---

रविवार, 11 अक्टूबर 2020

1911...तेरे जाने के बाद ये घर-घर नहीं खली मकान सा लगता है

 जय मां हाटेशवरी......

स्याही खत्म हो गयी “माँ” लिखते-लिखते
उसके प्यार की दास्तान इतनी लंबी थी
न जाने क्यों आज अपना ही घर मुझे अनजान सा लगता है,
तेरे जाने के बाद ये घर-घर नहीं खाली मकान सा लगता है

झरोख़ा
वो आफ़ताब आग बरसाता है हर सू ,
आ अपने इस हसीं महताब से मिला दूँ ।
मेरे ख़यालों की भटकती रूह सी 'निवी' ,
आ तेरे ख़्वाबों की ख्वाहिशों से मिला दूँ ।

 

वन अच्छे लगते है
बना लो राहे और पगडंडिया कितनी भी
घनी छाया के बिन सारे रास्ते कच्चे लगते है

 

क्या कहने तुम्हारे वजूद के 
तुम नहीं तो कुछ भी नहीं है
जीवन की रंगीनियों  की
एक झलक भी दिल  खुश कर देती है
तुम्हारी भीनी भीनी महक
मन खुशी से भर देती है |

नमन तुम्हें हे भुवन भास्कर !
जगती के कोने कोने में भर देते आलोक सुनहरा
पुलक उठी वसुधा पाते ही परस तुम्हारा प्रीति से भरा
झूम उठीं कंचन सी फसलें खेतों में छाई हरियाली
आलिंगन कर कनक किरण का करता अभिवादन रत्नाकर !
नमन तुम्हें हे भुवन भास्कर !


लिखन बैठी जाकी छवि: कुछ भाव
जीवन और मृत्यु की छुअन से जन्मी मेरी कविताएं
जो कब्रों में सोये हैं क्या वो सचमुच मर चुके हैं और जो कब्रों से बाहर हैं , क्या वो सचमुच जिन्दा हैं .
वो अपनी मृत्यु की कल्पना करती है और कहती है - मुझे अभी भी लगता है कि जब मैं मर रही हूँगी तो वह मेरे पास आएगा. (रिल्के)
मुझे ऐसा लग रहा है कि मैं मर रही हूँ . एक दिन मैं खत्म हो जाउंगी और कोई मुझे नहीं ढूंढेगा. न ढूंढ पायेगा .
हो सकता है कई बरसों बाद कोई बेहतर कल हो लेकिन तब मैं नहीं रहूंगी.
इस जगह पर मुझे महसूस होता है जैसे कि मैं हूँ या नहीं हूँ. और फिर 31अगस्त 1941 के एक पहर हुआ यूँ कि ज़िंदगी के एक-एक लम्हे के लिए लड़ने वाली , 

ब्रज भोर की ओर -
कोई
प्राणदायी स्पर्श फिर बढ़ा जाए उम्र
की रेखाएं, नयन, अधर, वक्ष - -
स्थल, गभीरतम हृदय, कहीं
नहीं कोई कांटेदार
सीमाएं, किन्तु
निःशर्त
हो
सभी लेनदेन हमारी, ब्रज भोर की - -
    
 
धन्यवाद।

7 टिप्‍पणियां:

  1. काफी दिन बाद दिखे
    सही चयन के साथ..
    आभार..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. माँ कहीं नहीं जाती लेकिन दिखती नहीं तो...

    सराहनीय प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा संग्रह आज की लिनक्स का |मेरी रचना को शामिल करने के लिए
    आभार सहित धन्यवाद सर |

    जवाब देंहटाएं
  4. शब्दों में जान फूकती रचनाएँ
    उम्दा संचयन

    जवाब देंहटाएं
  5. सभी रचनाएँ मुग्ध करती हैं - - असंख्य आभार मेरी रचना शामिल करने हेतु, नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  6. सार्थक सुन्दर सूत्रों से सुसज्जित आज का अंक ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार कुलदीप भाई ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

आभार। कृपया ब्लाग को फॉलो भी करें

आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! आप से निवेदन है आप टिप्पणियों द्वारा दैनिक प्रस्तुति पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

टिप्पणीकारों से निवेदन

1. आज के प्रस्तुत अंक में पांचों रचनाएं आप को कैसी लगी? संबंधित ब्लॉगों पर टिप्पणी देकर भी रचनाकारों का मनोबल बढ़ाएं।
2. टिप्पणियां केवल प्रस्तुति पर या लिंक की गयी रचनाओं पर ही दें। सभ्य भाषा का प्रयोग करें . किसी की भावनाओं को आहत करने वाली भाषा का प्रयोग न करें।
३. प्रस्तुति पर अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .
4. लिंक की गयी रचनाओं के विचार, रचनाकार के व्यक्तिगत विचार है, ये आवश्यक नहीं कि चर्चाकार, प्रबंधक या संचालक भी इस से सहमत हो।
प्रस्तुति पर आपकी अनुमोल समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक आभार।