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बुधवार, 18 नवंबर 2020

1949..इल्म हो माहताब और भी हैं..

 


।। प्रातःवंदन ।।

और हर सुबह निकलती है
एक ताज़ी वैदिक भोर की तरह
पार करती है
सदियों के अन्तराल और आपात दूरियाँ
अपने उस अर्धांग तक पहुँचने के लिए
जिसके बार बार लौटने की कथाएँ
एक देह से लिपटी हैं..!!
कुंवर नारायण
सच हैं कि 
लौटने की कथाएँ एक देह से लिपटी है और इसी प्रकृति के संग संदेशात्मक
सहअस्तित्व भाव के साथ नज़र डालें चुनिंदा लिंकों पर...✍️
⚜️



अंदाज़े गा़फ़िल की पेशकश...

ज्यूँ हो तुम बेहिज़ाब और भी हैं
मेरे सदके जनाब और भी हैं

तुम न इतराओ इस क़दर तुमको
इल्म हो माहताब और भी हैं

⚜️

आ० जेन्नी शबनम जी...  वसीयत   
जीस्त के ज़ख्मों की कहानी तुम्हें सुनाती हूँ   
मेरी उदासियों की यही है वसीयत   
तुम्हारे सिवा कौन इस को सँभाले   
मेरी ये वसीयत अब तुम्हारे हवाले   
हर लफ्ज़ जो मैंने कहे हर्फ़-हर्फ़ याद रखना   
इन लफ़्ज़ों को जिंदा मेरे बाद रखना   
सी से कुछ न कभी तुम बताना   
मेरी ये वसीयत मगर मत भूलाना
⚜️



कांग्रेस का वरिष्ठ नेता सिब्बल ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा, बिहार चुनाव और दूसरे राज्यों के उपचुनावों के हाल के प्रदर्शन पर कांग्रेस पार्टी (के शीर्ष नेतृत्व) के विचार अब तक सामने नहीं आए हैं। शायद उन्हें लगता है कि सब ठीक है और इसे सामान्य
⚜️





 नमस्ते, संजय राउत जी! आप जिस पद पर हैं और जहाँ के लिए लोगों ने आपको चुना है उसको देखते हुए आप थोड़ा सोच कर बोला करें। कभी आप फेसबुक पर किसी कमेंट को लाइक करने वाली लड़कियों की गिरफ्तारी को जायज़ बता देते हैं, कभी एक...

⚜️



                      
पसंद आऊँ सबको ! पैसा थोड़ी हूँ मैं..! 
हांण मांस का टुकड़ा हूँ  ।
हर वक़्त का दुखड़ा हूँ ।।
किच किच झेल रहा हूँ  ।
नियति के हाथों में खेल रहा हूँ ।।
कहने को मनुष्य का जन्म देकर ,
बड़ा उपकार किया उसने  ।
पर मृत्यु तक हमारी
⚜️

।। इति शम ।।
धन्यवाद
पम्मी सिंह 'तृप्ति'...✍️

7 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी कविता के चयन के लिए आपका आभार पम्मी जी ..।
    आपका चयन सराहनीय है..।

    जवाब देंहटाएं
  2. बेहद सुंदर रचना प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

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