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शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

3084....गौतम की आत्मग्लानि

शुक्रवारीय अंक में आपसभी का 
स्नेहिल अभिवादन

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आज कुछ उलझन  लेकर आयी हूँ कृपया सुलझाने में मदद कीजिए-
लिखने का उद्देश्य क्या होना चाहिए?
सहजता और सरलता से आम पाठकों को जागरूक करना,
पांडित्य प्रदर्शन से विशेष पाठक वर्ग को प्रभावित कर प्रसिद्धि. प्राप्त करना या लिखने के क्रम में वैचारिक बिंदुओं को सीखने, जानने,समझने की जिज्ञासा एवं विषय से संबंधित रहस्यों  को सुलझाने की चेष्टा करना ?
स्वातः सुखाय लेखन किस श्रेणी में आयेगा?
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आइये आज के रचनाओं के संसार में चलते हैं-
आज रचनाओं पर कोई विशेष प्रतिक्रिया नही लिखें है आप पाठक स्वयं आकलन करें और उचित समीक्षा करें-

गौतम की आत्मग्लानि


आँखों में अवसाद का आतप,
मन में विचारों का घर्षण।
आत्मच्युत अपराध भाव से,
लांछित लज्जित न्याय का दर्शन!

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मुझे तुम भूल जाओगे कि वो मंजर नहीं हूँ मैं
ज़रा सी बात पर रूठे कि वो पिंजर नहीं हूँ मैं
बचीं अब भी वहीं दीवानगी जो रौनकें देती-
सहर को शाम जो समझें कि वो मंतर नहीं हूँ मैं।

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तो क्या हुआ

उड़ गए पखेरू 
रह गया पिंजरा रिक्त 
तो क्या हुआ ----?
आत्म-अमरता का विश्वास तो है। 

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कलाकार वह ऊँचा है जो, बना सके हस्ताक्षर जाली
इम्तहान में नकल कर सके, वही छात्र है प्रतिभाशाली।

जिसकी मुठ्ठी में सत्ता है, पारब्रह्म साकार वही है
प्रजा पिसे जिसके शासन में, प्रजातंत्र सरकार वही है।

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 दोपहर तक पूरा परिवार थाना के आगे बैठा रहा।  परिवार के बयान लेकर पुलिस ने प्राथमिकी  दर्ज करने का आश्वासन देकर सभी को घर भेज दिया। शाम में सभी मीडिया कर्मियों को थानाध्यक्ष ने बयान दिया कि एफआईआर दर्ज कर लिया गया। सुबह के अखबारों में विनोद डोम के सूअर के मरने की खबर प्रकाशित हो गई।  
 
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कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।

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31 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर अंक
    व्यवस्थित प्रश्न..
    उत्तर आपके द्वारा
    आप ही ने दिया है
    इसी अंक में..

    राहु का स्पर्श मयंक को,
    ज्यों ही कलंकित करता है।
    ग्रसित मृत-सा गोला मात्र यह!
    राकेश न किंचित रहता है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय दी,्आपको आभार कहने में.संकोच होता है।
      स्नेह बना रहे।
      सादर।

      हटाएं
  2. लिखने का उद्देश्य क्या होना चाहिए?

    सहजता और सरलता से आम पाठकों को जागरूक करना,
    –मान कर चलना चाहिए, पाठक लेखक से अधिक जागरूक होता है, उसे ज्यादा पता होता है

    पांडित्य प्रदर्शन से विशेष पाठक वर्ग को प्रभावित कर प्रसिद्धि प्राप्त करना
    –वरिष्ठ सृजक को कहाँ पता होगी कि उन्हें कितनी प्रसिद्धि प्राप्त होगी या किस वर्ग को प्रभावित कर रहे हैं इसकी चिन्ता रही होगी ?

    या
    लिखने के क्रम में वैचारिक बिंदुओं को सीखने, जानने, समझने की जिज्ञासा एवं विषय से संबंधित रहस्यों को सुलझाने की चेष्टा करना ?

    स्वातः सुखाय लेखन की श्रेणी में आयेगा

    यूँ तो आपको यह बताने की आवश्यकता थी क्या छुटकी

    शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी दी प्रणाम,
      आपके विचार की तरह ही अन्य पाठक या लेखन क्या सोचते हैं जानने को इच्छुक हूँ।

      सचमुच उलझन है दी तभी तो मन में आये प्रश्न लिखे हैं।

      आपका स्नेह मिला मन प्रसन्न हुआ।
      सस्नेह
      सादर।

      हटाएं
  3. सुप्रभात !
    कई सार्थक,रोचक विषयों से परिचय कराता आज का अंक,सराहनीय और पठनीय भी, बहुत शुभकामनाएं प्रिय श्वेता जी, सादर नमस्कार... जिज्ञासा सिंह।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय जिज्ञासा जी,
      स्नेहभरा नमस्कार।
      आप जैसे पाठक ही मंच की शोभा है।
      यह स्नेह और सक्रियता हम चर्चाकारों के लिए अमूल्य है।
      सस्नेह आभार
      सादर।

      हटाएं
  4. सुंदर प्रस्तुति प्रिय श्वेता! भूमिका के प्रश्न की कहूं तो पांडित्य प्रदर्शन करने वाले रचनाकार विशिष्ट वर्ग तक सीमित रह जाते हैं , मैं उन्हें आत्ममुग्ध लेखकों की श्रेणी में रखना चाहूंगी। यूं तो हर लिखने वाला स्वांत सुखाय ही लिखता है पर यदि उसका लेखन सरल और सहज हो तो उसकी पैठ हर आमोखास जिज्ञासु पाठक के भीतर तक रहती है ओ । मुझे तो सरल पढ़ना और सरल ही लिखना अच्छा लगता है। आज की रचनाओं की बहुरंगी छटा मंच पर बिखरी है। सदियों से देवी अहिल्या करुण पात्र बनकर आम जनों के भीतर व्याप्त है। उनके साथ जीती जागती नारी पाषाणशिला होने के शाप के रूप में,अन्याय का अमानवीय निर्णय देने वाले ऋषि गौतम के क्रोधावेश का तम छंट जाने पर, उन्हें उनकी आत्मा ने धिक्कारा तो होगा! न्यायदर्शन के मर्मज्ञ होने के नाते उन्हें एक असहाय नारी के ऊपर एक तरफा निरंकुश आचरण के पौरुष दंभ के लिए आत्म ग्लानि होनी थी चाहिए थी जो जरूर हुई होगी। गौतम की ग्लानि को सटीक अभिव्यक्ति देती मार्मिक रचना सबको पढ़नी चाहिए। पम्मी जी का अंदाजेबयां अपने आप में खास है। बहुत बढ़िया रचना है --
    जमानें हार कर हमनें अब जाना,ये इशारे है

    यहीं पर चाँद है मेरा, यहीं पर हीं सितारे हैं!!!!

    अरूण जी की संवेदनाओं को झझकोरती रचना, सखी कामिनी की भावपूर्ण अभिव्यक्ति के साथ काका जी हाथरसी की रचना पढ़ना सौभाग्य है। रचनाओं का अवलोकन कर लिया है। समय मिलते ही प्रतिक्रिया देती हूं। सभी रचनाकारों हार्दिक अभिनंदन। तुम्हें शुभकामनाएं और प्यार सुंदर प्रस्तुति के लिए।


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय दी,
      सस्नेह प्रणाम।
      आपकी सारगर्भित तथ्यपूर्ण प्रतिक्रिया मेरी उलझन की कुछ गाँठें खोल गयी।
      दी जब आप जैसे सुरूचि संपन्न पाठक रचनाओं का सूक्ष्म विश्लेषण कर प्रतिक्रिया लिखते हैं तो रचना और चर्चा कार दोनों का ही मनोबल सुदृढ़ होता है।
      स्नेहिल आभार दी।

      हटाएं
    2. हृदय से आभार, बिलंब से आने के लिए क्षमा

      हटाएं
  5. एक महत्वपूर्ण प्रश्न....
    "लिखने के क्रम में वैचारिक बिंदुओं को सीखने, जानने,समझने की जिज्ञासा एवं विषय से संबंधित रहस्यों को सुलझाने की चेष्टा करना"
    मैं अपनी बात करूँ तो मेरे लेखन का उदेश्य बस यही है...ना नाम कामना और ना ही पांडित्य प्रदर्शन...

    बेहतरीन रचनाओं का चयन..... मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से आभार श्वेता जी,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी जी,
      भूमिका के संबंध में आपकी प्रतिक्रिया पाकर मन प्रसन्न हुआ।

      मंच पर आपकी उपस्थिति के लिए बहुत बहुत आभारी हूँ।

      स्नेहिल
      शुक्रिया।

      हटाएं
  6. आपके 'स्वांत: सुखाय' का उत्तर तो रामचरितमानस में बाल कांड के प्रस्तावना श्लोक में भारतीय साहित्य के शशि महाकवि तुलसी ने दे रखा है:
    " ..स्वांत: सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा भाषा मति मंजुल...."।
    आज की सुंदर प्रस्तुति का आभार।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी प्रणाम,
      आदरणीय विश्वमोहन जी,
      क्षमा सहित आपके कथन पर कहना चाहते हैं
      तुलसीदास के कथन का उदाहरण देना सरल है पर क्या विचारणीय नहीं कि तुलसीदास जी का क्षणांश भी निष्ठा , तपस्या समर्पण और दायित्व है कि नहीं आत्मावलोकन करना चाहिए।
      ज्ञान उपलब्धि नहीं दायित्व होता और अगर हाथ में लेखनी हो तो यह दायित्व स्वतः स्याही से निसृत होनी चाहिए।
      स्वातः सुखाय की आड़ में कोई अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो सकता।

      आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लगा।
      सादर

      हटाएं
    2. जी, विमर्श में क्षमा का कोई स्थान नहीं। हमने तुलसीदास का उदाहरण उनके कवित्व के सम्पूर्ण रूप में दिया है और यही कहने की चेष्टा की है कि रचनाधर्मिता के तत्वों को सहेजना है तो तुलसी को देखें और उनसे सीखें।

      हटाएं
    3. जी विश्वमोहन जी,आपने कथन का मतंव्य स्पष्ट किया जिससे स्वातः सुखाय के भाव स्पष्ट हुए।
      पुनः अत्यंत आभार।

      प्रणाम
      सादर।

      हटाएं
  7. सुंदर प्रस्तुति श्वेता । सरल ,सहज लेखन से आम पाठकों को जागरूक करना और साथ ही वैचारिक बिंदुओं को सीखने ,समझने की जिज्ञासा लेखन का उद्देश्य होना चाहिए ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय दी,
      सादर प्रणाम।
      भूमिका के संबंध में आपकी प्रतिक्रिया पाकर अच्छा लगा।
      बहुत बहुत आभारी हूँ दी।
      सस्नेह शुक्रिया।
      सादर।

      हटाएं
  8. लिखते चलिए दी
    सोचते रहेंगे तो कलम
    भूल जाएगी लिखना
    सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  9. सार्थक विषय को उठातीं आज की प्रस्तुति। सभी रचनाकारों को बधाई। मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए धन्यवाद।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय दी,
      सादर प्रणाम।
      बहुत बहुत आभारी हूँ।
      सस्नेह शुक्रिया।

      हटाएं
  10. उत्तर
    1. प्रिय अनुराधा जी,
      सस्नेह शुक्रिया।
      सादर।

      हटाएं
  11. आज की प्रस्तुति देख तो ली थी लेकिन लिंक्स पर अभी जाना हुआ । भूमिका में पूछे गए प्रश्न के उत्तर प्रत्येक व्यक्ति के अलग हो सकते हैं क्यों कि सब के अलग अलग ही विचार होते हैं । यूँ मेरा व्यक्तिगत विचार है कि कोई भी रचना हर एक स्वान्तः सुखाय ही लिखता है । कुछ क्लिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं ,लेकिन हो सकता है कि उनको वो क्लिष्ट न लगती हो । वैसे मैं तो रोजमर्रा की भाषा में ही लिखना पसंद करती हूँ जो सब आसानी से भावनाओं तक पहुँच सके ।
    और आज के लिंक्स की रचनाओं में गौतम की आत्म ग्लानि पढ़ते हुए लगा कि अब पछताए क्या होत है जब चिड़िया चुग गयी खेत । पम्मी के मुक्तक हैं या रुबाइयाँ लेकिन गज़ब हैं ,आज देर से प्रतिक्रिया दे रही हूँ ..... तो क्या हुआ ..... सब पढ़ीं न जा कर .... एक अच्छी संदेशपरक रचना और आदमी की संवेदनाएँ भी मर गयीं है .... एक कड़वे सच से रु ब रु करा रही है ।
    काका हाथरसी को बहुत अरसे बाद पढ़ा .... अमंगल आचरण । आनंद आ गया ।
    सस्नेह ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय दी,
      सादर प्रणाम।
      आपकी सधी हुई सुलझी प्रतिक्रिया ने इस अंक को पूर्णता प्रदान की।
      भूमिका पर विशेष विचार विचारणीय हैं। दिए गए
      सूत्रों को पढ़कर प्रतिक्रिया लिखना रचनाकारों का उत्साह बढ़ाना महत्वपूर्ण है।

      आपका आशीष मिला
      बहुत-बहुत आभारी हूँ दी।
      सस्नेह शुक्रिया
      सादर।

      हटाएं
  12. मुग्ध हूं बहुत सुंदर प्रस्तुति
    लेखनी हरपल कुछ कहती है इसमें विरोधाभास की कोई बात नहीं है

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय भारती जी,
      सही कहा आपने विरोधाभास नहीं होना चाहिए किंतु विमर्श करना चाहिए न ताकि नये सकारात्मक निष्कर्ष प्राप्त हो।
      आपकी सारगर्भित बात बहुत पसंद आयी।
      बहुत आभारी हूँ।
      सादर।

      हटाएं
  13. संकलन में जगह देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  14. लेखन के संबंध में मैं दूर दूर तक भी कला, शैली, साहित्य और व्याकरण से संबंध नहीं रख पाता परंतु अपनी भावनाओं को मैं अपने बस में भी नहीं रख पाता और उसे शब्द देता चला जाता हूं । कई लोगों के विचार लेखन के संबंध काफी प्रेरक और बहुत कुछ सिखाने जैसा है।

    जवाब देंहटाएं

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