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सोमवार, 24 अगस्त 2020

1865 हम-क़दम का सौ के ऊपर बत्तीसवां अंक..मुण्डेर.....

नमस्कार स्वीकारें
आज हम पहली बार आपकी 
मुण्डेर पर
दीवार का वह ऊपरी भाग जो ऊपर की छत के 
चारों ओर कुछ उठा होता है या घर के 
परकोटे पर द्वार के पास बने हुए 
दो स्तम्भ जो बाहरी द्वार को थामे रखते है
उसे ही मुंडेर कहते हैं।

उदाहरणार्थ दी गई रचना
आदरणीय मनीषा कुलश्रेष्ठ
ये गुनाह हैं क्या आखिर?
ये गुनाह ही हैं क्या?
कुछ भरम,
कुछ फन्तासियां
कुछ अनजाने - अनचाहे आकर्षण
ये गुनाह हैं तो
क्यों सजाते हैं
उसके सन्नाटे?
तन्हाई की मुंडेर पर
खुद ब खुद आ बैठते हैं
साभार कविताकोश



अब कुछ भूली-बिसरी रचनाएँ....

आदरणीय अशोक लव
मुंडेर पर पतझड़ 
एकाकीपन के मध्य
स्मृतियों के खुले आकाश पर
विचरण कर रहे हैं
उदासियों के पक्षी

कहाँ-कहाँ से उड़ते चले आ रहे हैं
बैठते चले जा रहे हैं
मन मुंडेर पर!
भीग गया है अंतस का कोना-कोना


आदरणीय निहालचंद्र शिवहरे
बचपन से अबतक छत की 
वह मुंडेर मुझे याद आती है
मुंडेर मेरी छत की है या 
तेरी यादों के साये की है 
आज तक मे मैं समझ ना पाया 


आदरणीय मनमोहन जी
बिल्ली आ गई है मुंडेर पर .... 
बिल्ली आ गई है
मुंडेर पर
ख़ून है मुंडेर पर अभी ताज़ा
कितने ही पंख गिरे हैं
चारों ओर

उसकी आँखें हैं
जैसे जंगल जल रहे हों
और आंधियाँ चल रही हों


आदरणीय संजय निराला
मुंडेर पर बैठी चिड़िया
मुंडेर पर बैठी चिड़िया
ठिनक ऑिनक कर गाती,
किस दिल में भर ककर रखी
इतनी करुणा कहां से लाती
....

रचनाएं विभिन्न ब्लॉग से
आदरणीय विश्वमोहन जी
अकेले ही जले दीए

उधर उम्मीदों के दीयों को
आंसूओं का तेल पिलाती
 'व्हाट्सअप कॉल '
में खिलखिलाती
पोते- पोती सी आकृति
अपने पल्लुओं से
पोंछती, पोसती
बारबार बाती उकसाती!
पुलकित दीया लीलता रहा
अमावस को।


आदरणीय पुरुषोत्तम सिन्हा
भूलोगे कैसे ....

उड़-उड़कर कागा मुंडेरे पे आएंगे,
काँव-काँव कर संदेशे लाएंगे,
अकुलाहट आने की ये दे जाएंगे,
सोचोगे, राह तकोगे तुम,
सूनी राहों के पदचाप गिनोगे तुम,
कागा फिर फिर आएंगे,
मुंडेर चढ़ गाएंगे, चिढाएंगे,
तरसाएंगे, मन आकुल कर जाएंगे....

.....
नियमित रचनाएँ


आदरणीया साधना वैद जी
मुंडेर

मुंडेर पर बैठे फुदकते मटकते
खुशी खुशी कलरव करते इन
भाँति-भाँति के पंछियों को
मैंने कभी झगड़ते नहीं देखा !

आदरणीय आशा सक्सेना
उसे तो आना ही है |

मुंडेर पर बैठा कागा
याद किसे करता
शायद कोई  आने को है
दिल मेरा कहता |
जल्दी से कोई चौक पुराओ
आरते की  थाली सजाओ
किसी को आना ही है


आदरणीय सुबोध सिन्हा
अपनी 'पोनी-टेल' में ...

स्वाद चखने के बाद
दोनों होठों के फ्रेम से
"फू" ... कर के उछाला था
टिकी हुई अपनी ठुड्डी पर
नावनुमा मेरी हथेली पर
जैसे फुदक कर कोई
गौरैया उतरती है
चुगने के लिए दाना
मुंडेर से आँगन में ..


 "चहलकदमियाँ"

बस रात भर
मोहताज़ है
दरबे का
ये फ़ाख़्ता

वर्ना दिन में बारहा
अनगिनत मुंडेरों
और छतों पर
चहलकदमियाँ
करने से कौन
रोक पाता हैं भला

आदरणीया कुसुम कोठारी
मन आँगन

जहाँ हल्का धुंधलका
हल्की रोशनी,
कुछ उड़ते बादल मस्ती में,
डोलते मनोभावों जैसे
हवाके झोंके,
सोया एहसास जगाते ,


आदरणीय अनीता सैनी
बड़प्पन की मुंडेर

बड़प्पन की मुंडेर पर बैठा है 
आत्ममुग्ध गिद्धों का कारवाँ  
नवजात किसलय नोंचते हुए 
लोक-हित क्षेत्र से वंचित करते 
कहते वर्जित अधिकार हैं आज 
नज़रिए पर इतराते नज़र झुकाए क्यों हैं? 


आदरणीया सुजाता प्रिया
मुंडेर की आत्मकथा

गिरने से बचने के लिए ,

लोगों ने है मुझे बनाया।
बचाना मेरा कर्तव्य है,
जिसे मैंने बखुबी निभाया।

लोग अलग-अलग तरीके से

करते हैं मेरा इस्तेमाल।
कपड़े सुखाते हैं सभी लोग
सदा ही मेरे ऊपर डाल।


आदरणीय शुभा मेहता 
मुंडेर

यादों की मुंडेर पर बैठा ,
मन पंछी ........
सुना रहा तराने ,
नए -पुराने 
कुछ ही पलों में 
करवा दिया ,
बीते सालों का सफर ।
...
आज इतना ही
कल मिलिएगा रवीन्द्र भाई से
नए विषय के साथ
सादर










14 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. सभी को सुप्रभात और प्रणाम🙏🙏 एक दुर्लभ विषय पर विलक्षण प्रस्तुति। हार्दिक बधाई और शुभकामनायें। सभी रचनाकारों ने बहुत भावपूर्ण लिखा है 👌👌👌 सभी की

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा प्रस्तुति।सभी रचनाएँ सुंदर , सरस और सराहनीय

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छा संकलन
    आभार सभी को
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  5. सुंदर प्रस्तुति।मुझे स्थान देने हेतु सादर आभार आदरणीय सर।
    सादर

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  6. सुन्दर लिंक्स का संयोजन |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सहित धन्यवाद
    रवीन्द्र जी |

    जवाब देंहटाएं
  7. लाजवाब प्रस्तुति !मेरी रचना को स्थान देने हेतु धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  8. अत्यंत सराहनीय प्रस्तुति। आभार और बधाई!!!!

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह बहुत ही बेहतरीन लिंक्स एवम प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  10. सराहनीय,अनुपम रचनाओं की प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  11. आज की विस्तृत हलचल में बहुत ही सुन्दर सूत्रों का समायोजन ! मेरी रचना को स्थान दिया आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार दिग्विजय जी ! सादर वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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