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रविवार, 22 नवंबर 2020

1953 ...यादो में है महक रहे, खुशबू चन्दन इत्र


नमस्कार
छठ
बहुत बड़ा उत्सव
मना लिया गया
इस उत्सव के सामने
सारे उत्सव फेल हो जाते हैं

भाई कुलदीप जी बाहर हैं आज..
हमारी पसंद....

विरक्त नज़रों से देखता है बहते
हुए अंतरिक्ष को, वो बांध
चुका है, अपने पांवों
में अमर प्रणय
का लौह -
स्तूप,
उसने नहीं चाहा था देखना मेरा -
अंतर्मुखी रूप।


यादे छुक छुक रेल रही , यादे नैरोगेज
यादो में है कैद रही , बाबू जी की मेज

यादो में चल चित्र रहे , याद रहे कुछ मित्र
यादो में है महक रहे, खुशबू चन्दन इत्र





जब तू ही मेरे दिल में
ढूँढ रहा हूँ मैं
फिर किस को महफ़िल में ?



मुझे कुछ बात कहनी थी 
लेकिन मन कहीं ठहरे तो कहूँ 

मुझे कुछ काम करने थे 
लेकिन मन कहीं रुके तो करूँ 


एक बूंद ही प्रेम अमी की
जीवन को रसमय कर देती,
एक दृष्टि  आत्मीयता की
अंतस को सुख से भर देती !
...
बस आज इतना ही
सादर

8 टिप्‍पणियां:

  1. असीम शुभकामनाओं के संग साधुवाद
    उम्दा प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. छठ पर्व के लिए शुभकामनाएं, पठनीय रचनाओं का संयोजन, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह बेमिसाल रचना प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर संकलन व प्रस्तुति के साथ सजा पांच लिंकों का आनंद मुग्ध करता है, सभी रचनाएँ अपना अलग व ख़ूबसूरत अंदाज़ रखती हैं, मुझे स्थान देने के लिए तहे दिल से शुक्रिया - - नमन सह। छठ पर्व की सभी को शुभ कामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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