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रविवार, 12 सितंबर 2021

3149 ...मत बाँधो इसको खूंटे से, बेटी है ये गाय नहीं है

 सादर अभिवादन...

ख्वाब मत बना मुझे..
सच नहीं होते,
साया बना लो मुझे..
साथ नहीं छोडेंगे..!!
अब देखिए रचनाएँ ..

तुम बस तुम
जिसमें मैं नहीं बची
हमसफ़र हुए
एक घर हुए
तल्खियाँ फिर भी खिड़कियों से
चुपचाप परस गयीं
पहले हम एक थे
अब हम दो हुए




है अस्तित्व तुम्ही से मेरा
जब भी खोजा जानना चाहा
तारों भरी रात में खुद को
पहचानना चाहा |


थैंक्यू…कह कर लड़की ने आराम से सीट पर बैठ कर चैन की साँस ली। सुलक्षणा उस लड़की की जगह भाई के सामने रॉड पकड़ कर खड़ी हो गई। दीपक अचकचा कर एक कदम पीछे हट गया। सभी की निगाहें दीपक पर जमी थीं और दीपक की निगाह बस के फर्श पर।



उदासियों से भरी इस दुनिया में रहना यदि उदास करता है तुम्हें तो चलो खत्म करते हैं अपना जीवन लेकिन जीवन खत्म करने से पहले चलो मिल आते हैं किसी नेत्रहीन से या फिर किसी दोनो पैरों से अशक्त से नहीं तो जिसने गंवाए हैं अपने हाथ चलो उसी से मिल आते हैं एक पल। ऐसा कभी कोई मिला है




मत बाँधो इसको खूंटे से,
बेटी है ये गाय नहीं है |

मोमबत्तियां जला रहे हैं,
न्याय भरा समुदाय नहीं है |
 
निर्भयता से बेटी रह ले,
ऐसी एक सराय नहीं है |
....
बस फिर मिलेंगे

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात !
    यथार्थ तथा रोचकता से भरी सुंदर सराहनीय प्रस्तुति । बहुत शुभाकामनाएं आपको ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही बेहतरीन और सार्थक अंको से सजी सरहानीय प्रस्तुति! सभी अंक बहुत ही उम्दा और सरहनीय है! पढ़ कर बहुत अच्छा लगा!

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय,
    वेहतरीन चयन । विशेष धन्यवाद !

    जवाब देंहटाएं
  4. शानदार प्रस्तुति आज के अंक की ….मेरी भी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद यशोदा जी |प्राय: सभी रचनाओं को पढ़ने में विलम्ब के कारण प्रतिक्रिया देने में भी विलम्ब हो जाता है…पुन: आभार 🙏

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