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शनिवार, 16 मई 2020

1765... परिवार की परिभाषा


सभी को यथायोग्य
प्रणामाशीष
आवश्यक_सूचना

अगर कोई जरूरतमंद परिवार अपने बच्चों के लिए कॉपी पेंसिल रबड़ कटर स्केल या कलम खरीदने में
सक्षम नहीं है या आर्थिक रूप से इस महामारी के समय समस्या में है तो हमारी टीम से संपर्क करें
आपको आपके बच्चे के लिए यह सारी चीजें #निशुल्क दी जाएगी l
Being Helper Team
☎7353255350

रेलवे पटरी पर दम तोड़ती.. घर वापसी की तस्वीरों में - खबरों में हालात जाहिर हो रहे हैं.. बहुत ही भयावह परिस्थितियों से सामना करने के लिए हमें तैयार रहना है.... फिर भी सावन-भादो की अमावस्या की काली गहरी रात में एक जुगनू दिख जाए तो उसके प्रकाश में उम्मीद जगती है... वो कहते हैं न डूबते को तिनके का सहारा.. किसी को बीस हजार सैलरी मिली हो और उसमें से पंद्रह हजार गरीबों में बाँट दे.. भारत में बहुत चमत्कार होते रहते हैं.. मेरे आस-पास के बच्चों की टोली खोज-खोज कर भूखों को खाना, दवा पानी देने के लिए मुस्तैदी से तैनात हैं... जब भी सकारात्मकता फैलाने का मौका मिले.. बस प्रयास करते रहना है...




विश्व परिवार दिवस (International Day of the Family) 15 मई: इस दिवस को प्रतिवर्ष 15 मई को मानते है तथा वर्ष 1994 को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने इसे अंतररष्ट्रीय परिवार घोषित किया है।

vishwa parivar divas kab manaya jata hai



2008- पिता और परिवार: जिम्मेदारियां और चुनौतियां
2007- परिवार और व्यक्ति विकलांगों सहित
2006- परिवार बदलना: चुनौतियां और अवसर
2005 – एचआईवी / एड्स और परिवार भलाई


नेह,समर्पण से बने,प्रियवर मीठी बात ।
भाव भरे मीठे ह्रदय,तो सचमुच सौगात ।।
एकाकीपन है कहर,बहुत बड़ा अभिशाप ।
आओ मिलकर के रहें,प्रियवर मैं औ' आप ।।




लोगों को संयुक्त परिवार और न्यूक्लियर फ़ैमिली के
गुण एवं दोष समझ में आ रहे हैं। वर्तमान में व्यक्तियों के
चिंतन में है कि उन्हें अपनी संयुक्त परिवार जैसे मूल परंपराओं
और वैदिक संस्कृति के ओर वापस लौटना ही होगा। जब परिवार सुदृढ़
 और सक्षम होगा तब वो किसी भी आपदा का सामना कर सकता है।
 इतना तो तय है कि परिवार के बिना समाज एवं राष्ट्र का भविष्य उज्जवल नहीं हो सकता।


साहित्य लोगों को संवेदनशील बनाता है, ऐसे में भविष्य के
नागरिकों में संवेदना के गुण भरने के लिए उन्हें कविताओं से
परिचित कराना बहुत जरूरी है। मैंने अपने स्कूल में हिंदी कविता पर
तीन दिन की एक कार्यशाला भी की, जिसमें नरेश सक्सेना ने अपनी कविताओं के
अलावा दूसरे अनेक कवियों की अच्छी कविताओं का पाठ किया, उनकी व्याख्या की
और छात्रों को यह भी बताया कि अच्छी कविताएं कैसी लिखी जा सकती हैं।


यह प्रिंट पत्रिका है, लॉकडाउन के चलते ब्लॉग पर निकाला जा रहा है। 
पत्रिका में प्रतिक्रिया का कॉलम शुरू करने का विचार है।
आप मुझे अपनी प्रतिक्रिया या शुभकामना लिख कर भेज सकते हैं।
पत्रिका को सीधे मेल भी कर सकते हैं।
आलेख, लघुकहानी, लघुकथा,  कविता, कार्टून, स्केच इत्यादि भी भेज सकते हैं।
ध्यान रहे आपकी भेजी सामग्री जनचेतना से संबंधित हो। chatrasanwad@gmail.com

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पुन: मिलेंगे..
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हम-क़दम का अगला विषय है 
'क्षितिज'

इस विषय पर आप अपनी रचना आज शनिवार तक कांटेक्ट फ़ॉर्म के ज़रिये भेजिए जिन्हें सोमवारीय प्रस्तुति में प्रकाशित किया जाएगा।   

उदाहरणस्वरूप कविवर डॉ.शिवमंगल सिंह'सुमन'जी की कालजयी रचना-

"हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध  गा पाएँगे,
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाऍंगे।

हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे,
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से,

स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गतिउड़ान सब भूले,
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।

ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने,
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने।

होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी,
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।

नीड़  दोचाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैंतो
आकुल उड़ान में विघ्न  डालो।"

-डॉ.शिवमंगल सिंह'सुमन'

12 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. अगर कोई जरूरतमंद परिवार अपने बच्चों के लिए कॉपी पेंसिल रबड़ कटर स्केल या कलम खरीदने में
    सक्षम नहीं है या आर्थिक रूप से इस महामारी के समय समस्या में है तो हमारी टीम से संपर्क करें
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    रेलवे पटरी पर दम तोड़ती.. घर वापसी की तस्वीरों में - खबरों में हालात जाहिर हो रहे हैं.. बहुत ही भयावह परिस्थितियों से सामना करने के लिए हमें तैयार रहना है.... फिर भी सावन-भादो की अमावस्या की काली गहरी रात में एक जुगनू दिख जाए तो उसके प्रकाश में उम्मीद जगती है... वो कहते हैं न डूबते को तिनके का सहारा.. किसी को बीस हजार सैलरी मिली हो और उसमें से पंद्रह हजार गरीबों में बाँट दे.. भारत में बहुत चमत्कार होते रहते हैं.. मेरे आस-पास के बच्चों की टोली खोज-खोज कर भूखों को खाना, दवा पानी देने के लिए मुस्तैदी से तैनात हैं... जब भी सकारात्मकता फैलाने का मौका मिले.. बस प्रयास करते रहना है...
    सादर प्रणाम आदरणीया दीदी
    आज समझ आया भूमिका का सार्थक अर्थ 🖕

    बहुत सुंदर प्रस्तुति 🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. सादर प्रणाम दी।
    विषम परिस्थितियों में ऐसी संवेदना और सकारात्मकता ही मानवता की परिचायक है।
    वृहद विचारों और भावनाओं के सार्थक संदेश से ओत प्रोत आज की भूमिका से लेकर पूरा अंक ही बेहद उत्कृष्ट है।
    हमेशा की तरह सराहनीय प्रस्तुति दी।
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. सादरर नमन
    सदा की तरह
    विलक्षण प्रस्तुति
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. विचार भावना संवेदना से ओतप्रोत प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  6. " विश्व परिवार दिवस " की हार्दिक बधाई। आज हर एक को " परिवार " का महत्व समझ आ ही गया होगा। विश्व परिवार दिवस को समर्पित बेहतरीन अंक ,सादर नमस्कार दी

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  7. हर परिवार में खुशी, सुख, शांति बरकरार रहे ! संयुक्त परिवार का चलन हो !

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  8. बहुत सुन्दर ,परिवार का महत्व अब समझ में आता है जब हम अकेले अकेले रहने लगे।

    जवाब देंहटाएं
  9. साहित्य लोगों को संवेदनशील बनाता है
    महत्वपूर्ण आवश्यक सूचना एवं संवादों से सजी सार्थक प्रस्तुति...।

    जवाब देंहटाएं

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