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शुक्रवार, 19 जून 2020

1799 ..क्या हमारे देश की उत्पादन गुणवत्ता का स्तर इतना दयनीय है!

शुक्रवारीय अंक में
आप सभी का
स्नेहिल अभिवादन
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बहिष्कार करो!! 
इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार में 72%, दवाओं के बाजा़र में 62%,सौर ऊर्जा में 90% दूरसंचार में 25%,ऑटोमोबाइल में 26% और भी अनगिनत क्षेत्र हैं जिनमें चीन ने भारतीय बाज़ारों में एडवांस टेक्नोलॉजी और कम कीमत के आधार पर अपनी धाक जमा रखी है। 

 चीनी व्यापार की भारतीय बाज़ार में घुसपैठ की इन दो चार आंकड़ों से हमें अंदाज़ा हो गया होगा कि चीनी सामानों के बहिष्कार का नारा कितना आसान है।
 बाज़ारों में उपलब्ध समानों में कौन-सी चीनी और कौन सी नहीं लोग तो यही नहीं पहचान पाते,चीनी सामान भारतीय ठप्पे के साथ खुले बाज़ारों में आसानी से बिकती हैं और कम कीमत में सुविधा का भोग करने के लालच या मजबूरी में हम इनका इस्तेमाल धडल्ले से करते हैं ।  सिर्फ़  बहिष्कार के नाम की डाल हिलाने से मूल जड़ जो भारतीय ज़मीन को कसकर जकड़ी हुई उसे समाप्त करने का उपाय मिल सकेगा क्या..?
 बहिष्कार करो का नारा अवश्य लगाना है पर इस बात के लिए भी तैयार रहना है कि  देश में उपलब्ध संसाधनों पर निर्भरता बढ़ाने के लिए हमें  अनेक चुनौतियों का सामना करना होगा, समझौते भी करने पड़ेगें, स्थिति से उत्पन्न असंतोष का त्यागकर एकजुट होना होगा  और अपनी विलासी इच्छाओं पर दृढतापूर्वक नियंत्रण करना होगा तभी बहिष्कार का नारा सफल होगा ।
सरकार के द्वारा उठाये क़दम निर्णायक एवं महत्वपूर्ण होंगे परंतु आम जनता की भागीदारी ही बहिष्कार का भविष्य सुनिश्चित करेगी।
अपने देश में
चीनी बाज़ारवाद की गहरी पैठ से  
एक सवाल बार-बार कौंध रहा है मन में - 
 हमारे देश में बुद्धि,क्षमता, पूँजी और साधनों का उपयोग सिर्फ़ राजनीति करने, पेट या ज़ेब भरने के लिए किया जाता है क्या?
सच में यह विचारणीय है कि हमारे देश की 
उत्पादन गुणवत्ता का स्तर इतनी दयनीय है!!!

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आइये आज की रचनाएँ पढ़ते हैं-
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आंखों से निकलती चिंगारियां..हृदय में जल रही ज्वाला,
उबलता लहू,तुम्हारा फन कुचलने को,भारत तैय्यार हैं।।

गरजते शेर के सामने,अपनी हस्ती मिटाने चीन आगये तुम,
भारत मां के वीर सपूत ,तेरी अर्थी बिछाने को तैय्यार हैं।। 
                
ओ फरेबी !गलवन से आंखे हटा लेह लद्दाख  हमारा है।
तेरी दम्भ की शिला को गलाने के लिए भारत तैय्यार है ।।


क्योंकि 
मालूम है मुझे
जब होता है अंधेरा घना
तो वो होता है इशारा
कि होने को है सुबह
होने को है 
उजियारा!!




यादें ही तो हैं जो मुझको

मिलाती रहती हैं मुझसे

किसी आईने की तरह

कि सजी थी मैं भी कभी

किसी के लिए

लगा कर माथे पर चांद




 न होगा आदमी गद्दार फिर तू ही बता

भूखे पेटों को अगर हुब्ब-ए वतन सिखलाएगा।



काट लो चाहे परों को हौंसला हो साथ तो

देखना फिर से वो पंछी एक दिन उड़ जाएगा।




नेपाल के साथ हमारा सांस्कृतिक, धार्मिक और आत्मीय संबंध बहुत पहले से ही रहा है। लेकिन चीन के विस्तारवादी स्वरूप ने, नेपाल में दिलचस्पी लेना, तिब्बत पर कब्जे के बाद ही शुरू कर दिया था। चीन की दिलचस्पी न केवल, नेपाल में बल्कि उसकी दिलचस्पी श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश में भी है। वह भारत को उसके  पड़ोसियों से अलग थलग कर देना चाहता है। अब इसका कूटनीतिक उत्तर क्या हो यह हमारे नीति नियंताओ को सोचना होगा। नेपाल अपनी कई ज़रूरतों के लिए फिलहाल भारत पर निर्भर है लेकिन वह लगातार भारत पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश भी कर रहा है। 

उलूक का ताजा पन्ना

किसी के लिखे पर
कुछ कहना चाहे कोई
सारे
खाली छपने वालों को छोड़ कर 

किसलिये
डरता है कोई इतना
लिखे पर कह दिये को
घर ले जा पढ़ना चाहता है 

कुछ भी
लिख देने की आदत रोज रोज
कभी भी
ठीक नहीं होती है ‘उलूक’ 

किसलिये
अपना लिख लिखा कर
कहीं और जा कर
फिर से दिखना चाहता है।


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सुनिये एक लघुकथा

★★★★★★

उम्मीद है आज का अंक आपको पसंद आया होगा।

हमक़दम का विषय 

कल की प्रस्तुति पढ़ना न भूलें
कल आ रही हैं विभा दी
बेहद खास 1800 अंक लेकर।

#श्वेता सिन्हा




10 टिप्‍पणियां:

  1. सच में यह विचारणीय है कि हमारे देश की
    उत्पादन गुणवत्ता का स्तर इतना दयनीय है!
    -आखिर कब तक...

    उम्दा लिंक्स चयन

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!श्वेता ,सुंदर भूमिका के साथ लाजवाब प्रस्तुति ।
    बात तो आपकी सही है उत्पादन की गुणवत्ता का स्तर बढाना होगा ,सिर्फ राजनीति करने और जेब भरने की नीति छोडनी होगी ,आसान नहीं है ,प्रयत्न तो किया ही जा सकता है ।

    जवाब देंहटाएं
  3. समयानुकूल प्रस्तुति
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. रोचक लिंक्स का संकलन। इन रचनाओं के बीच मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर सामयिक प्रस्तुति।हमारी रचना को शामिल करने के लिये हार्दिक धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. श्वेता जी
    सार्थक और सटीक भूमिका लिखी है, बहिष्कार करना इतना सरल नहीं हैं हमें इसकी जड़ों तक जाना पड़ेगा
    साधुवाद आपको
    सुंदर सूत्र संयोजन
    मुझे सम्मिलित करने का आभार

    जवाब देंहटाएं

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