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गुरुवार, 24 सितंबर 2020

1896..मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता

  सादर नमस्कार।

आज की पम्मी बहन की प्रस्तुति देख कर
भाई रवीन्द्र जी ने अपनी पसंदीदा लिंक्स
मेल कर दी....
ब्लॉग का फार्मेट कठिन नहीं है
सिर्फ कॉपी पेस्ट की वजह से
गड़बड़ी हो जाती है..

पढ़िए आज की रचनाएँ..

पुलक बना वह ही बह निकले ....

घन गरजे, गरजे पवना भी  

बीहड़ वन ज्यों अंधड़ चलते, 

सिंधु में लहरों के थपेड़े 

अंतर्मन में द्वंद्व घुमड़ते !


काव्य शिरोमणि

ओज क्रांति विद्रोह भरा था

कलम तेज तलवार सम 

सनाम धन्य वो दिनकर था

काव्य जगत में भरता दम

सिरमौर कविता का श्रृंगार।।


विश्व शान्ति दिवस ....

अधिकाँश विश्व जूझ  रहा

समस्याओं के जंजाल से

युद्ध की विभीषिका से

कोरोना की मार ने भी

नहीं बक्शा उसे

कहाँ शान्ति खोजे

किससे उसे मांगे  

चारो और त्राहित्राही मची है


शब्द - प्रसूताओं के हो रहे हैं पाँव भारी ..

जहाँ आकाशीय स्तर पर

चल रहे इतने सारे सुधार अभियानों से

पूर्ण पोषित हो रही है हमारी भुखमरी , बेकारी

वहाँ आरोपों -प्रत्यारोपों के

शब्दाघातों को सह -सह कर और भी

बलवती हो रही है मँहगाई , बेरोजगारी

पर ऐसा लगता है कि

शब्द -प्रसूताओं के वाद -विवाद में ही

सबका सारा हल है , सारा  समाधान है

'वर्तमान का हिन्दी साहित्य जगत' : 'एक व्यंग्य'

वर्तमान में हमने कुछ खोया है तो वह है- रिश्तों की बुनियाद। 

दरकते रिश्ते, कम होती स्निग्धता, प्रेम और 

आत्मीयता इतिहास की वस्तु बनते जा रहे हैं।


मैले दर्पण में सूरज का प्रतिबिंब नहीं पड़ता... 

अतः अगर हालात जल्द वश में नहीं आये तो 

हिन्दी साहित्य जगत 

दरिद्रता की गर्त में धीरे–धीरे धंसता चला जायेगा।

और साहित्यकार पूर्वजों की आत्मा का 

ठगा सा रह जाना हम देख पायेंगे...।


चलते-चलते

इसकी उसकी करने का आज यहाँ मौसम नहीं हो रहा है


कुछ देर के लिये

यूँ ही ‘उलूक’

भरोसा रखकर

तो देख किसी दिन

राख हमेशा नहीं

बनती हर चीज

सोचने में

क्या जाता है

जलता हुआ

दिल है और

पानी बहुत जोर

से कहीं से चू रहा है

सोचने की छुट्टी

.....
कल मिलिए श्वेता जी से


रवींद्र सिंह यादव

10 टिप्‍पणियां:

  1. शानदार चयन
    किसी छुट्टी के दिन कोशिश
    करके समझिए..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. अशेष शुभकामनाओं के संग हार्दिक आभार आपका
    उम्दा प्रस्तुतीकरण

    जवाब देंहटाएं
  3. सुप्रभात
    उम्दा संकलन आज का |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद आपका |

    जवाब देंहटाएं
  4. शुभ प्रभात, अति श्रम से चुने हुए पठनीय रचनाओं के लिंक्स से सजा अंक, आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. पुलक बिखेरता संयोजन । हार्दिक आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही अनंदकर प्रस्तुति आज की। हर एक रचना को पढ़ने का आनंद अनूठा था।
    आज की प्रस्तुति के लिए तो यही कहूंगी की आज के आनंद की जय।
    आप सबों को सादर प्रणाम।

    जवाब देंहटाएं

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