मंगलवारीय अंक में
आज की विशेष प्रस्तुति में
कालजयी रचनाकार
स्मृतिशेष पण्डित सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'
जी की दो रचना
निराला जी के बारे में
निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बाङ्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। पिता की छोटी-सी नौकरी की असुविधाओं और मान-अपमान का परिचय निराला को आरम्भ में ही प्राप्त हुआ। उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया। तीन वर्ष की अवस्था में माता का और बीस वर्ष का होते-होते पिता का देहांत हो गया। अपने बच्चों के अलावा संयुक्त परिवार का भी बोझ निराला पर पड़ा। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली उसमें न सिर्फ पत्नी मनोहरा देवी का, बल्कि चाचा, भाई और भाभी का भी देहांत हो गया। शेष कुनबे का बोझ उठाने में महिषादल की नौकरी अपर्याप्त थी। इसके बाद का उनका सारा जीवन आर्थिक-संघर्ष में बीता। निराला के जीवन की सबसे विशेष बात यह है कि कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया
::भिक्षुक::
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उपरोक्त दोनो रचनाएँ
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विषय भी देना है
एक सौ अट्ठारहवाँ विषय
शोहरत
उदाहरण
कितना बेबस कर देती है शोहरत की जंजीरे भी
अब जो चाहे बात बना ले हम इतने आसान हुए
- डॉ. राही मासूम रजा
पूरी रचना पढ़िए
प्रेषण तिथिः 02 मई 2020
प्रकाशन तिथिः 04 मई 2020
माध्यम ब्लॉग संपर्क फार्म
सादर
विद्रोही कवि 'निराला'की कविताओं में सर्वहारा वर्ग की आवाज़ स्पष्ट सुनाई पड़ती है। लेखनी मे रुढ़ियों और परंपराओं को उन्होंने नहीं माना। भाषा,छंद,शैली में मौलिक और नवीन प्रयोग एवं छायावाद की कोमलता उनकी कविताओं की विशिष्टता थी।
जवाब देंहटाएंउपर्युक्त दोनों ही कविताएँ सर्वश्रेष्ठ हैं।
आभार दी सुंदर साहित्यिक संकलन।
सही कहा श्ववेता जी, परंतु अब सर्वहारा की परिभाषाऐं बदल रही हैं
हटाएंमहामानव निराला जी को याद करती बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह!!पंडित सूर्य कांत त्रिपाठी 'निराला'जी की' भिक्षुक'मुझे बहुत पसंद है । बहुत-बहुत आभार यशोदा जी ।
जवाब देंहटाएं" ये वक्त गुजर जाएगा " - अभी कोरोनकाल के लिए संजीवनी बूटी ..
जवाब देंहटाएं" कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने सिद्धांत त्यागकर समझौते का रास्ता नहीं अपनाया "- इन्हें हो अवतार मानना चाहिए, पर आज के दौर में ऐसों को सिरफिरा माना जाता है .. शायद ...
"भिक्षुक" पाठ्यक्रम में होने के कारण स्कूल के दिनों को याद करा गया। जब पहली बार निराला जी से इस अतुकान्त कविता के माध्यम से रूबरू होने का मौका मिला था।
बीच-बीच में ऐसे कालजयी जनों और उनकी कालजयी रचना को अपने मंच पर प्रस्तुत कर रूबरू करवाना अच्छा लगा ...
वाह सुबोध जी, आप तो बीरबल को कोरोनाकाल में ले आए, बहुत खूब
हटाएंबहुत खूब यशोदा जी, मेरे हृदय में है अमृत, मैं सींच दूँगा
जवाब देंहटाएंअभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम, तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा। का भिक्षुक आज भी वहीं खड़ा है जिसे निराला जी ने तब ''वहां'' देखा था ... बहुत खूब
सस्नेहाशीष संग शुभकामनाएं छोटी बहना
जवाब देंहटाएंउम्दा प्रस्तुतीकरण
घोर दुखद परिस्थितियों में भी कभी निराशा को अपने पर हावी नहीं होने दिया एक संवेदनशील कालजयी कवि रचनाकार,जिन्होने विद्रोह के रूप में ही सही छंद के कठिन बंधन से कविता और काव्य को मुक्त कर हर कवि के लिए भाव संप्रेषण का मार्ग प्रशस्त किया।
जवाब देंहटाएंउनका छायावादी लेखन आज हर प्रकृति प्रेमी का मार्ग दर्शन करता है ।
आज का अंक निराला जी के नाम मुग्ध कर गया।
बहुत सुंदर प्रस्तुति।
हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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