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शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

1937 ...कई घावों के निशान कुछ भरे - भरे से, कुछ अभी भी रिसते हुये

 शुक्रवारीय अंक में

आपसभी का स्नेहिल अभिवादन।

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धर्म की परिभाषा
गढ़ने की यात्रा में
शताब्दियों से सींची जा रही
रक्तपोषित नींव 
अभेद्य दीवार खड़ी कर चुकी है
आदमी और आदमियत के मध्य।
और...
वाचाल कूपमंडूकों के 
एडियों से कुचलकर
वध कर डाले गये
मानवीय गुणों के शव एवं
गर्दयुक्त दृष्टिकोण से प्रदूषित हो
तिल-तिल मरती
संभावनाओं की दुर्दशा पर
 धर्म स्तब्ध है!!

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इस मंच पर प्रथम प्रवेश
मेरा चिन्तन

मेरी अदालत और फैसला ...प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल

मेरे हृदय और 
मस्तिष्क के पटल पर 
अंकित है 
कई घावों के निशान
कुछ भरे - भरे से,
कुछ अभी भी रिसते हुये
कुछ नासूर बन 
शिकायत को मजबूर
ना चाहते हुये भी 
पेश कर देता हूँ
कई बार उन्हें
खुद की अदालत में। 

अधूरा गीत



सांझ को आएगी न ठंडी हवा की बहार
प्रेम तुमको दे ना पायेगा फ़िर कभी अपनी पुकार
गुम हो जाएँगी शोखियाँ और मीठी छुवन भी
क्या बचेगा ?
क्या रहेगा ?
बोलों ना फ़िर तुम अभी


तुम्हारी याद में

बिखरी बेचैनियों को 
लिबास दुल्हन का पहनाया 
मेहंदी-काजल से की मनुहार 
सिसकती चुप्पी को मनाया 
तुम्हारी याद में।


मत कहो वर्षा



कौड़ियों के मोल बिकता आदमी का श्रम

आदमी ज्यों हो गया है फालतू डांगर


झूठ-मक्कारी शहर की वायु में शामिल

गुम गया शीतल-मधुर सुख-चैन का चांवर


हाथ में जिनके खिलौनों की जगह घूरा

बचपने में ही थके बच्चे हुए जर्जर


ऐसा क्या सन्यास भला


मन की तृष्णा वही रही ,रहा हृदय में मोह
ऐसा क्या सन्यास भला, जिसमे विरह बिछोह

मन के भीतर भाव रहे, सीता के लव कुश
खुशिया जिसको नही मिली ,वह फिर भी है खुश

तितली


बस चलते फिरते बुत, 
खूबसूरत पत्थरों के तराशे, 
किसी काबिल और 
हुनरमंद संगतराश के औजारों 
के खूबसूरत नमूने जैसे.


मन की वीथियाँ


कई बार इस विषय पर चर्चा भी होती है कि बाहर बिना रूकावट के घूमने की कमी को कौन सब से अधिक महसूस करता है तो वहाँ मैं सब से पहले मुखर होती हूँ कमी महसूस होने की खातिर..यूं तो आदत हो गई है सात महिनों से घर पर ही रहने की मगर बहुत सारे पौधे और फूल जिनके नाम भी मैं नहीं जानती सोचती हूँ कि सूर्य की लालिमा में डूबे याद तो करते होंगे मुझे या फिर भूल गए होंगे । राह में बिछे हरसिंगार शायद राह तकते होंगे मेरी.. किसी फूल पर भूल कर भी भूल से पैर ना पड़ जाए मेरा इसका ध्यान रखती थी मैं ।  .... आज बस इतना ही

कल मिलिए विभा दी से उनकी विशेष प्रस्तुति के साथ सादर


8 टिप्‍पणियां:

  1. अप्रतिम..
    सुन्दर रचनाओं का संगम..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. इस मंच द्वारा मेरी रचना को स्थान देने हेतु आभार व्यक्त करता हूँ। अन्य सभी रचनाकारों को शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  3. व्वाहहहहहह..
    बेहतरीन चयन..
    आभार पढ़वाने के लिए..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर रचनाओं से सजी अनुपम प्रस्तुति। संकलन में मेरी रचना साझा करने के लिए आपका हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रिय श्वेता सिन्हा जी,
    मात्र पांच लिंक्स का चयन करना तब श्रमसाध्य कार्य होता है जब सही मायने में साहित्य सेवा का जज़्बा हो। आपने यह कार्य किया जो वास्तव में सराहनीय है।
    💐🙏💐

    मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏🍁🙏


    सस्नेह,
    डॉ. वर्षा सिंह

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति आदरणीय श्वेता दी।मेरे सृजन को स्थान देने हेतु दिल से आभार।

    जवाब देंहटाएं

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