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शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020

1909...मुस्कुराता हुआ चाँद चुप चुप खड़ा

शुक्रवारीय अंक में

आप सभी का स्नेहिल अभिवादन।

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गर्द भरा आसमान कभी बदलेगा,

लगता नहीं आवाम-ए-हिंदोस्तान कभी बदलेगा।

धर्म की चौखट पे बाँधते नींबू मिर्ची,

सियासी टोटकों का ये प्रावधान कभी बदलेगा?

दहकती आग सीने में आदमी जलती चिता

सोच कैसे ले इस शहर तापमान कभी बदलेगा।

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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-

प्रतिरोध्य




वन, धारा, पहाड़
उबड़-खाबड़ मिलते हैं
जो हमें बेहद पसंद आते हैं।
जीवन समतल की
खोज करते हैं..,




एक बच्चा जिसने ढंग से भाषा का पहला अक्षर तक नहीं सीखा था
उसे अनाथ बना दिया गया
जनता जब बीमारी और भूख से मर रही
दुनिया भर की सरकारें समुंदरों और सरहद पर सर्कस कर रही है





सोचती क्यूं बहे देख उसे अश्रु ये फ़िज़ूल
ढले अनमोल अश्क़ क्यूं इश्क़ में फ़िज़ूल
भान होता न था वो कभी मुझपर निशार 
ना बहने देती सब्र तोड़ आँखों से फ़िज़ूल ।




तितलियों की
धड़कने
चुभती लताओं पर
डोलती चिनगारियाँ
काली घटाओं पर
इन्द्रधनु–सा
झील में
कोई उतर आये



झुक रहा नील अम्बर सितारों जड़ा | मुस्कुराता हुआ चाँद चुप चुप खड़ा || मैं चलूँ , तो लिपटती हठीली किरन , धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ | जग रही रातरानी सुगन्धों भरी | है सजल केतकी की मृदुल पांखुरी || शूल आँचल गहें , राह रोकें सुमन , धूल की राह पर पाँव कैसे धरूँ |

और चलते-चलते


आज इनके द्वारा चलाया जा रहा सोहम् न्यास (Soham Trust) नामक एक न्यास समग्र पुणे में सामाजिक स्वास्थ्य और चिकित्सा के लिए व्यापक स्वास्थ्य देखभाल परियोजना का काम करता है। शहरी और ग्रामीण दोनों ही क्षेत्रों के जरूरतमंदों के अलावा युवा वर्ग में भी यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सम्बंधित जागरूकता फैलाते हैं। गर्भवती महिलाओं और उसके परिवार को स्वच्छता के तरीके बतलाते हैं। साथ ही गरीबों में आम बीमारी - रक्ताल्पता (Anaemia) की बीमारी की भी जाँच और उपचार करते हैं। 
.....
आज बस
कल मिलिए विभा दीदी से
उनकी अप्रतिम रचना के साथ
-श्वेता







16 टिप्‍पणियां:

  1. सराहनीय प्रस्तुतीकरण
    हार्दिक आभार आपका

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छा और अत्यंत सराहनीय संकलन

    जवाब देंहटाएं
  3. ओज और जोश से भरी सप्ताह भर बाद पाठकों-पाठिकाओं के समक्ष आने वाली आज की आपकी इंद्रधनुषी प्रस्तुति की भूमिका की छः पंक्तियाँ विचरणीय और सराहनीय भी है। विशेषकर - "धर्म की चौखट पे बाँधते नींबू मिर्ची"- बस एक पंक्ति में ही हमारी आडम्बर भरी सुसभ्य और सुसंस्कृत समाज की सोच की बखिया उधेड़ने का प्रयास प्रतीत हो रही है .. शायद ...
    इस मंच पर आज की प्रस्तुति में मेरी रचना/विचार को स्थान देने के लिए आभार आपका ...

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!श्वेता ,सुंदर प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

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