शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का स्नेहिल
अभिवादन।
सबसे पहले पढ़िए
एक पत्र
मेरे प्रिय लेखक प्रेमचंद जी,
यूँ तो आपसे मेरा प्रथम परिचय आपकी लिखी कहानी
'बड़े घर की बेटी' से हुआ। हाँ हाँ जानती हूँ आप मुझे नहीं जानते हैं परंतु मैं आपको आपकी कृतियों के माध्यम से बहुत
अच्छे से जानती हूँ और आज तक आपके विस्तृत विचारों के नभ की अनगिनत परतों को पढ़कर समझने का प्रयास करती रहती हूँ। खैर अपनी कहानी फिर किसी दिन कहूँगी आपसे आज आपको पत्र लिखने का उद्देश्य यह है कि आज आपका 140 वां जन्मदिन है।
पता है हर छोटा बड़ा साहित्यिक मंच आपको दिल से
याद कर रहा है पूरी श्रद्धा से भावांजलि अर्पित कर रहा है।
आज के दौर में भी प्रासंगिक
आपकी लिखी कहानियों के पात्रों के भावों से भींजे
पाठक रह-रहकर वही पन्ने पलटते हैं जिसमें आपने
आम आदमी को नायक गढ़ा था। आज के साहित्यकारों का विशाल समूह जब अपने दस्तावेजों को ऐतिहासिक फाइलों में जोड़ने के हर संभव अथक
मेहनत कर रहा है तब आपकी क़लम बहुत याद रही है।
और हाँ आज आपसे आपकी एक शिकायत भी करनी है मुझे।
जीवनभर अभाव, बीमारी और अन्य मानसिक,शारीरिक
और आर्थिक यंत्रणाएँ सहकर विचारों के अखंड तप से
जो सच्चे मोती आपने प्राप्त किया उसे धरोहर के रूप में आने वाली पीढ़ियों को सौंप गये किंतु आपके जाने के बाद वो क़लम जिससे आपने अनमोल ख़ज़ाना संचित किया है वो जाने आपने कहाँ रख दी किसी को बताया भी नहीं उसका पता तभी तो किसी को भी नहीं मिली आजतक। किसी को तो दे जाना चाहिए था न!
क्या कोई योग्य उत्तराधिकारी न मिला आपको..
जिसे अपनी क़लम आप सौंप जाते?
या फिर आपकी संघर्षशील क़लम के पैनापन से लहुलूहान होने का भय रहा या फिर क़लम का भार वहन करने में कोई हथेली सक्षम न थी?
जिस तरह आपकी कृतियों को संग्रहित करने का प्रयास करते रहे आपके प्रशंसक और अनुयायी उस तरह आपकी क़लम को जाने क्यों नहीं ढूँढकर सहेज पाये।
आपके जाने के बाद उस चमत्कारी क़लम की नकल की अनेक प्रतियाँ बनी किंतु आपकी क़लम की स्याही से निकली क्रांति,ओज और प्रेरणा की तरह फिर कभी न मिल पायीं। जाने कहाँ ग़ुम हो गयी क़लम आपकी।
चलिए अब क़लम न सही आपकी बेशकीमती कृतियाँ तो हैं ही जो किसी भी लेखक की सच्ची मार्गदर्शक बन सकती है।
आपसे अनुरोध है कि आप अपने अनुयायियों और
प्रशंसकों तक यह संदेश पहुँचा दीजिये न कृपया
ताकि हो सके तो आपका गुणगान करने के साथ -साथ
आपके लिखे संदेश का क्षणांश आत्मसात भी करें
और समाज के साधारण वर्ग की आवाज़ बनकर लेखक होने का धर्म सार्थक कर जायें।
आज बस इतना ही बाकी बातें फिर कभी लिखूँगी।
आपकी एक प्रशंसक
आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
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बनी हुई बात को निभाना मुश्किल नहीं है
बिगड़ी हुई बात को बनाना मुश्किल है।
( रंगभूमि)
बिगड़ी हुई बात को बनाना मुश्किल है।
( रंगभूमि)
क्रिया के पश्चात प्रतिक्रिया नैसर्गिक नियम है।
(मानसरोवर-सवा सेर गेहूँ)
चंद प्रेमभरी शिकायतें
दहेज की प्रथा भारतीय समाज का कलंक है, इस एक प्रथा के कारण स्त्री जाति को जितना अपमान और यातना झेलनी पड़ती है, उसका आकलन करना भी असम्भव है. प्रेमचंद की अनेक कहानियों और उपन्यासों में स्त्रियां इस प्रथा के विरुद्ध खड़े होने का साहस जुटा पाई हैं. उनकी कहानी ‘कुसुम’ की नायिका कुसुम, बरसों तक अपने पति द्वारा अपने मायके वालों के शोषण का समर्थन करती है पर अन्त में उसकी आँखे खुल जाती हैं और वह अपने पति की माँगों को कठोरता पूर्वक ठुकरा देती है. अपनी माँ से वह कहती है-
यहाँ कुछ उन कविताओं या काव्यांशों को प्रकाशित कर रहे हैं, जिन्हे कथा सम्राट प्रेम चंद की कहानियों में जगह मिली है। यह किसकी रचनाएं हैं यह जानने से कहीं महत्वपूर्ण है कि ये प्रेम चंद की पसंदीदा कविताएं हैं, पसंदीदा मैं इसीलिए कह पा रहा हूँ क्योंकि ये कविताएं आज यहाँ जीवन पा रही हैं, कविताएं ऐसे भी जिंदा रहती हैं । यह सिलसिला चलता रहेगा, आज पढ़िये प्रेम चंद की पसंद में दो कविताएं-
(मानसरोवर-सवा सेर गेहूँ)
चंद प्रेमभरी शिकायतें
“प्रेम, चिंता, निराशा, हानि, यह सब मन को अवश्य दुखित करते हैं, पर यह हवा के हल्के झोकें हैं और भय प्रचंड आँधी है”
(ग़रीब की हाय)
(ग़रीब की हाय)
“नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है. निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए”
(नमक का दारोगा)
(नमक का दारोगा)
बहरहाल, जब जीवन में पहली बार दंगों से रू-ब-रू होने की नौबत आई, तब तक मैं पटना से निकल चुका था और कुछ ऐसे मुस्लिम दोस्त भी जीवन में आ चुके थे जिनकी बदौलत बचपन में बनी वे छवियां करीब-करीब निष्प्रभावी हो गई थीं। मगर उन किस्सों का फायदा यह हुआ कि जब दंगों के दौरान मेरा साबका उबाल मारती सांप्रदायिक भावनाओं से पड़ा तो क्या हिंदू और क्या मुस्लिम, दोनों तरफ मुझे वैसे ही पात्र दिखने लगे जो नानी की सुनाई कहानियों में सिर्फ मुस्लिम किरदार के रूप में आते थे।
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उम्मीद है आज का अंक आपको
अच्छा लगा होगा।
हम-क़दम का विषय
कल का अंक पढ़ना न भूलें
कल आ रही हैं
विशेष प्रस्तुति लेकर
विभा दी।
#श्वेता सिन्हा