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बुधवार, 14 जुलाई 2021

3089..क्यों उठाएं पालकी

 

गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें 
कोई बदली तिरी पाज़ेब से टकराई है 

-- क़तील शिफ़ाई
शिद्दत से इंतजार है बूदों की, बहुत आँखमिचौली हुई अब बरस भी जाय, चलिए अब बढ़ते हैं लिंकों की ओर कृपया रचनाकारों के नाम को क्रमानुसार पढ़ें ...

आ० मनोज नायाब जी,
आ० रोली अभिलाषा ,
आ०डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा ,
आ० - डॉ शरद सिंह ,
आ० अनुराधा चौहान ..✍️
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क्यों करें यशस्वी गान
तुम जहां बैठे हो
हम ही बिठाएं
बनकर मोरछल फिर
हम ही क्यों चवर ढुलाऐं.......
क्यों खाएं झूठन
क्यों बिछाए कतरन





जाने कितने दिनों से दिल में

चल रहा है बहुत कुछ

और कोई बात नहीं होती

कोई और होता भी नहीं वहाँ

इस तरह रहने लगे हो हमारे दिल में...

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1
बन नहीं पाते हैं
पंकज सभी ।
2
न्याय की देवी
सबूतों , गवाहों के
वश में रही ।
3
बादल छाए

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बन जाए जब एक बोझ

सांसे हो जाती हैं और चौकन्नी

चिपट जाती हैं सीने से

नहीं चाहती थमना


धड़कने

हो जाती हैं सजग

किसी भी क़ीमत...

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प्राण करता मौन मंथन।

याद आते उस घड़ी फिर 

मौन हुए सारे बंधन।


नीर नयनों से छलकता

पूछती फिर प्रीत मन से।

क्यों मचलता आज ऐसे
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।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

8 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहहहह
    क्या अंदाज है
    गुनगुनाती हुई आती हैं फ़लक से बूँदें
    कोई बदली तिरी पाज़ेब से टकराई है
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर,सरस,पठनीय अंक,सभी सूत्रों पर जाकर पढ़ूँगी,हार्दिक शुभकामनाएँ पम्मी जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया लिंक्स को संजोया है आज की प्रस्तुति में । 👌👌👌

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बढ़िया लिंक्स से सजी आज की हलचल।

    जवाब देंहटाएं
  5. तृप्त करती हुई प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को मंच पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीया।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर संयोजन! सभी रचनाकारों को बधाई ,शुभकामनाएँ ।
    मेरी भी रचना को स्थान देने के लिए हृदय से आभार आपका।

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

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