शुक्रवारीय अंक में
अश्रुपूरित श्रद्धा सुमन
बात
तुम क्या सोचते हो
यह पूछने की जरूरत नही मुझे
तुम क्या महसूसते हो
यह जानना जरूरी है मेरे लिए
उसने कहा
जेब
नाते- रिश्ते
बोल-बातें
कपड़े- लत्ते
खाने-पीने
गाने-बजाने
जेवर- कपड़े
चाबी-लॉकर
तेरा- मेरा
गर्व-गुरूर
और.....
लोकतंत्र
विरोध प्रदर्शन
हमेशा विरोध ही नहीं होते
कई बार ये लाते है
लोकतंत्र की हड्डियों में
लचीलापन।
अवमानना
चुप चुप है सब आज दिशाएँ
अवमानना के भाव मुखरित।
भग्न सभी निष्ठा है छिछली
प्रश्न सारे रहे अनुत्तरित।
पस्त हुआ संयम हरबारी
मौन लगा फिर देख खटकने।।
राग-विराग
कोई संचित पुण्य जागा होगा जो गुरु का संरक्षण पाया.
हाथ बढ़ाकर अपना लिया था उन्होंने,चरणों में शरण मिली.
जो कुछ भी आज हूँ, उन्हीं की कृपा से.
उन्हीं की अनुकम्पा से शास्त्र-ज्ञान पा धन्य हुआ ,
जीवन का परिष्करण और शुभ संस्कार
उनके सान्निध्य में विकसे. उबार लिया उस
दीन-हीन भीखमंगे बालक को ,अनगढ़ मृदा पिंड को
सँवार कर सुचारु रूप दे दिया .पेट भरने को घर-घर भीख माँगता, रिरियाता रम्बोला, तुलसीदास में परिणति पा कर
श्री राम की कथा वाचन का अधिकार पा गया.
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कल आ रही हैं विभा दी विशेष अंक के साथ।
कवि मंगलेश डबराल जी को नमन
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि
उम्दा लिंक्स चयन
श्रमसाध्य कार्य हेतु साधुवाद
असीम शुभकामनाओं के संग
आदरांजलि डबराल जी को..
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति..
आभार..
कवि मंगलेश डबराल जी को विनम्र श्रद्धांजलि 🙏🏼
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति श्वेता ।
कवि मंगलेश जी को नमन!
जवाब देंहटाएंरचनाओं का चुनाव विविधतापूर्ण रहा
धन्यवाद.
बहुत अच्छी हलचल प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंडबराल जी को विनम्र श्रद्धांजलि!
डबराल जी को विनम्र श्रद्धांजलि सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमंगलेश जी को सादर श्रद्धांजलि...🙏 "जेब “ के चयन हेतु आभार !
जवाब देंहटाएंमंगलेश डबराल जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार संकलन,सभी रचनाकारों को बधाई ,मेरी रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।