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शुक्रवार, 11 जून 2021

3056...छोटी-सी ज़िंदगी में...

शुक्रवारीय अंक में
आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।

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छोटी-सी ज़िदगी में अपनी---
अनगिनत नन्हीं ख़्वाहिशों की
डोर थामे चलते जाते हैं
कुछ पूरी होती कुछ अधूरी रहती
कुछ दर्द देती बहुत
कुछ से ज़िंदगी पूरी बदल जाती है
पर नयी ख़्वाहिश करना
दिल की फितरत बदल नहीं पाते हैं
टूट कर बिखर भी जाए
नयी उम्मीद की डोर बाँध लेते हैं
समेटे गए टुकड़ों से
एक और खूबसूरत ख़्वाब सजाते हैं
जब तक जीवन का
उलझा-सुलझा-सा ताना-बाना है
जीने के लिए आशा
नयी ख़्वाहिशों का आना-जाना है
इन रंगों की आभा से
 जीवन सफ़र सुहाना है।
#श्वेता

आइये आज के रचनाओं के संसार में-

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 कुछ ख़्वाहिशें अनछुई ही रह जाती हैं, कुछ दुआएँ हवाओं में बिखरकर गुम हो जाती हैं। जाने क्यों जुड़ जाते हैं एहसास जब तारे हैं दूर आसमां में 


अच्छा किया, तुमने मेरी 
वफा पे शक किया,
कुछ और सबक सीखने थे, 
सीख ही लिए।
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मुस्कुराहट,आँसू,खुशी,बेबसी 
भावनाएँ महसूसना स्वाभाविक मानवीय गुण है न फिर किसी की बेरूख़ी पर भी  मौन रहकर गहन अनुभूति में गोते लगाकर रहा जा सकता है तपस्वियों की भाँति अनाहत

तुम महसूस नहीं कर पाते उसे
तुम्हारे संवेगो के चलते
भय की गुंजन से
बस वो एक अनवरत स्पंदन में है
अनियंत्रित रुप से धड़कती 
तुम्हारी धड़कने तुम्हे डरा देती है
उस लौ को बुझा देती है
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मन की तितलियों के बौराने का भी समय होता है शायद मन भी थक जाता है  पहेलियों सी भरी उम्र की यात्रा के बाद फिर नहीं भटकना चाहता बनकर खानाबदोश

कोई जंगल है जो भीतर
अनगढ़ से विचारों का
उसे बाहर लाना है
किसी ऊँची पहाड़ी पे
एक घर भी बनाना है
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किसी भी चिकित्सा पद्धति की श्रेष्ठता पर खींचा तानी और बेतुके बहस आम जनता को भ्रमित करते हैं इसलिए जब जीवन हमारा है तो विवेक और तर्क के आधार हमें जो जँचता है उस चिकित्सा पद्धति को चुनना  मर्ज़ी हमारी

बड़ा दुखद है अपनों को भुलाकर हमने गैरों को अपना लिया। गैरों को अपनाने में कोई बुराई नही ये तो हमारी सहृदयता है, सबको मान-सम्मान देने की हमारी भावनाओं ने ही तो हमें अपनी अलग पहचान दी है। मगर, इसके लिए क्या अपनों को उपेक्षित करना जरूरी था ?बिलकुल नहीं।  200 सालो की गुलामी ने हमसे हमारा बहुत कुछ छीन लिया। ये बात सत्य है कि -अंग्रेज तो चले गए लेकिन उनकी गुलामी से हम कभी आजाद नहीं हुए। उन्होंने हमारी रग-रग में अपनी अपनी संस्कृति और सभ्यता भर दी और उसी में ये एक "एलोपैथ" भी है। 
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महामारी के इस दौर सीमित संसाधनों में दूसरों की मदद करने की कोशिश करना खासकर ऐसे स्वाभिमानियों की मदद की चेष्टा करना जो चाहकर भी मदद की गुहार नहीं लगा सकते उनके स्वाभिमान की रक्षा की जवाबदेही किसकी है इस

धीरे - धीरे सहायता माँगने के लिए फोन आने लगे और सहायता करने की चाह रखने वालों के भी.  सहायता पहुँचाई जाती रही. पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि किसे सहायता की गई, उनका नाम पता नहीं बताया जायेगा, न कोई तस्वीर. बस एक शर्त थी कि जरूरतमंदों को अपने आधार कार्ड की कॉपी देनी होगी ताकि रिकार्ड रखा जा सके.  जितनी जरूरत थी, उतनी ही सहायता ली गई. 
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और चलते-चलते
एक ही आसमां के नीचे विसंगतियों का डेरा है जिसे समझा गया हो अहं,  शायद वहाँ समय की गूँज में खोये आत्मसम्मान का बसेरा हो जरुरी नहीं परिस्थितियों के सूनापन में गूँथा हो  अहंकार


ज्वार में अहंकार की
धंसती फुफकारती भंवर-सी
तुम्हारी क्षुद्रता की भाटा है।
उठो, झाड़ो धूल अपने अहं की,
गिरा दो दीवार और महसूसो,
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कल का विशेष अंक लेकर आ रही हैं
प्रिय विभा दी।

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर सखी
    बेहतरीन रचनाएँ..
    वाणी गीत ने मन मोह लिया
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. पर नयी ख़्वाहिश करना
    दिल की फितरत बदल नहीं पाते हैं
    टूट कर बिखर भी जाए
    नयी उम्मीद की डोर बाँध लेते हैं.... छोटी-सी जिंदगी का बड़ा सच। अत्यंत आत्मीय समाकलन सुंदर सूत्रों का। आभार!!!

    जवाब देंहटाएं
  3. "जब तक जीवन का
    उलझा-सुलझा-सा ताना-बाना है
    जीने के लिए आशा
    नयी ख़्वाहिशों का आना-जाना है"

    बस यही तो जीने का बहाना है,अपनी कविता से जीवन संदेश देती भूमिका के साथ बेहतरीन रचनाओं से सुसज्जित लाजबाब प्रस्तुति स्वेता जी ,मेरी रचना को भी स्थान देने के लिए हृदयतल से धन्यवाद,आप सभी को शुभकामनायें एवं नमन

    जवाब देंहटाएं
  4. सीमित लिंक में भी असीमित आनंद मिला । हर रचनाकार की रचना प्रभावित करती है ।
    और ये छोटी सी ज़िन्दगी कहाँ मुझे तो बड़ी लंबी लग रही है ।
    सस्नेह

    जवाब देंहटाएं
  5. अनगिनत नन्हीं ख़्वाहिशों की
    डोर थामे चलते जाते हैं....
    पर दुःख तो तब होता है जब इन छोटी छोटी ख्वाहिशों का हक भी हमसे छीन लिया जाता है। तब जिंदगी का एक एक पल बोझ लगने लगता है।
    बहुत अच्छे और विविधतापूर्ण लिंक्स। मेरी रचना को शामिल करने हेतु धन्यवाद प्रिय श्वेता। बहुत सारे स्नेहसहित।

    जवाब देंहटाएं
  6. जब तक जीवन का
    उलझा-सुलझा-सा ताना-बाना है
    जीने के लिए आशा
    नयी ख़्वाहिशों का आना-जाना है
    इन रंगों की आभा से
    जीवन सफ़र सुहाना है।!!!!
    सुन्दर भूमिका के साथ अभिनव प्रस्तुति प्रिय श्वेता।
    गद्य और पद्य दोनों प्रकार की रचनाएँ बेहतरीन है। सभी रचनाकारों को नमन और शुभकामनाएं। तुम्हे बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर अंक के लिए।

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  7. बहुत खूबसूरत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत मेहनत कर रहे आप लोग जिसके कारण ही धीमी रफ्तार ही सही, हिंदी ब्लॉगिंग चलायमान है.
    आभार!

    जवाब देंहटाएं

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