों को त्रुटियाँ बताने में हिचकिचाते हैं | ये जरूरी है कि समय रहते हम अपनी गलतियों को समझें , अन्यथा कभी पुस्तक छपवानी होगी तो पसीने छूट जायेंगे | पुस्तक छपेगी उससे पहले गलतियों का पहाड़ पार करने में पस्त होना होगा | आज के सुदक्ष रचनाकारों को नमन और आपको ढेरों शुभकामनाएं इस अनौपचारिक , स्नेहिल प्रस्तुति के लिए |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय रेणु ,
      यदि इस प्रस्तुति ने तुमको प्रतिक्रिया देने पर मजबूर कर दिया है तो मेरी प्रस्तुति सार्थक हो गयी ।
      ब्लॉग पर अधिकतर त्रुटियाँ टाइपिंग की गलतियों से होती हैं और जल्दबाजी में रचनाकार इसपर ध्यान नहीं देते । रही पुस्तक छपवाने की बात तो मैंने तो देखा है कि बहुत कम प्रकाशक सम्पादन पर ध्यान देते हैं और जो भी आप उनको भेजो वैसा ही छाप देते हैं ।पुस्तक में भी सारी गलतियाँ छप जाती हैं ।
      सराहना के लिए सस्नेह धन्यवाद

      हटाएं
  12. उत्कृष्ट लिंको से सजी बहुत ही लाजवाब हलचल प्रस्तुति... साथ ही लिंक से पहले रचना पर आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया प्रस्तुति को और भी आकर्षक बना रही है।
    साधुवाद🙏🙏🙏🙏

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    उत्तर
    1. सुधा जी ,
      प्रस्तुति आप जैसे पाठकों को पसंद आती है , मेरा मन खुश हो जाता है ।
      इस स्नेह के लिए हार्दिक आभार ।

      हटाएं
  13. हर रचना को सुशोभित करती आपकी बेहतरीन भाषा शैली में उद्घृत पंक्तियां, संकलन को चार चांद लगा रहीं, रचनाओं की विविधता भी लाजवाब है,एक सुंदर सराहनीय अंक के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय दीदी🙏🙏💐💐

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    उत्तर
    1. प्रिय जिज्ञासा ,
      यूँ तो मुझे लिखना आता नहीं है लेकिन हर बार आप जैसे पाठक प्रशंसा कर देते हैं तो हौसले से भर कुछ लिखने का प्रयास कर लेती हूं😂😂😂
      सच तो ये है कि तुम्हारे लेखन में बहुत विविधता है । कल ही वर्ण पिरामिड पढ़ा है । लिखने का प्रयास किया तो लिख नहीं पाई ।
      यूँ ही तुम्हारा लेखन बढ़ता रहे और हमको नित नए प्रयोगों से अवगत कराती रहो ।
      सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

      हटाएं
  14. बहुत ही शानदार प्रस्तुति।
    आपके परिश्रम को नमन।
    सभी रचनाओं पर व्यक्तिगत टिप्पणी बहुत आकर्षक और विशेषता को इंगित करती।
    सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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