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मंगलवार, 7 सितंबर 2021

3144 ..रोज़ सोचते हैं कल बदल लेंगे, रोज़ थोड़ा और निकल आता है।

सादर अभिवादन
भाई कुलदीप जी को मैसेज सभी को आ गया होगा
आज का अंक तो मैं लगा रही हूँ
अगला मंगल हम सब सम्मिलित अंक लगाएंगे
उनके मैसेज में अनिश्चय की भावना दिखाई पड़ रही है
फिर भी कोशिश तो करनी ही पड़ेगी उनको
खैर...आज की रचनाएँ देखें...


सारे जग की खुशी तुम्हारे घर आकर मुस्कायेगी |
जीवन की बगिया के माली ,
एक गुलाब लगाओ |
महके सारी धरती जिससे ,
ऐसा फूल खिलाओ |



जो इंसान
इस और को  
काबू कर संतुष्टि पा ले,
वही इंसान
सही मायने में
सात्विक कहलाता है।  



ना बेटी चिराग का जिन्न बिना दिखे ही हर चाहत पूरी करता है न ... हम सब की जरूरतें पूरी करने के लिए ,भोर से देर रात तक काम करते बिल्कुल तेरे पापा जैसे !"



उस बच्चे से
उम्मीद करना आदर्श की
हमारी निर्लज्जता नहीं
तो और क्या है?



कॉफी आई तो आम ठेलों की तरह हमारा हाथ स्वतः ही वेटर की तरफ बढ़ गया आदतानुसार कप लेने के लिए और वो उसके लिए शायद तैयार न रहा होगा तो कॉफी का कप गिर गया हमारे सफेद बेलबॉटम पर. वो बेचारा घबरा गया. सॉरी सॉरी करने लगा. जल्दी से गीला टॉवेल ला कर पौंछा और दूसरी कॉफी ले आया. हम तो घबरा ही गये कि एक तो पैर जल गया, बेलबॉटम अलग नाश गया और उस पर से दो कॉफी के पैसे. मन ही मन जोड़ लिए. सोचे कि टिप नहीं देंगे और पैदल ही चर्चगेट चले जायेंगे तो हिसाब बराबर हो जायेगा. अबकी बारी उसे टेबल पर कप रख लेने दिये, तब उसे उठाये.
....
इति शुभम्


8 टिप्‍पणियां:

  1. समाज के हर रंग को दिखलाती उम्दा प्रस्तुति

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  2. इस आनंदमई प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आभार सुंदर लिंक्स देने के लिए और शामिल करने के लिए । 🙏🏻🙏🏻

    जवाब देंहटाएं

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