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रविवार, 18 अक्टूबर 2020

1918....बुराई पर अच्छाई की जीत, नवरात्रि की यही है सीख।

 जय मां हाटेशवरी.....

नवरात्रि के नव दिन पावन,
लगता है सबकुछ मनभावन।
हे अम्बे ,मेरी जगदम्बे,
तेरी महिमा न्यारी है जग में।
मां अष्ट भुजाओं वाली हो,
पापों को हरने वाली हो।
भरती हो सबकी खाली झोली,
करती हो सबकी मुरादें पूरी।
नवरात्रि के नौ दिन पूरे,
मंगलगान करते हैं सारे।
रास करें और गरबा खेलें,
झूमें नाचें मस्ती में गायें।
नवरात्रि के नव रातों में,
करते हैं मां का जगराता।
दशमी को कर दहन रावण का,
विजयादशमी मनाते हैं फिर।
बुराई पर अच्छाई की जीत,
नवरात्रि की यही है सीख।
वन्दना नामदेव

आप सभी को पावन नवरात्रि  के शुभारंभ पर.....
मेरी ओर से असंख्य शुभकामनाएं.....
अब पेश है मेरी पसंद.....


आजा मैया मेरे द्वार
 मन मेरा तेरा आवास
बस तेरी ममता की प्यास।।
सदा करूँ विद्या का दान
जननी जन्मभूमि का मान।।



बापू महात्मा गांधी
बापू तेरा हर इक बंदर नेकी हमको सिखलाए।
कभी न देखे बुरा, न बोले बुरा, बुरा ना सुन पाए।
नोटों पर तस्वीर तेरी ये राह सत्य की दिखलाए।
फिर भी जाने क्यों जन-जन का चंचल मन भटका जाए।

 
क्रांति
इस सिस्टम को बंद नहीं कर लूँगा ,तब तक मैं रुकने वाला नहीं l" अपने 'बिंग हेल्पर टीम' में कई मिशन के साथ काम करते हैं जैसे कि उनका एक हाल-फिलहाल मिशन था
"कोई भूखा ना सोए" इसके साथ ही उन्होंने पिछले साल पटना में भयानक बाढ़ की स्थिति में भी लोगों की काफी मदद की जो काम बिहार सरकार को करना चाहिए था । सिर्फ यही नहीं गरीब बच्चों को पढ़ाने हेतु कंप्यूटर क्लासेस स्थापना की गयी है जिसमें निःशुल्क पढ़ाई होती है और वह खुद उसमें पढ़ाते हैं। जोरदार बारिश में भीग कोरोना जैसी गंभीर बीमारी में लोगों की  सहायता करते और रात्रि में भोजन बाँटने निकलते हैं।
मतदान से जीत के बाद की स्थिति से निपटने के लिए बार-बार नोटा बटन की ओर ध्यान चला जाता है...।


अपने लोगों को ताकत दें, स्थानीय बाजार से खरीदारी करें
कुल मिलाकर यह एक ऐसा अवसर आ रहा है, जब हम सही मायने में ‘वोकल फॉर लोकल’ के अपने शुभ संकल्प को परख सकते हैं। क्या हम यह तय कर सकते हैं कि इस बार हम अपने स्थानीय व्यवसायियों के हाथ मजबूत करेंगे? अपनी आवश्यकता का सामान अपने आसपास के बाजार से खरीदेंगे।

• स्थानीय सुनार से आभूषण तैयार कराएंगे।
• स्थानीय इलेक्ट्रीशियन को सजावटी लाइट तैयार करने को कहेंगे।
• साज-सज्जा की सामग्री किसी मॉल या शो-रूम से नहीं, बल्कि अपने शिल्पियों से खरीदेंगे।
• कुम्हार के चाक को गति देंगे और उससे दीये खरीदेंगे।
• शहर के मोची से जूते-चप्पल बनवाएंगे।
• फर्नीचर अपने बढ़ई से तैयार कराएंगे।
• अपने हलवाई से मिठाई बनवाएंगे।

इकीगाई
अरे यही तो तुम्हारी राह थी   
जिसपर तुम छुप-छुप कर रुक रही थी   
इस लिए तुम बढ़ी नहीं   
जहाँ से शुरू की वहीं पर तुम खड़ी रही   
जाओ बढ़ जाओ इस राह पर   
पन्नों को बिखरा दो क़ायनात में   
कोई झिझक न रखो अपनी बात में,
इकीगाई - जापानी अवधारणा - जीवन जीने की वजह या जीवन का मूल्य   


गंगा-जमुनी संस्कृति का संकुचित ताला खोलो अब
परिवार वाले, समाज के लोग भी जिम्मेवार हैं. आखिर क्यों एक परिवार अपने बच्चों के चाल-चलन, उनकी मानसिकता पर नजर नहीं रख पा रहा है? आखिर क्यों किसी हिन्दू परिवार में उनके बच्चों में उनके धर्म, संस्कृति, सभ्यता के प्रति सकारात्मक वातावरण देखने को नहीं मिल रहा है? क्यों हिन्दू परिवारों के बच्चे लगातार अपनी धार्मिक मान्यताओं से विमुख होते जा रहे हैं? इन सवालों को समाज में, अपने परिवार में परखने की आवश्यकता है. ये विज्ञापन हो अथवा फ़िल्में, कोई कहानी हो या फिर किसी भी तरह का सामाजिक-सांस्कृतिक वातावरण सभी के पीछे कोई कुत्सित मानसिकता काम कर रही है. इस मानसिकता का एकमात्र उद्देश्य हिन्दू धर्म का मखौल बनाना, उसकी जड़ों को खोखला करना ही है.

आ रहे हैं वो
वीरां ओ बन्द कमरों से
पर्दा-ए-उफ़क़ हट रहा
इंतज़ार में बेकल चोखट है
आ रहे हैं वो।
उसकी आँखों से पिएंगे हम
आज न जाम रूबरू लाओ
न साकी न मय की जरूरत है
आ रहे हैं वो।

 
सरोकार मानवीय संवेदनाओं से
सोचा आज फिर कोई मानवीय संवेदना और सरोकार से जुड़ी बात की जाए----------
हमारे अनमोल जीवन की सार्थकता इस बात में है कि हम एक दूसरे  के दुःख-दर्द को बाँटकर जीने की कला विकसित करें।दूसरों के दुख-दर्द को महसूस करके उसमें सहभागी बनने से जो ख़ुशी का भाव स्वयं के भीतर उत्पन्न होता है उसको बयान करना बहुत मुश्किल है।इस कला को अपने भीतर विकसित करने के लिए हमें अपने मन में बैठे छल ,कपट और द्वेष के भावों को दूर करना होगा।अगर ये भाव मन में घर जमाकर बैठे रहेंगे तो दया और परोपकार के  भाव तो हमारे मन के दरवाज़े से ही वापस लौट जाएँगे। इस कड़ी में वाणी में मिठास के द्वारा अपने व्यक्तित्व का शृंगार करना भी अति आवश्यक है।हमारी वाणी से निकला प्रत्येक शब्द ऐसा  हो कि  सुनने वाले व्यक्ति का तन और मन प्रफुल्लित हो उठे। व्यक्तित्व के समग्र विकास के लिए इन गुणों का अपने अंदर  विकास करते समय हमारे सामने अनेक बाधाएँ एवं संकट आ सकते हैं 


धन्यवाद।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रस्तुति..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. सराहनीय प्रस्तुतीकरण
    सस्नेहाशीष व शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका..

    जवाब देंहटाएं
  3. मन्त्र मुग्ध करता अंक, मेरी रचना शामिल करने हेतु हार्दिक आभार - - शारदीय नवरात्रि की सभी रचनाकारों को असंख्य शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं

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