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शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

1813 ...अब जब शहर काफी-कुछ जल चुका है

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन।
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कितनी अजीब बात है न
शांति के लिए युद्ध का आह्वान
जीवन के लिए मृत्यु का वाहन
क्यों
 शांति के लिए क्या युद्ध ही विकल्प है.?
  

आइये आज की रचनाएं पढ़ते है-
★★★★★


पत्रों का मिलना
मिल जाना था
अँधेरे में टटोलते हुए
एक दियासलाई  
या कि,
कड़कती सर्दी में
नरम-गरम 
कथरी और रजाई



अब जब शहर काफी-कुछ जल चुका है
हवा ख़ून की गंध से भारी है
वातावरण चीखों से भर गया है
तब वह एक फिक्र से घिर गया है
जो हुआ उसे किस रूप में याद किया जाएगा?
इसी फिक्र में वह उच्चाधिकारियों की बैठक बुलाता है




सूरज बैठा ओढ़ चदरिया
नीलाम्बर पर श्यामल पट।
बीच श्वेत सी उर्मिल रेखा
भरे भरे बादल के घट।
राह दिखाने डोल मोलकर
चमक दामिनी लहराई।।




कई दिनों तक स्वाति की याद बनी रही उसकी सुंदर छवि आंखों के सामने तैरती रही, फेसबुक में एक दूसरों की पोस्टों में लाईक कमेंटस होते रहे और कभी कभार फोन पर भी बातें हो जाया करती, वह जब भी बात करती, मुझे उसकी हंसी बहुत अच्छी लगती थी,वह कहती आप मेरे अच्छे दोस्त हो ऐसे ही बात कर लिया करो, एक बार तो उसने सर से भी बात करवा दी
"क्या जादू किया है भाई आपने मेरी बीवी पर आपकी बहुत तारीफ करती है.



हम्म भाभी!"चाँद को निहारती पद्मिनी बोली।

"सुन रहे हो राघव? पहले जब चाँद को देखती थी तो तुम बावली कहते थे।अब घरवाले भी कहने लगे!"

"तेरी व्यथा मैं अच्छे से समझती हूँ पद्मिनी!पर जैसे चाँद को पाना किसी के बस में नहीं होता, वैसे ही मृत व्यक्ति का लौटकर आना मुमकिन नहीं।अब तेरा चाँद-सूरज सब यह आयुष है बस इसे देख!"

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 शनिवार 04 जुलाई 2020 शाम तक। 

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कल आ रही हैं विभा दी
विशेष प्रस्तुति के साथ।

#श्वेता सिन्हा




13 टिप्‍पणियां:

  1. व्वाहहह...
    नीरो वंशी बजा रहा है..
    ब्लाग से इतर रचना..
    सादर..

    जवाब देंहटाएं
  2. शान्ति के लिए कभी युद्ध नहीं होता.. सबको पता है युद्ध से शांति नहीं हो सकती..

    सामयिक लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी आज की प्रस्तुति की भूमिका ने अनायास मेरे 25.11.2019 को "ऐतिहासिक पटनासिटी क़ब्रिस्तान" से सम्बन्धित एक आलेख में प्रसङ्गवश लिखी गई एक छोटी-सी रचना (विधा का ज्ञान नहीं, बस यूँ ही ...) की अनायास याद दिला गई :-
    "जीत का ज़श्न हो कहीं या
    हार का मातम कहीं .. कभी भी
    अपनों की हो या दुश्मनों की
    लाश तो लाश होती है
    है ना !? ...

    इस लाश की शाख़ पर
    देखा है आपने भी अक़्सर
    या तो कई अनाथ बिलखते हैं
    या एक विधवा पनपती है
    है ना !? ..."
    बेहतरीन विविध रचनाओं के फूलों से सजी आज की प्रस्तुति की क्यारी ... साधुवाद आपको ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आपकी लिखी पंक्तियाँ पूर्व में भी उतनी ही अच्छी लगी थी जितनी आज।
      बहुत आभारी हूँ आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए।
      शुक्रिया।

      हटाएं
  4. सभी रचनाएं पढ़लीं . उत्कृष्ट हैं खासतौर पर शब्दांकन पर प्रस्तुत कविताएं ..
    मेरी रचना भी आपने चुनी है धन्यवाद .

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति, मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार श्वेता जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  7. शांति के लिए युद्ध का आह्वान
    जीवन के लिए मृत्यु का वाहन
    क्यों?????
    एक ऐसा प्रश्न जिसका ठीक ठीक उत्तर कोई नहीं दे पाता। कदाचित् शांति किसी के अधीन ना होकर स्वाभिमान भरी हो , इसलिए युद्ध होते है। शत्रु के बढ़ते कदम ना रोके जाये तो वह खुद्दारी को रौंद अधीन कर लेगा। पर दुआ करें कभी युद्ध ना हो। शांति का मार्ग प्रशस्त हो । सुंदर रचनाओं का संकलन प्रिय श्वेता। सभी रचनाकारों को नमन। तुम्हें सस्नेह शुभकामनायें
    🌹🌹🌹🌹
    जवाब

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  8. अच्छा लगा पढ़कर। बढ़िया।

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत अच्छी भूमिका के साथ सुंदर सूत्र संयोजन
    बधाई
    मुझे सम्मानित करने का आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं

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