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मंगलवार, 10 नवंबर 2020

1941..द्रोण तो बेचारे बुरे हो गए। जबकि उन्होंने पांडवो का धर्मयुद्ध में ध्यान रखा है

भागम-भाग प्रस्तुति
सादर नमस्कार
किया तो है लिंक संयोजन
अभी 04.10 हुए है सुबह के
शायद 15 मिनट में आप इसे पढ़ेंगे
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द्रोण को यह सब पहले ही दिख रहा था। इसलिए द्रोण ने दक्षिणा स्वरूप एक वचन मांग लिया। वचन मांगा की एकलव्य आगामी धर्मयुद्ध में भाग न ले। बस यह सुनकर एकलव्य को झटका लगा। उसने कहा कि "गुरुदेव, आपने तो ऐसा वचन मांग लिया जैसे किसीने मेरा अंगूठा मांगा हो"।




गुलाम बन के रहोगे तो कुछ नहीं होगा
निज़ाम से जो डरोगे तो कुछ नहीं होगा
 
तमाम शहर के जुगनू हैं कैद में उनकी  
चराग़ छीन भी लोगे तो कुछ नहीं होगा




प्रेम उन हवाओं से छनता रहा,
जो तुम्हारे शहर से लौटी थीं,
तुम्हारे स्पर्श से महका रजनीगंधा
आज मेरे इत्र में आ मिला,



जीत जाने के लिए, 
कुछ नया पाने के
लिए, इक अजीब सी अनबुझ
प्यास रहती है, हर एक
मक़ाम पर, 



हिंदी के बदनाम जगत में , 
यारों  मैं भी लिखता हूँ !

अपने घर में ध्यान दिलाने, 
कड़वी बातें लिखता हूँ !
....
बस
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सादर




6 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया..
    सही समय पर सही का
    बहुत खूब..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. मुझे मंच पर स्थान देने के लिए सादर आभार,
    सभी लिंक काबिले तारीफ़ हैं..
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  3. रचना पसंद आयी सो आभार आपका !

    जवाब देंहटाएं
  4. सराहनीय संग्रहनीय संकलन हेतु साधुवाद

    जवाब देंहटाएं
  5. मुग्ध करती रचनाएँ और आकर्षक प्रस्तुति - - मुझे शामिल करने हेतु आभार।

    जवाब देंहटाएं
  6. सभी लिंक काबिले तारीफ़ हैं.. christmas

    जवाब देंहटाएं

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