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बुधवार, 25 अगस्त 2021

3131..ए नदियाँ अभी ज़रा तुम ठहरो l

।। भोर वंदन।।
"वो उषा की देवी आई, किरणों का परचम
लहराती
जीवन की सुन्दर बगिया में आशा
की कलियाँ महकाती
रैन अँधेरे भागे भागे
सोनेवाले जागे जागे
उषा आई, उषा आई "
ज़िया फतेहाबादी
चलिए आज हम लोग अपनी जिंदगी से अधिक दुआ, सलाम, प्रणाम को शामिल कर 
नज़र डालते हैं लिंकों पर...✍️




                 आतुर सागर अभी मचल रहा हैं ll

                 तुम उतावली अधीर सागर संगम को l
             सागर व्याकुल लहरों में सिमट आने को ll
                                ⚜️⚜️
                                      

                                    



                        मधुर सुगंध बिखेरती 
                         लहराती बल खाती      

                        मंद वायु  के झोंकों  संग|
                                 ⚜️⚜️
      
                                    

                                   

जय वीर तारिणी विमल भूमि।
विस्तृत हिमाद्रि हे भूमिखंड
ऋषिकेश पावनी तपोभूमि।।

जन गण मन हे अभिलाषी जय
हे मातृभूमि हे स्वर्णभूमि।
मंदाराच्छादित हे विमले..

⚜️⚜️

न महफ़िल न किस्से न बातों ने खोले.
सभी राज़ उनकी निगाहों ने खोले.
 
शहर तीरगी के मशालों ने खोले,
कई राज़ मिल के सितारों ने खोले..

⚜️⚜️

सलीके से जो देखो आईना

 चेहरा दिखा देगा..

⚜️⚜️

।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️





6 टिप्‍पणियां:

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