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मंगलवार, 2 मार्च 2021

2055 ...अक्सर यूँ कि - खोलने की कोशिश में नयी गाँठ पड़ जाती है

सादर अभिवादन

सच में इरादा पूरा हो जाता है
थोड़ा समय देना होता है...
जब वो पूरा होता है तो..
अनहद प्रसन्नता होती है....

आइए कुछ नयी-जूनी रचनाओं पर एक नजर...
आज की कुछ रचनाएँ आई ब्लॉगर से भी है

सूखते किनार, एक बारीक से धार,
सुदूर है सजल पारापार,
पत्थरों के मध्य कहीं खो गए हैं
हमारे पैरों के छाप,अधझरे कुछ पलाश,
लौटने को है बस कुछ ही दिनों में मधुमास,


कल्पना के विचरते मुक्ताकाश पर,
मानस पटल के विहग को उड़ जाने दो,
जहाँ विचरती हों कल्पनाशीलता,
मन की आशाओं को पंख लग जाने दो,

जीवन को मधुमय मधुमास बन जाने दो....


फिर विदा हो एक दुल्हन
व्योम को निज हाथ में धर
रोम में  पुलकन मचलती
लो चली नयना सपन भर
प्रीत की रचती हथेली
गूँज शहनाई हृदय में।।


मीडिया का सुनहरा युग है आया
सब को ज्ञानवान बनाया
सच झूठ का सामने लाता है रूप
काम करता हैं समय के अनुरूप
भ्रष्टाचारियों की खोलता पोल
खतरे लेता बहुत मोल
राष्ट्र के ज्वलंत मुद्दे उठाता
सरकार की कमियाँ दिखाता


हाँ ये तो था ज्ञात हमारी
दृष्टि भरम में डूबी
फिर भी सपनों में उलझाता
जीवन की है खूबी
उगती रही प्यास होंठों पर
बढ़ते पग के साथ
दिवास्वप्न शिल्पित होने का
पला एक  विश्वास


दोस्त तो दोस्त है दुश्मन भी बराबर का चुनो
हु-ब-हू हम नज़र आते हैं अदू में अपने  

एक वो प्यास जो बुझती है सुबू से अपनी
एक ये आग जो होती है सुबू में अपने

देखता कोई नहीं आँख उठा कर मुझको
फ़ायदा क्या है मुझे चाक-गिरेबानी से


चलते-चलते संगीता दीदी की एक पुरानी रचना
मन में
ना जाने कितनी
गिरह लगी हैं
एक - एक खोलूं
तो
सदियों लग जाएँ
और होता है
अक्सर यूँ
कि -
खोलने की कोशिश में
नयी गाँठ
पड़ जाती है ,
....
बस
कल मिलेगी पम्मी सखी
सादर

5 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहहह
    बेहतरीन अंक..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. लिंक्स का सुंदर चयन । खुद को भी देख प्रफ्फुलित हूँ। आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय दी,सभी रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  4. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं मुग्ध करता हुआ पांच लिंकों का आनंद , मुझे शामिल करने हेतु असंख्य आभार आदरणीया - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं

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