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मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

1978 ...बेकार की नौटंकी छोड़ अब कभी प्यार की बात भी कर

सादर अभिवादन
कायदे से आज
भाई रवीन्द्र जी को होना था
पर नहीं हैं तो नहीं हैं
गुरुवार को पढ़ेंगे उनकी रचनाएँ

चलिए आज की रचनाएँ देखें...

अंतहीन भटकाव ...शान्तनु सान्याल


न जाने कितने जन्म - मृत्यु, 

सुख -दुःख, योग - वियोग, 

मान -अपमान, अशेष हैं, 

फिर भी चाहतों के असंख्य शून्य स्थान, 

जो कुछ मिलता है उसे हम,

एक तरफ हटाए रखते हैं, 

उम्र ख़त्म हो जाती 

लेकिन नहीं भरता संचय का संदूक, 

खुली हृदय की आँख ....राजेन्द्र शर्मा


चिंतन जीवन वैद्य रहा , 

चिंतन है देवेश 

चिंतन चिन्ता मुक्त करे, 

करते रहो निवेश

देखकर मुस्कुराते गये ...सुजाता प्रिय



चोट दिल पर पहले दिया,

फिर मरहम लगाते गये।


जख्म गहरा दिया है मुझे,

दे दवा फिर सुखाते गये।


संग-संग जीने की 'प्रिय',

कसमें भी हैं खाते गये।



समानता ...रोहिताश्व घोड़ेला



मैं तुम्हें देख रहा हूँ

मेरे साथ पढ़ती हुई

और साथ में ही देखता हूं 

तेरे माथे पर बिंदी

छिदवाए नाक में नथ

छिदवाए कान में बालियां

गले में फसाई गयी सांकली

हाथों में पहनी चूड़ियां 

चलते-चलते पुराने तरीके पर
गौर फरमाइए



सब जगह होता है 

सब करते हैं 

पुराने तरीकों को छोड़ 

कुछ नये तरीके से 

करने कराने वालों की बात भी कर 


खाली बैठे 

बात ही बात में 

कितने दिन और निकालेगा 

कुछ अच्छी बात करने की सोच 

कुछ नई बातें करने की बात

ईजाद भी कर 


तंग आ चुका है 

श्मशान का अघोरी तक

लाशों की बात छोड़ 

कभी मुर्दों के जिंदा हो जाने की बात भी कर
....
बस 
कल सखी पम्मी जी आएगी
सादर






8 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन..
    देवी जी आज बस उठी ही है नींद से
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर और बेहतरीन प्रस्तुति दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. सभी रचनाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं, सुन्दर संकलन व आकर्षक प्रस्तुति, मुझे जगह देने हेतु हार्दिक आभार, आदरणीया यशोदा जी - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं

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