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मंगलवार, 10 अगस्त 2021

3116 ...हम ऐसे ही तो नहीं थे, लेकिन ऐसे हो गए कैसे गए और क्यों ?

सादर नमस्कार..

कुछ पंक्तियां संगीता दीदी की
अनुज्ञा के बगैर
प्रकृति तो बदलती है
निश्चित समय पर
अपने मौसम ,
होते हैं निश्चित
दिन - महीने ।
लेकिन इंसान के-
मन का मौसम
कब बदल जाये
पता ही नहीं चलता ।
प्रकृति तो बदलती है
निश्चित समय पर
अपने मौसम ,
होते हैं निश्चित
दिन - महीने ।
लेकिन इंसान के-
मन का मौसम
कब बदल जाये
पता ही नहीं चलता ।
.....
कुलदीप जी अभी तक वापस नहीं पहुंचे
कल हरिद्वार में थे
चलिए कोई हानि नहीं
रचनाएं देखें...

मेरी जुस्तजू पर और सितम नहीं करिए अब
बहुत चला सफ़र में,ज़रा आप भी चलिए अब

आसमानी उजाले में खो कर रूह से दूर न हो
चलिए ,दिल के गलियारे में भी उतरिये अब


प्रकृति ने हमें जीवन दिया और हमने उसके शरीर की शिराओं में काला जहर घोल दिया है...। पता नहीं हम कैसे हैं...हमने प्रकृति पर आंखें मूंद रखी हैं...। मैं काफी देर ठिठका सा रह गया... वो पेड़ अपने आत्मबल पर खड़ा था वरना हमने तो उसकी जड़ों में जहर घोल ही दिया है...। हम ऐसे ही तो नहीं थे, लेकिन ऐसे हो गए कैसे गए और क्यों ?


झुलसे से समाज में
रोटी का आकार बेशक सभी के लिए
गोल हो सकता है।
झुलसे से एकांकी घर में
रोटी की रंगत
अनेकानेक
स्याह सी ही होती है।



इनकी गिलट की
पायलों की आहट सुनकर
सचेत हो जाता है
आले में रखा शीशा
वह जानता है
शीशे के सामने ही खड़ी होकर
ये आदिवासी लड़कियां
अपने होने के अस्तित्व को
सजते सवंरते समय
स्वीकारती हैं


जड़ से चेतना ,
संवाद से संवेदना ,
का मार्ग प्रशस्त कर ,
लहरों से बोलता हुआ समुद्र
यूँ ही
मुझ तक आ गया !!


सुख को चुन लेते फूलों सा
दुःख के काँटे नहीं माँगते,
मधुर याद से दामन भर लें
हर कटुता को रहे भुलाते !

मन की ऐसी ही माया है
अनुयायी है राग-द्वेष का,
भला-बुरा औ' प्रेम घृणा में
बाँटा जग को पूर्ण न देखा !


बहुत सी बातें
चाँद -सितारों की
जीवन के सिद्धांतों की
मेरे अल्हड़पन की
देश-विदेश की
तुम्हारे नेहसिक्त सानिध्य की...




पर, गुजारे हैं, पल, सारे यहीं,
रख चले, बुनकर, सपनों के सारे, धागे यहीं,
पर, देखती कहाँ, पलट कर?
भागते, वो धारे,
बहा ले जाती, इक उम्र सारा!
....
आपका स्वागत है
सादर


7 टिप्‍पणियां:

  1. सुख को चुन लेते फूलों सा
    दुःख के काँटे नहीं माँगते,
    मधुर याद से दामन भर लें
    हर कटुता को रहे भुलाते !
    बेहतरीन अंक
    नमन..

    जवाब देंहटाएं
  2. प्रभावशाली प्रस्तुति। ।।।
    शुभ प्रभात व नमन।।।।ह

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत आभार आपका आदरणीय दिग्विजय जी। मन प्रफुल्लित इसलिए भी है क्योंकि ऐसे महत्वपूर्ण मंच पर प्रकृति संरक्षण को लेकर पोस्ट को प्रमुखता से सम्मान दिया जाता है। साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहतरीन संकलन । सभी लिंक्स अत्यंत सुन्दर । संकलन में मेरे सृजन को शामिल करने हेतु सादर आभार आदरणीय दिग्विजय जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. भावपूर्ण भूमिका के साथ सुंदर लिंक संयोजन के लिए साधुवाद
    सभ्य रचनालारों को बधाई
    मुझे सम्मलित करने का आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन प्रस्तुति । सभी रचनाएँ पढ़ आयी । जितनीं समझ आईं वहां दस्तक भी दी । शुक्रिया दिग्विजय जी मेरी पंक्तियों को चुनने के लिए ।

    जवाब देंहटाएं
  7. देर से आने के लिए खेद है, सुंदर रचनाओं का गुलदस्ता ! आभार !

    जवाब देंहटाएं

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